भारतीय जनता पार्टी (BJP) लोक सभा चुनावों में बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई है और इस बात ने अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्यचकित किया है। खासतौर पर इसलिए कि किसी भी एक्जिट पोल या ओपिनियन पोल में ऐसी संभावना नहीं जताई गई थी।
हालांकि राज्यों के राजनीतिक हालात के आधार पर चुनाव नतीजों का अलग-अलग पहलुओं से विश्लेषण किया जा रहा है लेकिन यह कहा जा सकता है कि केंद्र में गठबंधन की सरकार देश की नैसर्गिक राजनीतिक व्यवस्था का अंग है और बीते 10 वर्ष इस लिहाज से थोड़ा अलग थे।
बीते 10 वर्षों को छोड़ दिया जाए तो सन 1989 से ही देश में गठबंधन की सरकारें रही हैं। उससे पहले 1984 में कांग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत मिला था लेकिन 1989 में पार्टी हार गई थी। बीते दो आम चुनावों की प्रकृति कुछ अलग थी।
भाजपा को 2014 में महत्त्वपूर्ण जीत मिली थी और उस चुनाव में जनता ने बदलाव के लिए मतदान किया था। 2019 में पुलवामा और बालाकोट के बाद पार्टी ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर और मजबूत जीत हासिल की। इस बार अपेक्षाकृत सामान्य चुनाव में पार्टी सामान्य बहुमत से पीछे रह गई। इस चुनाव में शासन और स्थानीय मुद्दे प्रमुख थे। बहरहाल, भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) आराम से सरकार बनाने की स्थिति में है।
देश के राजनीतिक मानचित्र पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि हालात केंद्र में गठबंधन सरकार के अनुकूल रहे हैं। देश में 11 ऐसे राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है-उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा केरल (यदि वाम को क्षेत्रीय ताकत माना जाए)। इन राज्यों में 347 लोक सभा सीट हैं।
अन्य 10 राज्य ऐसे हैं जहां राज्यस्तरीय दलों का पराभव हुआ है या उनका कोई अस्तित्व ही नहीं था। ये राज्य हैं- कर्नाटक, तेलंगाना, असम, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। इन राज्यों में 169 लोक सभा सीटें हैं। कुल मिलाकर इन सभी राज्यों में 500 से अधिक सीटें हैं।
ताजा परिणाम दिखाते हैं कि कांग्रेस ने दूसरी श्रेणी के कुछ राज्यों में भाजपा को चुनौती देने का तरीका तलाश लिया है। कांग्रेस का पराभव भी भाजपा के बहुमत तक पहुंचने की एक वजह थी। समाजवादी पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश में जबरदस्त प्रदर्शन किया है और लोक सभा में भाजपा को बहुमत नहीं मिलने देने में उसकी भी अहम भूमिका रही है। ऐसे में देश के राजनीतिक हालात को देखते हुए भाजपा को अब अपने हिंदुत्ववादी बयानों को नियंत्रित करना होगा ताकि क्षेत्रीय दल उसके साथ बने रहें।
अगर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जनता दल यूनाइटेड समय पर साथ नहीं आया होता तो भाजपा के लिए हालात बहुत मुश्किल हो जाते। कांग्रेस की क्षेत्रीय दलों में स्वीकार्यता बढ़ी है तथा वह उनके लिए जगह खाली करने की इच्छुक है। यह बात भी बताती है कि गठबंधन देश में प्राकृतिक हैं।
वित्तीय बाजारों में तथा अन्य स्थानों पर यह चिंता है कि केंद्र में गठबंधन की सरकार होने से सुधार प्रभावित होंगे, लेकिन इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि गठबंधन सरकारें सुधारों के क्रियान्वयन के मामले में बेहतर साबित हुई हैं।
वास्तव में राजग सरकार में जनता दल यूनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी के रूप में दो क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी के कारण केंद्र और राज्यों के बीच रिश्ते और सहज होने चाहिए। सरकार में क्षेत्रीय दलों की इस प्रकार मौजूदगी से जरूरी सुधारों को लेकर सहमति बनाने में मदद मिलेगी। काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नई राजग सरकार इसे लेकर किस प्रकार आगे बढ़ती है।