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Editorial: ठोस पहल की जरूरत- भारत की दूरसंचार नीति को और अधिक व्यापक होना चाहिए

तकनीक दूरसंचार की रीढ़ है और वह बहुत तेजी से बदल रही है। ऐसे में इस नीतिगत दस्तावेज के लिए अल्पावधि के लक्ष्य तय करना अधिक महत्त्वपूर्ण है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 29, 2025 | 10:03 PM IST

नई मसौदा दूरसंचार नीति जो 2018 की राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति के सात साल के बाद आ रही है, उसके लक्ष्य और उद्देश्य महत्त्वाकांक्षी हैं। परंतु उसके सामने असल चुनौती क्रियान्वयन की रहेगी। वर्ष 2018 की नीति और उसके पहले की नीतियों के समक्ष भी यही चुनौती थी। मसौदा राष्ट्रीय दूरसंचार नीति-2025 में ग्रामीण क्षेत्रों सहित 4जी, 5जी और ब्रॉडबैंड कवरेज लक्ष्यों को तय करने के अलावा रोजगार निर्माण को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में रेखांकित किया गया है। हालांकि यह निकट भविष्य में हासिल हो सकने वाले लक्ष्य सामने रखने में नाकाम रहा है।

 इस नीति के तहत लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 2030 का वर्ष तय किया गया है जो अभी पांच साल दूर है। तकनीक दूरसंचार की रीढ़ है और वह बहुत तेजी से बदल रही है। ऐसे में इस नीतिगत दस्तावेज के लिए अल्पावधि के लक्ष्य तय करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब अंशधारक अगले तीन सप्ताह के दौरान मसौदा नीति पर अपने विचार रखेंगे तो दूरसंचार क्षेत्र की कुछ हकीकतें उजागर होंगी। ऐसे में नीति निर्माताओं को ऐसे लक्ष्य तय करने में मदद मिलेगी जो आकांक्षाओं और व्यवहार्यता के मिश्रण वाले हों।

यह मसौदा नीति दूरसंचार क्षेत्र में सालाना निवेश को दोगुना करके 1 लाख करोड़ रुपये करने तथा इस उद्योग में 10 लाख रोजगार तैयार करने की बात करती है। साथ ही, 10 लाख अन्य लोगों को नए सिरे से कौशल संपन्न बनाने, 90 फीसदी आबादी को 5जी के कवरेज में लाने और वर्ष2030 तक 10 करोड़ परिवारों को फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड के दायरे में लाने का लक्ष्य शामिल है। इसमें ग्रामीण इलाकों में फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड को बढ़ावा देने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव भी रखा गया है। इसके साथ ही दूरदराज तक संपर्क के लिए छोटे इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को मदद पहुंचाने की बात भी शामिल है। घरेलू दूरंसचार उपकरण विनिर्माताओं को प्रोत्साहन और देश के दूरसंचार शोध एवं विकास व्यय को पांच साल में दोगुना करना भी प्रमुख लक्ष्यों में शामिल हैं।

एक मिशन वक्तव्य के रूप में ये लक्ष्य सरकार की इच्छाओं की सूची को शामिल किए हुए हैं लेकिन अंतिम नीति में हितधारकों को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने के लिए रोडमैप पर भी समान रूप से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए मसौदा नीति साइबर हमलों और भ्रामक सूचना अभियानों को रोकने में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल का संक्षिप्त उल्लेख करती है। परंतु दूरसंचार क्षेत्र में नौकरियों के संबंध में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की भूमिका पर विस्तार से चर्चा नहीं करती। यह दो कंपनियों के दबदबे की बहस या उद्योग के केवल प्रमुख कंपनियों तक सीमित हो जाने के जोखिम और उपभोक्ताओं पर इसके प्रभाव को लेकर भी कुछ नहीं कहती है। मसौदा नीति में सरकारी दूरसंचार कंपनियों के भविष्य पर भी कोई चर्चा नहीं की गई है। वित्तीय संकटग्रस्त निजी दूरसंचार कंपनियों और उनके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली समस्याओं का विषय भी नीति के दायरे में नहीं है। कुछ अन्य समकालीन विषय मसलन स्पेक्ट्रम नीलामी और लॉन्च होने वाला सैटेलाइट संचार ब्रॉडबैंड भी नीतिगत दस्तावेज में सार्थक तरीके से जगह नहीं बना पाया।

देश में दूरसंचार नीतियों का सिलसिला 1994 तक जाता है यानी वाणिज्यिक मोबाइल फोन सेवाओं की शुरुआत के ठीक पहले तक। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में 1994 में बनी दूरसंचार नीति ने दूरसंचार क्षेत्र का उदारीकरण किया और पहुंच,  निजी क्षेत्र की भागीदरी बढ़ाने और बेहतर सेवा गुणवत्ता पर जोर दिया। इस नीति को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। इसके चलते सरकार को उदारीकरण को गति देने के लिए 1999 में अगला दस्तावेज जारी करना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1999 की राष्ट्रीय दूरसंचार नीति में दूरसंचार पहुंच और घनत्व के लक्ष्य तय किए गए थे। इसके साथ ही लाइसेंस शुल्क के लिए राजस्व साझा करने की व्यवस्था भी आरंभ की गई। इसके बाद कई अन्य ऐसे दस्तावेज जारी किए गए जो ज्यादा से ज्यादा एक मिशन वक्तव्य ही रहे। भूराजनीतिक उथल-पुथल के बीच मेक इंडिया पर जोर देने वाला वर्तमान 20 साल का मसौदा, दूरसंचार के छात्रों के लिए एक अच्छी संदर्भ सामग्री हो सकती है। एक नीतिगत दस्तावेज के रूप में तो इसे और ठोस बनाने की आवश्यकता है।

 

First Published : July 29, 2025 | 10:00 PM IST