संपादकीय

Editorial: स्वदेशी लड़ाकू विमान निर्माण में निजी क्षेत्र और HAL

DRDO की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी इस परियोजना की निगरानी करेगी लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया में निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों को अवसर मिलेगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 28, 2025 | 10:44 PM IST

भारत लंबे समय से पांचवीं पीढ़ी का स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इस परियोजना को एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट या एएमसीए का नाम दिया गया है। वर्ष 2010 में दो इंजन वाले स्टेल्थ विमान को लेकर पहला व्यवहार्यता अध्ययन किया गया था, तब से ही यह माना जाता रहा है कि इसे प्राथमिक तौर पर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) नामक सरकारी कंपनी बनाएगी जिसका मुख्यालय बेंगलूरु में है।

लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इस सप्ताह एएमसीए कार्यक्रम के लिए एक क्रियान्वयन मॉडल को मंजूरी दी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी इस परियोजना की निगरानी करेगी लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया में निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों को अवसर मिलेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय निजी कंपनियों को यह इजाजत होगी कि वे विमान के निर्माण और उसके विकास से संबंधित निविदाओं में बोली लगा सकें।

हालांकि अभी केवल एक प्रारंभिक मॉडल यानी प्रोटोटाइप ही बनाए जाने की उम्मीद है। उन्हें यह इजाजत भी होगी कि वे बोली लगाने से पहले संयुक्त उपक्रम या कंसोर्टियम बना सकें। मंत्रालय का मानना है कि यह देश की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं के विकास और मजबूत घरेलू वैमानिक औद्योगिक पारिस्थितिकी के विकास की दिशा में एक अहम कदम होगा और यह अनुमान सटीक प्रतीत होता है।

एचएएल के एकाधिकार का अंत यकीनन एक अच्छी बात है और यह खबर स्वागतयोग्य है कि रक्षा मंत्रालय ने मार्च में प्रस्तुत एक रिपोर्ट की अनुशंसाओं को लेकर इतनी तेजी से काम किया है। रिपोर्ट में कहा गया था कि सैन्य विमान के निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाई जानी चाहिए। सैन्य बलों के शीर्ष नेतृत्व की एचएएल से अंसतुष्टि कोई छिपी हुई बात नहीं है लेकिन यह पहला मौका है जब मंत्रालय के सर्वोच्च स्तर से इस भावना के अनुरूप कदम बढ़ाया गया है। चाहे जो भी हो एचएएल को इस समय तेजस की आपूर्ति सुनिश्चित करने में व्यस्त होना चाहिए। यह गत वित्त वर्ष में वादे के मुताबिक 80 से अधिक लड़ाकू विमानों की आपूर्ति नहीं कर पाया था। उसे हाल ही में 156 प्रचंड हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का भी ऑर्डर मिला है जो उसका अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर है।

सरकारी विमान संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए एचएएल को स्वाभाविक क्रियान्वयन एजेंसी मानना समाप्त करने की जरूरत बहुत लंबे समय से थी। देश में विमान निर्माण के लिए  व्यापक तंत्र राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अहम तो है ही इसके विनिर्माण के क्षेत्र में अन्य सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे। ऐसा नहीं है कि देश में पहले से ऐसी इंजीनियरिंग क्षमता और विशेषज्ञता मौजूद नहीं है, भारतीय कंपनियों ने अतीत में निर्माण गुणवत्ता को लेकर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। तेजस के कई कलपुर्जे भी देश में बनाए जा रहे हैं।

इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि एचएएल के काम में होने वाली देरी हमेशा या पूरी तरह कंपनी की ही गलती नहीं होती। कई बार उसे आपूर्ति श्रृंखला की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए तेजस में लगने वाले जीई इंजन का मामला। कई मौकों पर उसे ग्राहक यानी सेना की बदलती जरूरतों से निपटना होता है। कई बार सेना की मांग ही इतनी अधिक होती है जो हकीकत से परे हो।

सेना की अन्य शाखाओं ने हथियारों से संबंधित प्लेटफॉर्म के निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका के विस्तार करने के प्रयास किए हैं। परंतु इन्हें हमेशा कामयाबी नहीं हासिल हुई क्योंकि सरकार अक्सर कंपनियों द्वारा बड़े निवेश को वाजिब ठहराने के लिए आवश्यक आकार और अनुबंध आवंटन में लगने वाले समय को लेकर सतर्क रहती है। निजी क्षेत्र से निपटने के लिए उसे अपने ही मानकों से भी निपटना होगा। केवल सरकारी खरीद को औपचारिक रूप से खोल देने से बात नहीं बनेगी, मानसिकता में बदलाव भी आवश्यक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि रक्षा मंत्रालय इस पर भी ध्यान देगा।

First Published : May 28, 2025 | 10:25 PM IST