विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के हर छह माह पर जारी होने वाले नवीनतम यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (TTDI) में भारत का 39वें स्थान पर आना यह दिखाता है कि इस ऊंची संभावना वाले कारोबारी अवसर के दोहन में हमारा देश कमतर प्रदर्शन कर रहा है।
करीब 119 देशों पर किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि भारत पूरे दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा यात्रा और पर्यटन क्षेत्र है लेकिन इसने टीटीडीआई में किसी शीर्ष निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था की तरह प्रदर्शन किया है।
वैसे तो साल 2019 के अध्ययन में भी भारत काफी नीचे 54वें स्थान पर था, लेकिन उससे बिल्कुल तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि तब से अब सूचकांक के मापदंड बदल गए हैं। हालांकि कई आंकड़े यह बताते हैं कि भारत अब कोरोना महामारी के दौर से उबर चुका है।
उदाहरण के लिए, भारत तीन संसाधन मानदंडों पर शीर्ष दस में स्कोर करने वाले केवल तीन देशों में से एक है – प्राकृतिक (6), सांस्कृतिक (9) और कारोबार, चिकित्सा और शिक्षा के लिए यात्रा (9)। इसके अलावा उत्साहनजक बात यह भी है कि कीमत प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में भारत 18वें, हवाई यातायात की प्रतिस्पर्धात्मकता के मामले में 26वें और जमीनी एवं बंदरगाह बुनियादी ढांचे के मामले में 25वें स्थान पर है।
अध्ययन में इस बात पर भी गौर किया गया है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, पर्यावरण सततता और पर्यटन सामाजिक-आर्थिक प्रभाव जैसे कई प्रमुख कमियों को दूर करने के मामले में भी प्रगति हो रही है।
कुल मिलाकर बनी तस्वीर से यह संकेत मिलता है कि प्राकृतिक सौंदर्य की समृद्ध विविधता और जीवंत बहु-सांस्कृतिकवाद का आनंद लेने वाले देश में यात्रा और पर्यटन से रोजगार की भारी संभावनाओं को देखते हुए भारत काफी बेहतर कर सकता है।
इसके बावजूद साल 2021 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटक आगमन में भारत की हिस्सेदारी महज 1.54 फीसदी रही। वैसे तो साल 2011 के करीब 0.63 फीसदी के आंकड़े की तुलना में यह बेहतर है, लेकिन यह तथ्य ध्यान रखना होगा कि विदेशी पर्यटक आगमन में बड़ी संख्या प्रवासी भारतीयों की है।
यही नहीं, इस तथ्य को देखते हुए भी ऐसा कहा जा सकता है कि भारत बहुत फायदा नहीं उठा पाया है, कि दुनिया के दस सबसे ज्यादा घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों वाले देश चीन में इस दौरान लंबे समय तक लॉकडाउन लगा हुआ था।
उदाहरण के लिए नवीनतम टीटीडीआई में चीन का आठवां स्थान है, जबकि उसने अपना सख्त लॉकडाउन जनवरी 2023 में जाकर हटाया है। यह गौर करने की बात है कि दुनिया के सभी शीर्ष दस पर्यटन गंतव्य ऊंची आय वाली अर्थव्यवस्थाएं हैं और ज्यादातर यूरोप में हैं।
वैसे तो इन गंतव्यों तक पर्यटकों का आना सुनिश्चित हो, इसके लिए उनके शहरों और देहाती इलाकों की सुंदरता और उनके पेशेवर तरीके से तैयार किए गए संग्रहालयों की जबरदस्त भूमिका है, लेकिन सबसे अहम अंतर है वहां उपलब्ध बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता।
फ्रांस हो, जापान, चीन या इटली, साधारण से साधारण पर्यटक के लिए भी वहां शीर्ष गुणवत्ता के स्थानीय सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का लाभ उठाना संभव होता है-बसें, ट्रेन, ट्राम आदि- और वहां किफायती कीमत पर ठहरने के स्वच्छ और सुरक्षित विकल्प भी उपलब्ध हैं।
भारत में अगर दो शहरों में मेट्रो रेल सेवा को सम्मानजनक अपवाद मान लें, तो इंटरसिटी बस और ट्रेन सेवाओं जैसे सार्वजनिक परिवहन उस तरह की विश्वस्तरीय गुणवत्ता से काफी दूर हैं, जो कि अब भारतीय हवाई अड्डों और हवाई यात्रा की विशेषता बन चुकी है।
पश्चिम के विपरीत, जहां सभी वर्गों के नागरिक सार्वजनिक यातायात सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, भारत के अमीर और उच्च मध्य वर्ग के लोग आमतौर पर अपने देश में ऐसी सेवाओं के इस्तेमाल से बचते हैं। ऐसे नामुनासिब वजहों से भारत की मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर होती है। इन सबका नतीजा यह है कि भारत पर्यटन के मामले में अपनी क्षमता से कमतर प्रदर्शन कर रहा है।
पर्यटन उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 6 फीसदी का योगदान करता है और लेकिन इसमें सिर्फ 8 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से रोजगार मिला हुआ है।
पिछली जी20 (G20) बैठकों के एक हिस्से के तहत जारी धर्मशाला घोषणापत्र में सरकार ने साल 2047 तक पर्यटन से जीडीपी में 1 लाख करोड़ रुपये की बढ़त करने और भारत को एक प्रमुख पर्यटन गंतव्य बनाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। तो भारत को अपने सभी नागरिकों के लिए स्वच्छ और अधिक रहने योग्य बनाने की बुनियादी बातों पर काम कर इस मामले में अच्छी शुरुआत की जा सकती है।