संपादकीय

Editorial: लंबित मामलों पर ध्यान जरूरी

मोटर दुर्घटना दावा मामलों में आधे से अधिक का निपटारा करके कार्य सूची को सरल बनाने के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद लंबित मामलों की संख्या अभी भी 80,000 से अधिक है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 14, 2025 | 10:23 PM IST

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है। यह अवसर बताता है कि कैसे अवसरों तक समान पहुंच देश में सामाजिक समावेशन की राह को आसान कर सकती है। न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन के बाद न्यायमूर्ति गवई दूसरे दलित हैं जो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने हैं। सन 1950  में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के बाद केवल सात दलित ही वहां न्यायाधीश बन सके हैं जिनमें से गवई भी एक हैं। यह बात बताती है कि भारत को वास्तविक सामाजिक समानता के क्षेत्र में अभी कितना लंबा सफर तय करना है। न्यायमूर्ति गवई अपने करियर के आरंभिक दिनों में कई बाधाओं से दोचार हुए। संविधान के अनुच्छेद 124 (3) के तहत सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने की अर्हता हासिल करने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम पांच वर्ष तक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए या फिर उसे कम से कम 10 वर्ष तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में काम करने का अनुभव होना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने 16 वर्षों तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम किया जिसके बाद मई 2019 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति मिली। जैसा कि उन्होंने अपनी नियुक्ति के बाद खुलकर स्वीकार किया, चूंकि सरकार पीठ में विविधता सुनिश्चित करना चाहती थी इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया को दो वर्षों तक तेज किया गया।

न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय के कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं। इनमें कुछ प्रमुख निर्णय रहे हैं: जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना, नोटबंदी, राज्यों को आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों के भीतर उपश्रेणियां तैयार करने की इजाजत देना और चुनावी फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को निरस्त करना। अब जबकि वह देश के मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं तो उनके सामने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025  की वैधता जैसे कहीं अधिक संवेदनशील मामले आएंगे। अपने पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की तरह उनके पास भी शीर्ष पर रहने के लिए केवल छह माह की अवधि होगी यानी नवंबर 2025  तक वह देश के मुख्य न्यायाधीश रहेंगे। हालांकि इतना समय सर्वोच्च न्यायालय में आवश्यक गहन संस्थागत सुधारों के लिए अपर्याप्त है लेकिन उनके सामने अपने पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल एक आदर्श की तरह उपस्थित है। न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रक्रिया के जटिल मुद्दे को हल करने के लिए एक प्रणाली पेश की जिसके तहत उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर चयनित अभ्यर्थियों से मुलाकात और उनका साक्षात्कार करने की व्यवस्था है। इस उपाय ने उस चयन प्रक्रिया में ईमानदारी का एक और आयाम जोड़ दिया जो वर्षों से कार्यपालिका के निशाने पर थी। उनके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति का खुलासा आवश्यक किए जाने ने भी उस संस्थान की प्रतिष्ठा को मजबूत किया जो पिछले कुछ साल से विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा था।

अपने नपेतुले अंदाज और व्यावहारिक रुख के बावजूद न्यायमूर्ति खन्ना अपने उत्तराधिकारी के लिए लंबित मामलों का एक जटिल मुद्दा छोड़ गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आंकड़ों के अनुसार लंबित मामले एक जटिल मुद्दा बने हुए हैं। न्यायमूर्ति खन्ना द्वारा पुराने और लंबित मामलों को चिह्नित करने तथा आपराधिक मामलों के निपटान की दर को 100 फीसदी से अधिक बढ़ाकर मोटर दुर्घटना दावा मामलों में आधे से अधिक का निपटारा करके कार्य सूची को सरल बनाने के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद लंबित मामलों की संख्या अभी भी 80,000 से अधिक है।

 इसका मुख्य कारण यह है कि जिस गति से नए मामले शुरू हो रहे हैं वह निपटाए जा रहे मामलों से अधिक है। संविधान पीठ के सामने भी बहुत अधिक मामले हैं। करीब 20 मुख्य मामलों और 293  संबद्ध मामले पांच न्यायाधीशों वाले पीठ के समक्ष ही लंबित हैं। हालांकि उनका कार्यकाल छोटा है लेकिन न्यायमूर्ति गवई ने अपने पूर्ववर्ती की तरह ही कहा है कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे। उच्च न्यायपालिका में सार्वजनिक भरोसा बहाल करने की दिशा में यह अहम कदम है।

First Published : May 14, 2025 | 10:23 PM IST