वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में सरकारी खजाने की सेहत सुधारने के लिए विश्वसनीय नीति पेश की गई है, जो इस बजट की खास बात है। बजट के अनुसार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.8 प्रतिशत तक रहेगा यानी यह 4.9 प्रतिशत के बजट अनुमान से कम रहने वाला है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर अनुमान से कम रहने के बावजूद सरकार राजकोषीय घाटा 4.8 प्रतिशत पर रोकने में सफल रही है, जो सधी राजकोषीय नीति का संकेत है। हालांकि कहा जा सकता है कि पूंजीगत व्यय के लिए आवंटन कम (आम चुनाव के दौरान लगी पाबंदियां भी इसके लिए कुछ जिम्मेदार रहीं) होने से राजकोषीय घाटा कम रहा है मगर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोविड महामारी से पूर्व के वर्षों की तुलना में पूंजीगत व्यय काफी अधिक है।
अगले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी का 3.1 प्रतिशत पूंजीगत व्यय रखने का प्रस्ताव दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के बजट भाषण में कहा था कि सरकार राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 प्रतिशत से नीचे लाना चाहती है। चूंकि सरकार ने अगले वित्त वर्ष में जीडीपी का 4.4 प्रतिशत राजकोषीय घाटा रहने का अनुमान लगाया है, इसलिए उसकी सराहना तो बनती है। कोविड महामारी के कारण उत्पन्न कठिन स्थितियों के बीच 2020-21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 9.2 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
खजाने को संभालने की दिशा में सरकार ने अच्छे कदम उठाए हैं मगर ये कोशिशें लंबे समय तक जारी रखनी होंगी। वित्त मंत्री ने जुलाई 2024 के बजट में कहा था कि 2026-27 से सरकार हर साल राजकोषीय घाटे को ऐसे स्तर पर रखेगी कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार का घाटा लगातार कम होता रहे। राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम, 2003 के अंतर्गत राजकोषीय नीति पर जारी होने वाली रिपोर्ट में इसकी विस्तार से जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार 31 मार्च, 2031 तक ऋण को जीडीपी के 50 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखेगी, जिसमें 1 प्रतिशत की घटबढ़ हो सकती है।
सरकार ने राजकोषीय घाटे के एक निश्चित लक्ष्य से बचने की कोशिश की गई है ताकि कामकाज में उसे अधिक गुंजाइश या छूट मिल सके। इस रिपोर्ट में जो अनुमान दिए गए हैं उनके अनुसार 10 प्रतिशत नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर और राजकोषीय घाटे में कुछ कमी के साथ ऋण-जीडीपी अनुपात 2030-31 तक 52 प्रतिशत रह जाएगा, जो चालू वित्त वर्ष में 57.1 प्रतिशत है। अगर नॉमिनल जीडीपी 11 प्रतिशत दर से बढ़ता है तथा राजकोषीय घाटा और भी कम हो जाता है तो इस अवधि में कर्ज का बोझ घटकर जीडीपी का 47.5 प्रतिशत ही रह जाएगा। मान लें कि सरकार 2031 तक 50 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल कर लेती है तो भी यह ज्यादा ही कहा जाएगा।
याद रहे कि राजकोषीय घाटा और ऋण का लक्ष्य तय करने के लिए वर्ष 2018 में एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन किया गया था। इसमें केंद्र सरकार पर चढ़ा कर्ज 2024-25 तक घटाकर जीडीपी के 40 प्रतिशत पर लाने और राजकोषीय घाटा 2020-21 तक कम कर जीडीपी के 3 प्रतिशत पर समेटने का लक्ष्य रखा गया था। एफआरबीएम समीक्षा समिति के सुझाव के आधार पर सामान्य सरकारी ऋण का लक्ष्य जीडीपी के 60 प्रतिशत पर रखा गया था। राज्य सरकारों पर कर्ज का बोझ जीडीपी के 28 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
अगर आगे राजकोषीय घाटा कुछ कम होता है तो भी 2030-31 तक सामान्य सरकारी घाटा जीडीपी के 70-75 प्रतिशत के बीच रहेगा, जो अधिक होगा और अनिश्चित आर्थिक हालात में सरकार के लिए जोखिम बना रहेगा। कर्ज का बोझ अधिक रहने से अधिकतर वित्तीय संसाधन उसे चुकाने में ही खप जाएंगे, जिससे विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए बहुत कम रकम बचेगी। उदाहरण के लिए अगले साल सरकार पर ब्याज भुगतान का भारी बोझ होगा जो जीडीपी के 3.5 प्रतिशत से भी अधिक रहेगा। यह सच है कि कोविड महामारी के बाद दुनिया में सभी देशों के ऊपर बहुत कर्ज चढ़ गया मगर भारत के लिए अच्छा यही होगा कि कर्ज घटाकर सहज स्तर तक लाया जाए।