facebookmetapixel
शेयर बाजार में बड़े सुधार! SEBI बोर्ड ने IPO नियमों में दी ढील, विदेशी निवेशकों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम शुरूभारत-चीन सीमा पर रेलवे नेटवर्क होगा मजबूत, 500 किमी नई रेल लाइन प्रोजेक्ट पर खर्च होंगे 300 अरब रुपयेनिवेशकों को मिलेगा 156% रिटर्न! सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 2019-20 सीरीज-X पर RBI ने तय की नई रिडेम्पशन कीमतSBI ने ऑटो स्वीप की सीमा बढ़ाकर ₹50,000 कर दी है: ग्राहकों के लिए इसका क्या मतलब है?India’s Retail Inflation: अगस्त में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 2.07% पर, खाने-पीने की कीमतों में तेजी से बढ़ा दबावBank vs Fintech: कहां मिलेगा सस्ता और आसान क्विक लोन? समझें पूरा नफा-नुकसानचीनी कर्मचारियों की वापसी के बावजूद भारत में Foxconn के कामकाज पर नहीं होगा बड़ा असरGST कट के बाद दौड़ेगा ये लॉजि​स्टिक स्टॉक! मोतीलाल ओसवाल ने 29% अपसाइड के लिए दी BUY की सलाह₹30,000 करोड़ का बड़ा ऑर्डर! Realty Stock पर निवेशक टूट पड़े, 4.5% उछला शेयरG-7 पर ट्रंप बना रहे दबाव, रूसी तेल खरीद को लेकर भारत-चीन पर लगाए ज्यादा टैरिफ

सम्पादकीय: आर्थिक संभावनाएं स्थिर लेकिन कई चुनौतियां बरकरार

आईएमएफ का अनुमान है कि चालू वर्ष और अगले वर्ष भारत क्रमश: 7 फीसदी और 6.5 फीसदी की दर से वृद्धि करेगा।

Last Updated- October 22, 2024 | 9:54 PM IST

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा मंगलवार को जारी विश्व आर्थिक परिदृश्य के अनुसार वैश्विक आर्थिक संभावनाएं स्थिर हैं। आईएमएफ ने 2024 के लिए अपने वृद्धि संबंधी अनुमान को 3.2 फीसदी पर स्थिर रखा है। जुलाई अपडेट की तुलना में उसने 2025 के लिए अपने पूर्वानुमान को 10 आधार अंक कम करके 3.2 फीसदी किया है। 2024 और 2025 के लिए अमेरिका के वृद्धि अनुमानों में सुधार किया गया है जबकि यूरो क्षेत्र के अनुमान में कटौती की गई है।

भारत का परिदृश्य जुलाई की तुलना में अपरिवर्तित है। आईएमएफ का अनुमान है कि चालू वर्ष और अगले वर्ष भारत क्रमश: 7 फीसदी और 6.5 फीसदी की दर से वृद्धि करेगा। चीन के वृद्धि अनुमान में 2024 के लिए 20 आधार अंक की कटौती की गई है। मानक अनुमान के अलावा विश्व आर्थिक परिदृश्य नीतिगत धुरी और खतरों के बारे में बात करता है जिनकी चर्चा करना उपयोगी है।

नीतिगत संदर्भ में आईएमएफ के आर्थिक सलाहकार पियरे-ओलिवियर गौरींचस, परिदृश्य की भूमिका में कहते हैं कि मुद्रास्फीति के विरुद्ध लड़ाई व्यापक तौर पर जीती जा चुकी है। हालांकि वृद्धि दर महामारी के पहले के स्तर से नीचे है और निकट भविष्य में वह ऐसी ही स्थिति में रहने वाली दिखती है लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था बीते कुछ वर्षों में लगे तमाम झटकों के बावजूद मजबूत बनी रही है। महामारी, जंग और भू-राजनीतिक तनाव इसके उदाहरण हैं।

इसके अतिरिक्त बड़े मौद्रिक बैंकों ने भी नीतिगत सख्ती बरती है। हालांकि कुछ विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर अभी भी तय स्तर से अधिक है लेकिन वह अपेक्षाकृत सहज स्तर पर आ चुकी है और केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरों में कटौती आरंभ कर दी है। इससे विकासशील देशों समेत वित्तीय हालात को सहज बनाने में मदद मिलेगी।

अपस्फीति के कुछ अंश के लिए झटकों के कम होने को वजह माना जा सकता है लेकिन मौद्रिक नीति समिति ने मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को थामे रखने में मदद की है और मेहनताने और कीमतों के चक्र से बचने में सहायता की है। बहरहाल केंद्रीय बैंकों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।

अन्य नीतिगत मुद्दा है ऋण को स्थिर करना। महामारी के बाद अधिकांश देशों द्वारा शिथिल राजकोषीय नीति अपनाए जाने के बाद अब हालात में सुधार का समय है।

बहरहाल, आईएमएफ कहता है कि वर्तमान राजकोषीय योजनाओं के अधीन अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए ऋण का स्तर स्थिर नहीं है। बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय स्थिति में देरी से समायोजन के साथ हमेशा यह जोखिम होता है कि वह बाजार में उथलपुथल की स्थिति बना देगा।

अमेरिका में जहां बजट घाटा बढ़ा है, वहीं चीन में आर्थिक वृद्धि के समर्थन के लिए विभिन्न स्तरों पर राजकोषीय हस्तक्षेप जारी रहा है। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में स्थिरता है हालांकि मध्यम अवधि में अभी भी कई जोखिम हैं।

उदाहरण के लिए अगर चीन के संपत्ति बाजार में समस्या अनुमान से अधिक विकट होती है तो इसका असर न केवल चीन की बल्कि समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। भारी घाटे तथा बाह्य सहायता की आवश्यकता वाले कई देशों की कठिनाई जारी रह सकती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर भी बहत कुछ निर्भर होगा। बहरहाल, फिलहाल तो शायद सबसे बड़ा जोखिम है पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव जो आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकता है और जिंस कीमतों में इजाफे की वजह बन सकता है।

भारत के लिए वृद्धि जहां स्थिर है और मुद्रास्फीति कम करने की प्रक्रिया जारी है, वहीं राजकोषीय गुंजाइश (बफर) बनाने की भी जरूरत है। यद्यपि फिलहाल बजट घाटा कम हो रहा है लेकिन भविष्य को लेकर अधिक नीतिगत स्पष्टता की आवश्यकता है।

अल्प से मध्यम अवधि के दौरान भारत को धीमी वैश्विक वृद्धि से निपटने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। संभावित जोखिमों से बचने के लिए भी उसे नीतिगत गुंजाइश तैयार करनी होगी।

First Published - October 22, 2024 | 9:32 PM IST

संबंधित पोस्ट