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Editorial: लगातार बढ़ रही चीन पर निर्भरता, वीजा संबंधी मसले में भारत के पास सिर्फ दो विकल्प

मौजूदा नियमन और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं की नजर से यह एक जटिल माहौल है। भूराजनीतिक हालात को देखते हुए सरकार के लिए चीनी निवेश के लिए राह खोलना आसान नहीं होगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 09, 2024 | 9:50 PM IST

केंद्र सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वाले चीनी तकनीशियनों की वीजा मंजूरी प्रक्रिया को तेजी प्रदान करने और सुसंगत बनाने का निर्णय लिया है। यह स्वागतयोग्य है। इस पहल से जटिलताओं को सहज बनाने में मदद मिलने की उम्मीद है। खासतौर पर उन 14 क्षेत्रों के लिए ऐसा किया जा रहा है जो उत्पादन से संबद्ध योजनाओं (पीएलआई) के तहत आते हैं। इस महीने प्रभावी हो रहे नए मानकों के अनुसार किसी कंपनी के आवेदन करने के बाद उसे मंजूरी के लिए संबंधित सरकारी विभागों तक भेजा जाएगा और उन्हें अपनी प्रतिक्रिया 28 दिन के भीतर गृह मंत्रालय के पास भेजनी होगी।

उम्मीद है कि इस प्रक्रिया में एक से डेढ़ महीने का वक्त लगेगा और कारोबारी ई-वीजा छह महीने के लिए वैध होगा। कई कारोबारों का कहना है कि वीजा संबंधी मसले उनके उत्पादन और उनकी उत्पादकता को प्रभावित कर रहे हैं। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल इन चिंताओं को दूर करेगी और उन कंपनियों के लिए भी वीजा जारी किए जाएंगे जो पीएलआई योजनाओं के अधीन नहीं आतीं।

सरकार ने वीजा की समस्या को दूर किया है लेकिन बहस का एक अन्य बड़ा मुद्दा है चीनी निवेश, खासकर नवीनतम आर्थिक समीक्षा में की गई टिप्पणियों के संदर्भ में। चूंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन की स्थिति मजबूत है इसलिए भारत के लिए स्वतंत्र रूप से इन नेटवर्क का अनिवार्य हिस्सा बन पाना असंभव है।

चीन के विनिर्माण का दायरा इतना व्यापक है कि भारत द्वारा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भूमिका बढ़ाने का कोई भी प्रयास चीन के हितों और परिचालन से टकराएगा। वीजा का मसला भी इस बात को रेखांकित करता है। हालात को देखते हुए भारत के पास दो विकल्प हैं- चीन की आपूर्ति श्रृंखला के साथ अधिक गहराई से जु़ड़ाव अथवा विनिर्माण क्षेत्र में चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना। सर्वेक्षण बाद वाले विकल्प के हित में है। उसने तुर्किये और ब्राजील का उदाहरण लिया है और तर्क दिया है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने से घरेलू विनिर्माण को गति मिलेगी और निर्यात में बढ़ोतरी होगी।

भारत में चीन के निवेश से उत्पादन में इजाफा होगा और इससे व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी। इतना ही नहीं इससे हम तकनीक संपन्न होंगे, प्रबंधन क्षमता में सुधार होगा और उत्पादन लागत में सुधार होगा। बहरहाल, ये लाभ कई चिंताओं और जोखिम के साथ आते हैं। चीन की पूंजी की आवक और उसका प्रभाव कई जोखिम अपने साथ लाएगा।

उदाहरण के लिए डेटा सुरक्षा में सेंध लगने से राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। सरकार ने 2020 में कहा था कि भारत के साथ भूसीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले निवेश को मंजूरी की आवश्यकता होगी। हालांकि अभी जो हालात हैं उनमें अहम क्षेत्रों मसलन सेमीकंडक्टर, ऑटोमोबाइल और दूरसंचार आदि के लिए कच्चे माल के मामले में भारत की चीनी आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है।

2023-24 में हमारा व्यापार घाटा बढ़कर 85 अरब डॉलर हो चुका है। केवल व्यापार घाटा पूरी तस्वीर नहीं दिखाता है क्योंकि चीन की कंपनियां अपनी आपूर्ति को वियतनाम जैसे देशों के रास्ते से भी भेज सकती हैं। मौजूदा नियमन और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं की नजर से यह एक जटिल माहौल है।

भूराजनीतिक हालात को देखते हुए सरकार के लिए चीनी निवेश के लिए राह खोलना आसान नहीं होगा। परंतु जैसा कि वीजा संबंधी निर्णय बताता है, यह भी सच है कि अगर भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला में सार्थक ढंग से जुड़ना है तो चीन की अनदेखी नहीं की जा सकती है। हमारे पास उपरोक्त सवालों के आसान जवाब नहीं हैं। आर्थिक समीक्षा की सराहना की जानी चाहिए कि उसने इस बहस की शुरुआत की जो शायद हमें स्वीकार्य हल तक पहुंचने में मदद पहुंचाएगी।

First Published : August 9, 2024 | 9:40 PM IST