facebookmetapixel
इस हफ्ते ₹57,000 करोड़ के IPO Unlock! क्या मार्केट में हलचल बढ़ेगी?Zomato–Swiggy पर नया टैक्स! हर ऑर्डर महंगा होगा?इथियोपिया ज्वालामुखी विस्फोट: एयर इंडिया, अकासा और इंडिगो ने कई उड़ानें कीं रद्द20% दौड़ेगा अदाणी का दिग्गज शेयर, ब्रोकरेज ने बढ़ाया टारगेट प्राइस; कहा- खरीदने का सही समयNifty Infra क्यों भाग रहा है? इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स ने बताई बड़ी वजहSmallcap stocks में निवेश से पहले कंपनी की असली ताकत कैसे पहचानें, जानिए हरिनी डेधिया की सलाहDefence Stocks टूटे! 200-DMA के नीचे फिसले दिग्गज शेयर – अब क्या होगा? चेक करें चार्टRam Temple flag hoisting: प्रधानमंत्री मोदी ने श्री राम मंदिर ​शिखर पर फहराई धर्मध्वजाChemical Stock: स्टॉक स्प्लिट + बोनस का डबल धमाका! शेयर लगातार दूसरे दिन 5% उछला, एक महीने में 130% रिटर्नSudeep Pharma IPO अप्लाई करने का आखिरी मौका, GMP दे रहा मजबूत लिस्टिंग का इशारा

Editoial: भारत–चीन संबंधों का नए सिरे से आकलन जरूरी

इस बात पर चर्चा काफी बढ़ी है कि भारत को चीन के साथ अपने रिश्तों का नए सिरे से आकलन करना चाहिए। खासतौर पर व्यापार और निवेश के क्षेत्र में

Last Updated- November 25, 2025 | 9:20 AM IST
India China Relations
Representational Image

सीमा पर अपेक्षाकृत शांति, भू-राजनीतिक माहौल में बदलाव और देश की अपनी आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हाल के महीनों में इस बात पर चर्चा काफी बढ़ी है कि भारत को चीन के साथ अपने रिश्तों का नए सिरे से आकलन करना चाहिए। खासतौर पर व्यापार और निवेश के क्षेत्र में। चीन को भारत के अहम अधोसंरचना ढांचे पर नियंत्रण या संवेदनशील व्यवस्थाओं और क्षेत्रों में प्रवेश देना खतरनाक होगा, इस बुनियादी धारणा को लेकर कोई प्रश्न नहीं है। फिर भी गलवान के बाद भारत ने चीन के साथ आर्थिक संबंध तोड़ने के लिए जो कदम उठाए थे, उन्हें बदले हुए हालात में दोबारा परखा जाना चाहिए। ऐसे में जैसा कि इस समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ, यह अच्छी बात है कि देश में व्यापारिक हालात को सहज बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक उच्चस्तरीय समिति ने संभवत: ऐसे पुनर्मूल्यांकन की प्रक्रिया पूरी कर ली है।

ऐसा लगता है कि पूर्व कैबिनेट सचिव और अब नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार के सामने विचार के लिए दो विकल्प पेश किए हैं। पहला विकल्प यह होगा कि तथाकथित प्रेस नोट 3 को वापस लिया जाए जो 2020 की एक अधिसूचना थी और जिसने किसी भी ऐसे देश से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रस्तावों के लिए अनिवार्य सरकारी अनुमोदन को निर्धारित किया, जिनकी भारत के साथ जमीनी सीमा साझा होती है। हालांकि इसमें चीन का नाम नहीं लिया गया था लेकिन जाहिर है इसके निशाने पर चीनी निवेश ही था। ध्यान देने वाली बात है कि इस प्रतिबंध के कुछ पहलू पहले ही कमजोर किए जा चुके हैं। इनमें क्रियान्वयन भी शामिल है। परंतु इस नोट को पूरी तरह वापस लेने से भारत द्वारा लागू आर्थिक सुरक्षा उपायों का बुनियादी पुनर्गठन संभव होगा। दूसरा विकल्प यह है कि निवेश प्रस्तावों को स्वत: मंजूरी दे दी जाए। बशर्ते कि चीनी निवेशकों की लाभकारी हिस्सेदारी 10 फीसदी से अधिक न हो। इसके लिए कुछ जटिल नियामकीय परिभाषाओं की आवश्यकता होगी।

समिति 10 फीसदी की सीमा पर कैसे पहुंची यह स्पष्ट नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए इस नतीजे पर पहुंचने के लिए कठोर विश्लेषण की मदद ली गई होगी। शायद बीते पांच साल में अस्वीकृत कई निवेश प्रस्तावों की। अगर जरूरी हो तो इस सीमा को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इसके बावजूद समिति के तर्कों के व्यापक सार को नकारा नहीं जा सकता है। सभी चीनी निवेशों को, यहां तक कि गैर रणनीतिक क्षेत्रों में भी, पूरी तरह से रोकना भारत के विकास और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में प्रवेश के लिए टिकाऊ विकल्प नहीं है। इसके साथ ही यह भी अहम है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे अहम क्षेत्रों में मुक्त प्रवेश भी नहीं दिया जा सकता। यह जरूरी है कि ऐसे आर्थिक सुरक्षा सिद्धांत तैयार किए जाएं जिन्हें इस मामले में लागू किया जा सके और जो भारत के अन्य महाशक्तियों के साथ आर्थिक रिश्तों को परिभाषित करें। उदाहरण के लिए रणनीतिक और गैर रणनीतिक क्षेत्रों को परिभाषित किया जा सकता है, लाभकारी हिस्सेदारी की सीमाएं कंपनी तथा अन्य कानूनों द्वारा लगाए गए नियंत्रण स्तरों के अनुरूप तय की जा सकती हैं और उचित पारदर्शिता नियम लागू किए जा सकते हैं ताकि किसी भी प्रतिबंध का असर वास्तविक लक्ष्यों पर पड़े, निर्दोष पक्षों पर नहीं।

यह प्रयास बिल्कुल सरल नहीं है, लेकिन यह ऐसा कदम है जिसे कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं बढ़ती भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में उठा रही हैं। भारत को पीछे नहीं रहना चाहिए। परंतु प्रारंभिक प्रेरणा यह होनी चाहिए कि प्रेस नोट 3 को दोबारा परिभाषित और संशोधित किया जाए, ताकि कुछ हद तक चीनी निवेश शुरू हो सके। बशर्ते वह निवेश स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय हित में हो, अत्यधिक निर्भरता न पैदा करे और नियंत्रण को विदेश न ले जाए। साथ ही, इस पर भी नए सिरे से विचार किया जाना जाना चाहिए कि चीन के साथ ऐसा आर्थिक संबंध किस तरह से बनाया जाए जो भारतीय स्वायत्तता और संप्रभुता को सुरक्षित रखे।

First Published - November 25, 2025 | 9:20 AM IST

संबंधित पोस्ट