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Editorial: ब्रिक्स के विस्तार से जुड़ी चिंताएं

आगामी 22 अगस्त को ब्रिक्स देशों यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और द​क्षिण अफ्रीका के शासनाध्यक्षों की मुलाकात होनी निर्धारित है।

Last Updated- August 01, 2023 | 9:59 PM IST
BRICS

आगामी 22 अगस्त को ब्रिक्स देशों यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और द​क्षिण अफ्रीका के शासनाध्यक्षों की मुलाकात होनी निर्धारित है। बहरहाल, इस बैठक से पहले ही कई अहम सवाल उभरने लगे हैं। इन सवालों का ताल्लुक इस समूह के विस्तार से है।

जानकारी के मुताबिक चीन इसमें नए सदस्यों को शामिल करने को लेकर उत्साहित है। ब्राजील और भारत इस विचार को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। वे चीन के रुख को लेकर भी बहुत उत्सुक नहीं हैं। यह मतांतर इस बात के मूल तक जाती है कि ब्रिक्स किस तरह का प्रतिनि​धित्व कर सकता है और क्या वह प​श्चिम के दबदबे वाले बहुपक्षीय ढांचे के विपरीत अपनी संभावित क्षमताओं का इस्तेमाल कर सकेगा।

यह स्पष्ट है चीन, रूस जैसे अन्य देशों को ब्रिक्स में लाना चाहेगा। ऐसे देश जो अपनी खास वजहों से प​श्चिम के ​खिलाफ चीन के साथ रहना चाहते हैं। इससे यह समूह प​श्चिम के नेतृत्व वाले ढांचों के समक्ष विकल्प तैयार करने में अ​धिक सीधे और विद्रोही तेवर के साथ पहल कर सकेगा।

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एक प्रस्तावित प्रत्याशी सऊदी अरब है जिसने हाल के वर्षों में प​श्चिम को नाराज भी किया है और पूर्वी ए​शियाई देशों खासकर चीन से संपर्क बढ़ाया है। यदि सऊदी अरब को समूह में शामिल किया जाता है तो चीन खुश होगा। भारत के लिए भी इसका विरोध करना आसान नहीं होगा क्योंकि आतंकवाद निरोधक गतिवि​धि को लेकर उसके साथ भारत के बहुत मजबूत संबंध हैं।

इसके बावजूद भारत यह नहीं चाहेगा कि ब्रिक्स चीन के समर्थक देशों का समूह बने। ऐसा होने से अंतरराष्ट्रीय मामलों में चीन की पहुंच मजबूत होगी जो जरूरी नहीं कि भारत के हित में हो। भारत चाहेगा कि अगर ब्रिक्स में कोई नया सदस्य देश आए तो वह उन देशों में से हो जो चीन के भूराजनीतिक वजन को लेकर अपनी-अपनी वजहों से शंकालु हों।

उदाहरण के लिए इंडोने​शिया। जानकारी के मुताबिक भारत और ब्राजील ने कहा है कि नए सदस्य देशों को सऊदी अरब जैसे तानाशाही देशों के बजाय स्थापित लोकतांत्रिक देश होना चाहिए जैसे कि इंडोने​शिया।

यह बहस ब्रिक्स की व्यापक समस्या को दर्शाती है। सन 2000 के दशक के आरंभ में जब इस समूह का उद्भव हुआ था तब यह बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह था जो वै​श्विक भू-आ​र्थिक व्यवस्था को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने की जुगत में थे। परंतु तब से अब तक चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकसित हुई है, उसने आंतरिक उदारीकरण की ​स्थिति को पलटा है और उसके आक्रामक पश्चिम विरोधी रुख ने ब्रिक्स को नई रंगत दी है।

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उभरती दुनिया के कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी कई अन्य उभरते देशों की तरह विदेश नीति के स्तर पर ऐसा रुख निकालने का प्रयास किया है जो चीन और प​श्चिम के तनाव से स्वतंत्र हो। जाहिर है ब्रिक्स के विकास को लेकर उनका कुछ खास दांव पर नहीं है।

भारत क्वाड और जी20 को अ​धिक प्राथमिकता देता है जबकि चीन ने उभरती दुनिया के साथ ताल्लुकात कायम करने के लिए अपने मंच तैयार कर लिए हैं। ऐसे में यह समूह प्रासंगिकता खो रहा है। ऐसे में यह संभावना कम है कि ब्रिक्स का विस्तार उसकी प्रासंगिकता वापस ला सकेगा।

बहरहाल, भारतीय नीति निर्माताओं ने साफ इरादा जताया है कि फिलहाल कोई खास ऊर्जा नहीं नजर आने पर भी ब्रिक्स को संचालित रखा जाए। वे शायद ऐसा इस संभावना को ध्यान में रखते हुए करना चाहते हैं कि भविष्य में वै​श्विक हालात बदल सकते हैं और समूह दोबारा प्रासंगिक हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो ब्रिक्स के विस्तार का तार्किक रुख यही होगा कि इसे चरणबद्ध तरीके से और सबकी सहमति से बढ़ाया जाए।

साथ ही इसे भूराजनीतिक मोर्चे पर तात्कालिक बदलावों से संचालित नहीं होना चाहिए। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब का प​श्चिम से मौजूदा मोहभंग। यह ​स्थिति समझदारी भरी है और भारतीय नेतृत्व के लिए अगस्त ​शिखर बैठक में इसे उचित ठहराने और बचाव करने में भी मदद मिलेगी।

First Published - August 1, 2023 | 9:59 PM IST

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