मई 2021 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक में एक महीने पहले की तुलना में 10.8 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इसके पहले अप्रैल में भी इस सूचकांक में 3.8 फीसदी की गिरावट आई थी। इसका मतलब है कि दो महीनों में ही इस सूचकांक में 14.1 फीसदी की खासी गिरावट आई है। इन दोनों महीनों में कोविड-19 संक्रमण की हालत सबसे खराब थी। साफ है कि देश भर के परिवारों को इस दौरान जिस भयावह दौर से गुजरना पड़ा उसकी वजह से उपभोक्ता धारणा पर बेहद प्रतिकूल असर देखा गया।
उपभोक्ता धारणा सूचकांक में मोटे तौर पर दो घटक होते हैं- मौजूदा आर्थिक स्थिति का सूचकांक और उपभोक्ता प्रत्याशा का सूचकांक। और अप्रैल-मई में इन दोनों ही सूचकांकों में तीव्र गिरावट देखी गई। इस दौरान मौजूदा आर्थिक स्थिति का सूचकांक 16.1 फीसदी लुढ़क गया जबकि उपभोक्ता प्रत्याशा के सूचकांक में 12.9 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई।
मौजूदा आर्थिक हालात के सूचकांक में अकेले मई में ही 13.9 फीसदी की भारी गिरावट आई। यह परिवारों की आमदनी को लेकर बिगड़ती धारणा को दर्शाने के अलावा टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद को लेकर परिवारों की धारणा में भी गिरावट को बयां करता है। दोनों ही मोर्चों पर मई में धारणा बेहद नकारात्मक थी।
एक साल पहले की तुलना में अपनी आमदनी को लेकर परिवारों की धारणा मई में बुरी तरह बिगड़ी। सिर्फ 3.6 फीसदी परिवारों ने एक साल पहले की तुलना में आमदनी में मामूली इजाफे की बात कही। यह किसी भी महीने में आय में वृद्धि का न्यूनतम अनुपात था।
मई के चार हफ्तों में यह अनुपात क्रमश: 3.6 फीसदी, 3.1 फीसदी, 4 फीसदी और 3 फीसदी रहा। उसके बाद 6 जून को समाप्त सप्ताह में तो सिर्फ 2.3 फीसदी परिवारों ने अपनी आमदनी में साल भर पहले की तुलना में किसी तरह के इजाफे की बात कही। इस तरह आय में वृद्धि वाले परिवारों का अनुपात मई 2021 की तुलना में भी नीचे चला गया।
दरअसल कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की खरीद को लेकर परिवारों की धारणा में जारी सुधार को एक हद तक पलटने का काम किया है। अप्रैल 2021 में करीब 48 फीसदी लोगों ने कहा था कि एक साल पहले की तुलना में टिकाऊ उत्पाद खरीदने का यह बदतर वक्त है। मई 2021 में यह अनुपात और भी बढ़ते हुए 55 फीसदी हो गया। सिर्फ तीन फीसदी परिवारों ने ही यह माना था कि टिकाऊ उत्पाद खरीदने के लिए वक्त अच्छा है।
जहां अप्रैल एवं मई में उपभोक्ता धारणा एकदम धराशायी होती नजर आई, वहीं अब ऐसा लगता है कि हालात में बदलाव होने वाला है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक संभवत: मई के मध्य में अपने निम्नतम स्तर पर जा चुका है। गत 16 मई को समाप्त सप्ताह में यह सूचकांक 47.3 फीसदी था। उसके बाद से इसमें थोड़ा सुधार देखा गया है और 13 जून को खत्म सप्ताह में यह 48.9 फीसदी तक पहुंच गया। वापसी दिखने लगी है लेकिन अभी हल्की है। इसके अलावा धारणा की बहाली शहरी एवं ग्रामीण दोनों इलाकों में एकसमान नहीं है।
असल में, दूसरी लहर के चरम पर रहने का वक्त भी शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग रहा। लेकिन दोनों ही जगहों पर मई का महीना खत्म होने तक उपभोक्ता धारणा में अच्छी-खासी गिरावट देखी गई। अप्रैल में शहरी क्षेत्र की धारणा 9.6 फीसदी गिरी थी, वहीं ग्रामीण इलाके की धारणा सिर्फ 0.9 फीसदी ही कम हुई। लेकिन मई में हालात पलटते हुए नजर आए। मई में शहरी धारणा में 1.5 फीसदी का सुधार देखा गया जबकि ग्रामीण धारणा 17 फीसदी तक लुढ़क गई। इन दोनों इलाकों में उपभोक्ता धारणा पर दोनों ही महीनों का सम्मिलित असर नकारात्मक ही रहा है। लेकिन ग्रामीण भारत की हालत कहीं अधिक खराब रही है।
अप्रैल-मई के दौरान शहरी इलाकों में उपभोक्ता धारणा में कुल 7.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि ग्रामीण भारत के मामले में यह अनुपात 17.7 फीसदी के बड़े स्तर पर रहा। ग्रामीण भारत में उपभोक्ता धारणा में देखी गई बड़ी गिरावट उस आम धारणा के अनुरूप ही है कि कोरोनावायरस संक्रमण के ग्रामीण इलाकों में फैलने से वहां के लोगों की जिंदगी एवं आजीविका पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है। एक तरह से उपभोक्ता धारणा सूचकांक शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के फासले को बढ़ाने का ही काम करती है। मार्च एवं मई के बीच ग्रामीण भारत में उपभोक्ता धारणा शहरी क्षेत्रों में रही गिरावट के दोगुने से भी अधिक रही।
ग्रामीण भारत भविष्य को लेकर खासा नकारात्मक भी हो गया। ग्रामीण भारत का भावी प्रत्याशा सूचकांक मई में 15.3 फीसदी तक नीचे चला गया। अप्रैल एवं मई के महीनों में भावी प्रत्याशा में कुल गिरावट 16.9 फीसदी रही। भविष्य को लेकर शहरी भारत का परिदृश्य थोड़ा अलग है। अप्रैल में 10.4 फीसदी तक की गिरावट के बाद मई में शहरी क्षेत्र की प्रत्याशा 3.5 फीसदी तक सुधर गई। इसका नतीजा यह हुआ कि अप्रैल-मई 2021 में शहरी भारत के भावी प्रत्याशा सूचकांक में सम्मिलित गिरावट 7.3 फीसदी ही रही।
इन महीनों में उपभोक्ता धारणा में गिरावट के मूलत: एक ग्रामीण परिघटना ही होने से हालात में सुधार भी ग्रामीण भारत में ही घटित होते नजर आ रहे हैं। उपभोक्ता धारणा सूचकांक में दिखा हालिया सुधार भी मूलत: ग्रामीण भारत की ही देन है। गत 16 मई को समाप्त सप्ताह में उपभोक्ता धारणा रिकॉर्ड गिरावट पर थी। लेकिन उसके बाद के चार हफ्तों में ग्रामीण भारत का धारणा सूचकांक 11.4 फीसदी तक उछल चुका है जबकि शहरों में यह 9 फीसदी गिरा है। हालात सुधरने में अभी लंबा वक्त लगेगा। फरवरी या मार्च 2021 के हालात तक पहुंचने के लिए अभी इंतजार करना होगा। और कोविड के आने से पहले के स्तर पर पहुंचने में तो काफी देर है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)