आयकर विभाग की 14 दिसंबर को हुई बैठक के बाद जारी विज्ञप्ति में उस आशंका की पुष्टि हुई है जो भारतीय वित्तीय प्रणाली में कई लोगों के मन में कुछ परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (एआरसी) के परिचालन को लेकर है। देश में चार ऐसी कंपनियों के 60 परिसरों में जांच एवं जब्ती अभियानों में एआरसी और कर्जधारकों के बीच ‘सांठगांठ’ का पता चला है।
इन चारों कंपनियों पर अनुचित तरीके से फंसी परिसंपत्तियां (फंसे ऋण) खरीदने का आरोप है। इन ऋणों के एवज में अमानत रखी गईं वस्तुओं के मूल्य की तुलना में खरीदे गए फंसे ऋण काफी कम थे। इतना ही नहीं, ऐसे ऋणों के लिए कर्जदाताओं को एआरसी की तरफ से दी गई नकद रकम -कुल मूल्य का अमूमन 15 प्रतिशत- ऋण नहीं चुकाने वाले कर्जदाताओं की तरफ से आई थी। यह रकम कई फर्जी कंपनियों के माध्यम से दी गई थी। कर्जधारक, एआरसी के साथ कर्जदाता भी जांच की आंच से नहीं बच सकते हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के साथ दूसरी जांच एजेंसियां भी इस कांड की तह तक जाएंगी जिससे एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छवि खराब हो सकती है।
इस पृष्ठभूमि में हम एआरसी पर आरबीआई की एक समिति की सिफारिश पर विचार करते हैं। एआरसी फंसे ऋण खरीदकर ऋण वसूलती हैं और इस प्रक्रिया में मुनाफा कमाती हैं। देश में ऐसी 28 बड़ी, मझोली और छोटी-कंपनियां हैं। इन सिफारिशों में वित्तीय परिसंपत्तियों के अधिग्रहण और उनके समाधान एवं पुनगर्ठन, एआरसी के लिए पूंजी एवं वित्त पोषण की आवश्यकता, सिक्योरिटी रिसीट (एसआर) की उपलब्धता एवं उनका कारोबार, पारदर्शिता एवं संचालन सहित एआरसी का परिचालन दुरुस्त करने के लिए कानूनी एवं नियामकीय बदलाव शामिल हैं। हम इनमें कुछ महत्त्वपूर्ण सुझावों पर चर्चा करते हैं।
एआरसी प्रायोजक के लिए पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत की जा रही है। इसका उद्देश्य मजबूत इकाइयों से वित्त की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना है। शुद्ध स्व-नियंत्रित कोष का आकार भी 100 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 200 करोड़ रुपये किया जा रहा है। इससे छोटी एआरसी द्वारा येन केन प्रकारेण वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीदारी का सिलसिला थमना चाहिए क्योंकि उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं होती है।
एआरसी को वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) स्थापित करने की अनुमति देना एक स्वागत योग्य कदम है। ये फंड सिक्योरिटी ऐसेट्स (एसआर) में निवेश करने के साथ ही खस्ताहाल मगर संभावनाओं से भरपूर कंपनियों को उबारने में भी मदद करेंगे। एसआर में निवेश करने वाले पात्र खरीदारों का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है। इससे उपलब्ध निवेशकों की संख्या बढ़ेगी और एसआर का बाजार भी अधिक सुदृढ़ होगा।
नियमों के अनुसार किसी एआरसी को फंसे ऋण खरीदते समय कम से कम 15 प्रतिशत नकदी की पेशकश करनी चाहिए और शेष एसआर के रूप में आ सकती है। एआरसी के लिए स्वयं एसआर का 15 प्रतिशत हिस्सा खरीदना अनिवार्य है। ऐसी सिफारिश की गई है कि एआरसी को उस स्थिति में एसआर में न्यूनतम निवेश 15 प्रतिशत से घटा कर 2.5 प्रतिशत करना चाहिए जब उनके एसआर में निवेश करने वाले निवेशक मौजूद हैं। दूसरे मामलों में यह सीमा 15 प्रतिशत रहनी चाहिए। इससे एआरसी को फंसे ऋण खरीदने के लिए अतिरिक्त संसाधन मिल जाएंगे वहीं बिक्रीकर्ता बैंकों को भी अधिक नकदी मिलेगी।
सबसे अधिक कठिन लक्ष्य एसआर के लिए द्वितीयक बाजार तैयार करना है क्योंकि यह उपलब्ध नहीं है। पहली बात तो कीमतों तालमेल नहीं है क्योंकि अधिकांश एसआर के साथ परिसंपत्ति के रूप में कोई गारंटी नहीं होती है। दूसरी कारण यह है कि एआरसी अपने द्वारा जारी एसआर उसी सीमा तक भुना सकती हैं जहां तक वे फंसे ऋणों के समाधान में सफल रहती हैं। समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि एसआर के लिए बैंक आधार मूल्य तय करे। इसका एसआर के मूल्य पर असर होगा और एआरसी फंसे ऋणों के समाधान करने के लिए अधिक से अधिक उत्साह दिखाएंगी। इनके अलावा समिति ने कुछ दूसरे अहम सुझाव भी दिए हैं। मगर कुछ और बातें भी हैं जिन पर विचार किया जा सकता है। आदर्श रूप में प्रबंधन फीस को वास्तविक वसूली/एसआर भुनाने से जोड़ा जाना चाहिए न कि शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य से। इससे कमाई वास्तविक वसूली के आधार पर होगी न कि केवल प्रबंधन फीस के आधार पर।
एआरसी का कारोबारी प्रारूप इस बात पर निर्भर करता है कि कर्जदाता एआरसी को फंसे ऋण बेचने में कितनी गंभीरता दिखाते हैं। समिति ने फंसे ऋण की पहचान, इनका मूल्यांकन एवं आरक्षित मूल्य आदि को लेकर कई बातों का जिक्र किया है मगर सारा दारोमदार इस पर निर्भर करेगा कि बैंकरों पर इन नियमों का पालन करने के लिए दबाव डाला जाता है या नहीं। एआरसी के निदेशकमंडल में कम से कम 50 प्रतिशत स्वतंत्र निदेशकों की अनिवार्यता के विषय पर समिति ने कुछ नहीं कहा है। एआरसी की अवधि निश्चित किए जाने के बारे में भी क्यों कुछ नहीं कहा गया है जबकि पूरी दुनिया में ऐसा प्रावधान है?
मगर जब तक एआरसी और कर्जधारक/बैंकरों के बीच सांठगांठ खत्म नहीं होगी तब तक एआरसी के काम-काज पर इन व्यापक समीक्षा का कोई ठोस नतीजा नहीं निकलेगा। समिति एआरसी द्वारा अपनाए जाने वाले अनुचित कार्य व्यवहार पर चुप है। इससे एआरसी क्षेत्र की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। नियामकीय पर्यवेक्षण और एआरसी की निगरानी में ठोस बदलाव की जरूरत है। इसके अलावा अन्य नियमित इकाइयों की तर्ज पर नियमों का उल्लंघन करने वाली एआरसी को दंडित किया जाना चाहिए। इस मोर्चे पर नियामक की असफलता पर एक समिति पर्दा नहीं डाल सकती।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में मुख्य सलाहकार हैं।)