facebookmetapixel
Luxury Cars से Luxury Homes तक, Mercedes और BMW की भारत में नई तैयारीFiscal Deficit: राजकोषीय घाटा नवंबर में बजट अनुमान का 62.3% तक पहुंचाAbakkus MF की दमदार एंट्री: पहली फ्लेक्सी कैप स्कीम के NFO से जुटाए ₹2,468 करोड़; जानें कहां लगेगा पैसाYear Ender: युद्ध की आहट, ट्रंप टैरिफ, पड़ोसियों से तनाव और चीन-रूस संग संतुलन; भारत की कूटनीति की 2025 में हुई कठिन परीक्षाYear Ender 2025: टैरिफ, पूंजी निकासी और व्यापार घाटे के दबाव में 5% टूटा रुपया, एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बनाStock Market 2025: बाजार ने बढ़त के साथ 2025 को किया अलविदा, निफ्टी 10.5% उछला; सेंसेक्स ने भी रिकॉर्ड बनायानिर्यातकों के लिए सरकार की बड़ी पहल: बाजार पहुंच बढ़ाने को ₹4,531 करोड़ की नई योजना शुरूVodafone Idea को कैबिनेट से मिली बड़ी राहत: ₹87,695 करोड़ के AGR बकाये पर लगी रोकYear Ender: SIP और खुदरा निवेशकों की ताकत से MF इंडस्ट्री ने 2025 में जोड़े रिकॉर्ड ₹14 लाख करोड़मुंबई में 14 साल में सबसे अधिक संपत्ति रजिस्ट्रेशन, 2025 में 1.5 लाख से ज्यादा यूनिट्स दर्ज

म्यूजियम के भीतर सबक सीख रहे हैं बच्चे

Last Updated- December 05, 2022 | 5:03 PM IST

जब हम म्यूजियम की बात करते हैं तो हमारे जेहन में दुर्लभ और पुरानी चीजें की तस्वीर उभरती है।


लेकिन अब दिल्ली समेत कई शहरों के कुछ म्यूजियमों में आपको कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। अगली बार जब आप म्यूजियम घूमने पहुंचंगे तो आपको शायद यहां दुर्लभ चीजों के अलावा नन्हे बच्चे भी मिल जाएं। भोपाल में पहले से ही म्यूजियम के अंदर स्कूल चल रहे हैं।


इसका श्रेय प्रदीप घोष नामक शख्स को जाता है। भोपाल के प्रदीप के दिमाग में 4 साल पहले यह आइडिया आया था। उस वक्त वह स्कूल से महरूम बच्चों के लिए पढ़ाई का वैकल्पिक जरिया ढूंढने में जुटे थे। पूर्व आईटी प्रोफेशनल घोष ने 10 साल पहले अपने पेशे को अलविदा कर बच्चों के लिए कुछ करने का मन बनाया। आईटी सेक्टर छोड़ने के बाद उन्होंने प्लान इंटरनैशनल संस्था में नौकरी कर ली।


यहां काम करने के कुछ दिनों के बाद उन्हें लगा कि लोगों के हितों के लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी और एकीकृत सामाजिक जागरूकता संगठन (ओएसिस)  नामक संस्था बनाई। भोपाल में म्यूजियम स्कूल 3 साल पहले खोला गए थे। इसका मकसद शहरी इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता में व्याप्त असमानता को दूर करना था।


अब इस तर्ज पर देश के अन्य महानगरों में भी म्यूजियम स्कूल खोलने की कवायद चल रही है। अगले महीने दिल्ली में भी पहला म्यूजियम स्कूल खोला जाएगा। इसके अलावा बेंगलुरु और चेन्नै में भी ऐसे स्कूल खोलने की योजना है। घोष कहते हैं कि उनका सपना था कि एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का, जिसमें बंगाल के शांति निकेतन, पुडूचेरी के अरबिंदो आश्रम और जापानी शिक्षा प्रणाली की अच्छी चीजों को शामिल किया जा सके।


उन्होंने भोपाल के म्यूजियम स्कूल में इन सारे तत्वों का समावेश किया है। घोष ने बताया कि भोपाल के नैशनल म्यूजियम स्थित उनके स्कूल के बच्चों को पहला पाठ मानवता का पढ़ाया गया। वहां पर एक ऊंची पहाड़ी जैसी जगह को ऐसी शक्ल दी गई, जिसके जरिये देश के विभिन्न जनजातीय समूहों को दिखाया जा सके। इनमें तीन घरों को दिखाया गया है, जो पूर्वोत्तर के जनजातीय समुदायों को परिलक्षित करते हैं।


इस स्कूल में तकरीबन 20 शिक्षक हैं। ये लोग विभिन्न कॉलेजों के छात्र हैं  इन शिक्षकों और म्यूजियम के कर्मचारियों को समय-समय पर बाल मनोविज्ञान के बारे में जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण शिविर का भी आयोजन किया जाता है। इस मिशन में घोष को सिर्फ उन लोगों को पैसा देना पड़ता है, जो झुग्गी बस्तियों से इन बच्चों को स्कूल भेजने का काम करते हैं।


 ओएसिस भोपाल की झुग्गी बस्तियों के 120 बच्चों को रोज दोपहर 1 बजे के बाद अपने म्यूजियम स्कूलों में लाता है। इन बच्चों को समूह में बांट दिया जाता है। बच्चों के समूहों को बारी-बारी से म्यूजियम स्कूलों के अंदर ले जाया जाता है।
 
घोष ने बताया कि बच्चों को लकड़ी और मिट्टी से जुड़ी कलाओं के बारे में भी सिखाया जाता है। साथ ही जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें व्यापार प्रबंधन और कारोबार से जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में बताया जाता है। इन बच्चों का नैशनल ओपन स्कूल में रजिस्ट्रेशन भी कराया जाता है, ताकि वह जब भी डिग्री प्राप्त करने की जरूरत महसूस करें, इसके लिए परीक्षा भी दे सकें।


इन बच्चों में कई कूड़ा बीनने का काम करते हैं और स्कूल आने की वजह से उनका यह काम प्रभावित नहीं हुआ है। यहां तक कि कुछ बच्चे अब सामान्य स्कूल भी जाने लगे हैं। हालांकि इन सारे बच्चों ने अनोखे म्यूजियम स्कूल का दामन नहीं छोड़ा है। इस पहल की सफलता से उत्साहित घोष म्यूजियम स्कूल का वक्त बढ़ाकर शाम 5 बजे तक करने की योजना पर विचार कर रहे हैं।


घोष के इस स्कूल के प्रशंसकों में स्कूल के बच्चों के अलावा म्यूजिम के अंदर काम करने वाले लोग भी शामिल हैं। भोपाल में म्यूजियम स्कूल 2005 में यहां के 3 म्यूजियमों के साथ मिलकर खोला गया था। इन म्यूजियमों में द रीजनल साइंस सेंटर, नैशनल म्यूजियम ऑफ मैनकाइंड और म्यूजियम ऑफ नैचुरल हिस्ट्री शामिल हैं।


घोष की संस्था ओएसिस को दिल्ली के 5 म्यूजियमों में भी स्कूल खोलने की मंजूरी मिल चुकी है।  घोष के मुताबिक, म्यूजियम बने-बनाए स्कूल हैं, जो बच्चों के इंतजार में बेकरार है। उनका यह आइडिया दिल्ली, चेन्नई और बेंगलुरु के गैरसरकारी संस्थानों और सामाजिक कार्यों से जुड़ी अन्य संस्थाओं को भी खासा लुभा रहा है।

First Published - March 25, 2008 | 11:56 PM IST

संबंधित पोस्ट