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बैंकिंग साख: RBI की मौद्रिक नीति की पिच का आकलन कितना जरूरी

यह पहली बार है जब आम चुनाव के नतीजे आने के एक दिन बाद, आरबीआई की नीतिगत बैठक हो रही है।

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- June 05, 2024 | 10:15 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति को क्रिकेट मैच की तरह समझने की कोशिश करते हैं। छह सदस्यों वाली आरबीआई की दर निर्धारण करने वाली समिति, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) एक टीम की तरह है और आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास इसके कप्तान हैं।

टेस्ट मैच से पहले कप्तान पिच का बारीकी से निरीक्षण करता है ताकि खेलने की रणनीति बनाई जा सके। हरी पिच पर खेलना, समतल पिच या सूखी पिच पर खेलने से काफी अलग होता है। इसी तरह धूल भरी पिच, कप्तान को कुछ अलग करने का विचार देती है। इसमें मौसम भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

टीम जब हवा वाले मौसम में क्रिकेट खेलती है या फिर ज्यादा धूप वाले दिन खेलती है, तब भी उसमें फर्क होता है। इसी तरह जानते हैं कि ताजा नीति के लिए पिच कैसी है? और मौसम कैसा है?

शेयर बाजार ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं और यही बात सोने की कीमतों पर भी लागू होती है। बॉन्ड प्रतिफल भी शीर्ष स्तर के मुकाबले निचले स्तर पर पहुंच गया है। (बॉन्ड कीमतें और प्रतिफल दोनों ही अलग दिशा में जा रहे हैं) 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 7 प्रतिशत के करीब है और यह 7.62 प्रतिशत के शीर्ष स्तर से नीचे हैं। जब मौद्रिक नीति का मैच इस तरह की पिच पर खेला जाता है तब इसके नतीजे का अनुमान लगाना आसान है।

यह पहली बार है जब आम चुनाव के नतीजे आने के एक दिन बाद, आरबीआई की नीतिगत बैठक हो रही है। अप्रैल की शुरुआत में रिजर्व बैंक के 90वें वर्षगांठ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘मैं अगले 100 दिनों तक चुनाव में व्यस्त हूं। आपके पास अभी सोचने के लिए पर्याप्त समय है। शपथ लेने के बाद आपके पास बहुत काम होगा।’

प्रधानमंत्री ने इस बात का जिक्र किया कि आरबीआई के मुद्रास्फीति के लक्षित रूपरेखा के चलते मूल्य दबाव को संयमित करने में मदद मिली है। केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति और वृद्धि में संतुलन बनाने जैसे ‘अनूठे उपायों‍’ पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘अगले दशक में, आरबीआई को सबसे अधिक प्राथमिकता वृद्धि को देनी चाहिए, साथ ही भरोसे को बनाए रखने और स्थिरता पर ध्यान देना चाहिए।’

वित्त वर्ष 2024-25 की अप्रैल की पहली मौद्रिक नीति में कोई हैरान करने लायक बात नहीं हुई। एमपीसी ने लगातार आठवीं बैठक में रीपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया। इसके अलावा नीतिगत रुख में भी कोई बदलाव नहीं हुआ। इसमें ‘बाजार से पूंजी आपूर्ति कम करने का रुख’ बना रहा। भारतीय केंद्रीय बैंक की दर निर्धारण समिति के छह सदस्यों में से पांच ने नीतिगत दर और रुख दोनों की यथास्थिति के लिए मतदान किया।

फरवरी के अनुमानों में, वित्त वर्ष 2025 में आरबीआई की वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमान में कोई बदलाव नहीं हुआ। चालू वित्त वर्ष के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7 प्रतिशत और सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया था। आरबीई ने फरवरी में कहा था कि वृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों अनुमानों के जोखिम समान रूप से संतुलित थे।

सवाल यह है कि आखिरी मौद्रिक नीति के बाद से क्या बदला है? वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी के साथ-साथ ब्याज दरों में कटौती की बात अब खत्म हो गई है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने अप्रैल में मुख्य पुनर्वित्त परिचालन के ब्याज दर और सीमांत उधार सुविधा तथा जमा सुविधाओं पर ब्याज दरों को क्रमशः 4.50 प्रतिशत, 4.75 प्रतिशत और 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था और संभावना है कि मई में मुद्रास्फीति में वृद्धि के बावजूद 6 जून को दर में कटौती की जाएगी। लेकिन बाजार को आने वाले महीने में दरों में लगातार कटौती की उम्मीद नहीं है बल्कि उन्होंने इस साल सिर्फ एक और कटौती पर दांव लगाने की उम्मीदें कम कर दी हैं। साल की शुरुआत में छह कटौती तक की उम्मीदें थीं।

मई में अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व ने लगातार छठी बार फेडरल फंड दर के 5.25-5.5 प्रतिशत के स्तर में कोई बदलाव नहीं किया है जो 23 साल का उच्चतम स्तर है। क्या यह अगली बैठक में दरों में कटौती करेगा? इसकी संभावना नहीं है। दरअसल स्थिर मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई फिलहाल जारी रहेगी।

मई में, बैंक ऑफ इंगलैंड (बीओई) ने भी लगातार छठी बार अपनी दर को 5.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा। बीओई के गवर्नर का मानना है कि ‘चीजें सही दिशा में बढ़ रही हैं इसलिए वे आशावादी हैं’ लेकिन आधार दर में कटौती करने से पहले उन्हें मुद्रास्फीति में गिरावट के ‘अधिक प्रमाण’ देखने की जरूरत है।

दरों में कटौती तो जरूर होगी लेकिन साल की शुरुआत में बाजार जितनी दर कटौती पर दांव लगा रहे थे अब उतनी नहीं लगा पा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर एक साल तक के ब्याज दरों का रुझान भारत में रातों-रात होने वाले इंडेक्स स्वैप के बराबर है। पहले जितनी उम्मीद थी अब ब्याज दरों में उतनी कटौती की संभावना नहीं है।

एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम विनिर्माण से जुड़े कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि है। तेल सहित अन्य जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं। इससे पहले थोक मूल्य सूचकांक और फिर सीपीआई मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। अप्रैल 2024 में सीपीआई मुद्रास्फीति, मार्च के 4.9 प्रतिशत से मामूली रूप से घटकर 4.8 प्रतिशत हो गई। गैर-खाद्य, गैर-तेल बुनियादी मुद्रास्फीति पिछले 11 महीनों में लगातार घटकर अप्रैल में 3.2 प्रतिशत हो गई जो मार्च में 3.3 प्रतिशत थी और यह मौजूदा सीपीआई (2012=100) श्रृंखला में सबसे कम है, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति अप्रैल में 7.9 प्रतिशत हो गई जो मार्च में 7.7 प्रतिशत थी।

मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सीपीआई मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से नीचे जा सकती है लेकिन फिर इसमें तेजी आएगी और यह 5 प्रतिशत को पार कर सकती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मुद्रास्फीति का जिन्न अब भी बोतल में नहीं बंद है और दास ब्याज दर में कटौती पर विचार करने से पहले इस लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं। खाद्य कीमतों को लेकर जोखिम की स्थिति बनी हुई है और यह काफी हद तक मॉनसून की दिशा पर निर्भर करेगा।

अप्रैल में नीतिगत बयान में कहा गया था कि मजबूत वृद्धि नीति, मूल्य स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नीतिगत गुंजाइश दे रही है। यह रफ्तार जारी है। मार्च तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 7.8 प्रतिशत बढ़ी जिससे वार्षिक वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत हो गई। जनवरी-मार्च अवधि में वृद्धि दिसंबर तिमाही में 8.6 प्रतिशत के विस्तार से कम है लेकिन बाजार की उम्मीद से कहीं अधिक है।

जून की मौद्रिक नीति हर तरीके से यथास्थिति वाली नीति होगी। इसका अर्थ यह है कि दर या रुख में कोई बदलाव नहीं होगा। आरबीआई अगस्त में अपने रुख (तटस्थता के लिए) में बदलाव कर सकता है जब मौजूदा एमपीसी अपनी आखिरी बैठक करेगी।

हम दर में कटौती कब देखेंगे? ऐसी फिलहाल कोई संभावना नहीं है। कुछ वक्त तक के लिए आरबीआई मॉनसून की स्थिति और वित्त वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट पर नजर रखेगा। अगर वृद्धि में कोई कमी होगी तब ही हमें जल्द ही दरों में कटौती देखने को मिलेगी लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है। एक अन्य प्रेरणादायक कारक अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर में कटौती हो सकती है।

भारत में दर में कटौती अक्टूबर से पहले नहीं होगी और यह तभी होगा जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व सितंबर में दर में कटौती करता है। लेकिन, अभी जैसी स्थिति है उसमें इस बात को लेकर किसी को हैरानी नहीं होगी अगर आरबीआई दर कटौती को दिसंबर या फरवरी 2025 तक के लिए टाल दे।

First Published : June 5, 2024 | 10:15 PM IST