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बैंकिंग साख: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बदलते आयाम

कुल फंसे कर्ज यानी गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) वित्त वर्ष 2024 में 12 वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच कर 2.8 प्रतिशत हो गईं।

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- July 12, 2024 | 9:03 PM IST

भारतीय बैंक अब तक के सबसे मजबूत दौर में हैं। बैंकिंग उद्योग की संपत्ति गुणवत्ता के संदर्भ में यह उद्योग के लिए सबसे अच्छा वक्त है। कुल फंसे कर्ज यानी गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) वित्त वर्ष 2024 में 12 वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच कर 2.8 प्रतिशत हो गईं। फंसे कर्ज के लिए अलग से पूंजी प्रावधान के बाद शुद्ध एनपीए 0.6 फीसदी के ऐतिहासिक स्तर पर है।

पिछले दशक के अंतिम कुछ वर्षों में कुछ बैंकों की हालत बेहद नाजुक थी। इस क्षेत्र का इलाज डॉक्टर रघुराम राजन ने किया था और इनकी नियमित स्वास्थ्य जांच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) में हो रही थी। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में सुधार के लिए पुनर्पूंजीकरण कोष के रूप में सही खुराक दी और आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर ऊर्जित पटेल ने बैंकों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी चीजों और परहेज करने वाली चीजों के बारे में बताया।

अब हम इस पर विचार करते हैं कि मौजूदा दशक के पिछले चार वर्षों में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद स्थिति कैसे बदली है। मार्च 2020 में बैंकिंग तंत्र का सकल एनपीए 8.5 प्रतिशत (सितंबर 2019 में 9.3 प्रतिशत) और शुद्ध एनपीए 3 प्रतिशत था। वर्ष 2018 के मार्च महीने में सकल एनपीए 11.6 प्रतिशत था जबकि शुद्ध एनपीए 6.1 प्रतिशत था जो मौजूदा चरण में शीर्ष पर था।

पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि उद्योग, कृषि, सेवा और खुदरा क्षेत्र के लिए बैंकों के जोखिम का स्वरूप कैसे बदला है? मार्च 2020 में उद्योग को दिए गए ऋण में बैंकों का सकल एनपीए 14.2 प्रतिशत (सितंबर 2018 में 20.5 प्रतिशत से कम), कृषि ऋण 10.1 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र 7.2 प्रतिशत और खुदरा 2 प्रतिशत था।

अगर हम कुल संकटग्रस्त ऋण पर नजर डालें तो आंकड़े थोड़े अधिक थे। उद्योग के लिए यह 14.8 प्रतिशत, कृषि के लिए 10.3 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र के लिए 7.6 प्रतिशत और खुदरा के लिए 2.1 प्रतिशत था। संकटग्रस्त ऋण में वे ऋण शामिल होते हैं जिन्हें पहले से ही फंसी संपत्ति या एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और इसमें अन्य ऋण भी शामिल होते हैं जिनकी फंसे कर्ज में तब्दील होने की अधिक संभावना होती है।

इस साल मार्च महीने में क्या स्थिति थी? कृषि क्षेत्र में फंसा कर्ज सबसे उच्च स्तर पर यानी 6.2 प्रतिशत के स्तर पर था और उद्योग दूसरे पायदान (3.5 प्रतिशत) पर था। इसके बाद सेवा क्षेत्र (2.7 प्रतिशत) और निजी ऋण (1.2 प्रतिशत) का स्थान है। संकटग्रस्त अग्रिम के लिहाज से देखें तो ये आंकड़े कृषि क्षेत्र के लिए 6.5 प्रतिशत, उद्योग के लिए 4.8 प्रतिशत, सेवाओं के लिए 3.8 प्रतिशत और निजी ऋण के लिए 2.1 प्रतिशत थे।

इसके साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि उद्योग के उप क्षेत्रों का प्रदर्शन कैसा रहा है? मार्च 2020 में रत्न एवं आभूषणों में सकल एनपीए सबसे ज्यादा करीब 24.8 प्रतिशत था और इसके बाद निर्माण क्षेत्र (24.3 प्रतिशत), इंजीनियरिंग (20 प्रतिशत), खनन एवं उत्खनन (19.8 प्रतिशत), बुनियादी धातु (16.2 प्रतिशत), खाद्य प्रसंस्करण (14.5 प्रतिशत), कागज और कागज से बने उत्पाद (13.6 प्रतिशत), बिजली (13.5 प्रतिशत) और बुनियादी ढांचा एवं कपड़े (प्रत्येक 13.1 प्रतिशत) का स्थान था।

जहां तक इन क्षेत्रों में बैंकों के निवेश की बात है तब हमने यह पाया कि बुनियादी ढांचा इस सूची में शीर्ष पर था जो उद्योग को दिए गए कुल ऋण (36.2 प्रतिशत) में से एक-तिहाई से अधिक था। इसके बाद बिजली (17.5 प्रतिशत) और बुनियादी धातु (11.3 प्रतिशत) का स्थान था। बाकी अन्य क्षेत्रों की हिस्सेदारी एक अंक में थी।

इस साल मार्च में रत्न एवं आभूषणों में सकल एनपीए अधिकतम रहा लेकिन आंकड़ा नाटकीय रूप से 24.8 प्रतिशत से घटकर 6.7 प्रतिशत हो गया। निर्माण क्षेत्र 6.5 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर, खाद्य प्रसंस्करण तीसरे (5.5 प्रतिशत), कपड़ा चौथे (5.2 प्रतिशत) और इंजीनियरिंग पांचवें (5 प्रतिशत) स्थान पर रहा।

उद्योग के किसी भी उप-क्षेत्र में सकल एनपीए 5 प्रतिशत से अधिक नहीं है। दो अन्य क्षेत्र में सकल एनपीए 4 प्रतिशत से अधिक है और ये हैं बुनियादी ढांचा (बिजली को छोड़कर) और कागज एवं कागज उत्पाद। मार्च 2020 में बैंकिंग क्षेत्र के कुल ऋण में बड़े उधारकर्ताओं की हिस्सेदारी 51.23 प्रतिशत थी लेकिन सकल एनपीए में उनकी हिस्सेदारी 78.3 प्रतिशत थी। मार्च 2018 से दोनों में कमी देखी जा रही है।

मार्च 2024 तक ऋण में बड़े उधारकर्ताओं की हिस्सेदारी घटकर 44.4 प्रतिशत और फंसे कर्ज की हिस्सेदारी कम होकर 47.6 प्रतिशत हो गई। ये आंकड़े संभवतः भारतीय बैंकिंग के पूरे स्वरूप में बदलाव का सार पेश करते हैं।

कृषि और उद्योग, कुल ऋण का 58 प्रतिशत समान रूप से साझा करते हैं और सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 27.3 प्रतिशत है जबकि 13.9 निजी ऋण से जुड़ा है। बढ़े हुए फंसे ऋण के कारण असुरक्षित निजी ऋण में बैंकों का निवेश आरबीआई के जांच के दायरे में आ गया है। पिछले साल नवंबर महीने में बैंकिंग क्षेत्र के नियामक ने इस तरह के ऋण में जोखिम स्तर को 0.75 फीसदी से बढ़ाकर 1.25 प्रतिशत कर दिया था और इसके चलते ऐसे ऋण के वितरण के लिए पूंजी की लागत महंगी हो गई।

अब ऐसे में बैंकों को उन्हें समर्थन देने के लिए अधिक पूंजी आवंटन की जरूरत होगी। इसका उद्देश्य बैंकों को आक्रमक तरीके से निजी ऋण देने से हतोत्साहित करना है। इस क्षेत्र में शिक्षा ऋण में सबसे अधिक सकल एनपीए (3.6 प्रतिशत) है। इसके बाद क्रेडिट कार्ड प्राप्तियां (1.8 प्रतिशत), वाहन ऋण (1.3 प्रतिशत), आवास ऋण (1.1 प्रतिशत) का स्थान है।

निजी ऋण में आवासीय ऋण की अधिकतम हिस्सेदारी (48.6 प्रतिशत) है और इसके बाद वाहन ऋण (11.1 प्रतिशत) का स्थान है। दोनों ही सुरक्षित ऋण हैं और इसे कुछ चीजें गिरवी रखे जाने से इन क्षेत्रों को समर्थन मिलता है। इस क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का फंसा ऋण अधिक है। वहीं, क्रेडिट कार्ड प्राप्तियों का सकल एनपीए 11.3 प्रतिशत है, शिक्षा ऋण 3.9 प्रतिशत और आवास ऋण 1.2 प्रतिशत है।

कुल मिलाकर ये आंकड़े भारतीय बैंकिंग उद्योग की बदलती तस्वीर को दर्शाते हैं। पिछले दशक में आरबीआई द्वारा की गई अनूठी परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के बाद बैंकों के बैलेंसशीट में सुधार करने के बाद इसने विभिन्न क्षेत्रों में अपने निवेश में दोबारा संतुलन बनाने की कोशिश की। नए मामले में कमी आने और फंसे कर्ज को लगातार बट्टे खाते में डाले जाने से भी फंसे कर्ज में कमी आई है। इसके अलावा अच्छे वक्त में जब क्रेडिट बुक में वृद्धि होती है तब फंसे कर्ज के प्रतिशत में गिरावट आती है। यह सरल अंकगणित है।

आंकड़े निजी ऋण क्षेत्र में कुछ खराब संकेत नहीं पेश कर रहे हैं। इसके बावजूद आरबीआई इतनी सतर्कता क्यों बरत रहा है? निजी ऋण में एनपीए के आंकड़े भी उतने अधिक नहीं लगते हैं क्योंकि आक्रामक रूप से इन्हें बट्टे खाते में डाला गया है। कोई खाता एनपीए में तब बदल जाता है जब उधारकर्ता लगातार तीन महीने तक ब्याज का भुगतान करने में विफल रहता है।

ज्यादातर निजी बैंक निजी ऋण को बट्टे खाते में डालने को तरजीह देते हैं जिनमें 90 दिनों तक चूक दर्ज की जाती है। वे ऐसा इसलिए कर सकते हैं कि इस तरह के ऋण से होने वाली आमदनी अधिकांश अन्य ऋण की तुलना में कहीं अधिक है। एक बार जब ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है तब यह बैंक की बैलेंसशीट से निकल जाता है और शाखाओं में जमा हो जाता है। बाद के चरण में अगर कोई वसूली होती है तब इससे बैंक का मुनाफा बढ़ता है।

कई वर्षों से बैंकों की बैलेंसशीट में एक चीज बिल्कुल नहीं बदली है और वह है कृषि क्षेत्र में ज्यादा फंसा ऋण। मई महीने में आरबीआई ने परियोजना ऋण के मसौदे के लिए दिशानिर्देश जारी किए। साथ ही इसने बैंक प्रोविजन को परियोजना के निर्माण चरण के दौरान बैंक के बकाया और ताजा जोखिम को 0.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत तक करने का प्रस्ताव रखा।

क्या बैंकिंग नियामक, कृषि ऋण के लिए प्रोविजन बढ़ाने की संभावनाएं तलाश सकता है। अगर ऐसा होता है तब बैं‍क इसमें चूक के जोखिम का मूल्यांकन करते हुए इस ऋण की लागत तय करेंगे। हालांकि यह भविष्य में संभव होना चाहिए लेकिन यह आसान नहीं है।

First Published : July 12, 2024 | 9:03 PM IST