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संतुलित कदम

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 12:43 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक और साख नीति का सालाना ऐलान ऐसे वक्त में किया गया है, जब मैक्रो-इकोनोमी के मोर्चे पर कई चीजें उलझी हुई हैं।


विकास और महंगाई की दर (मुद्रास्फीति) परस्पर विरोधी दिशाओं में जा रहे हैं। विकास के मार्फत लोगों की जेब में जो पैसा आ रहा है, उसे बढ़ती महंगाई लील जा रही है।


महंगाई दर का बढ़ता दबाव मुख्य रूप से सप्लाई समस्या की वजह से है, लिहाजा इसे मौद्रिक नीति के हथियार के जरिये काबू में करने की मुहिम बहुत सार्थक साबित नहीं हो सकती।इन तमाम ऐतराजों के बावजूद आरबीआई ने 17 अप्रैल को कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) में 50 बेसिस पॉइंट यानी 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी थी।


दरअसल, आरबीआई ने यह कदम उन आलोचनाओं को ठंडा करने के लिए उठाया था, जिनमें लगातार यह कहा जा रहा था कि सर्वोच्च बैंक द्वारा महंगाई दर पर नकेल कसने की दिशा में कुछ खास नहीं किया जा रहा है। हालांकि रिजर्व बैंक द्वारा कदम उठाए जाने के बावजूद महंगाई दर की ज्वाला शांत नहीं हुई। इस बार मौद्रिक नीति से यह उम्मीद की जा रही थी कि इसमें रेपो रेट में इजाफा किया जाएगा।


गौरतलब है कि महंगाई दर पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा जो दो परंपरागत रास्ते अपनाए जाते हैं, उनमें से पहला सीआरआर में बढ़ोतरी और दूसरा रेपो रेट में इजाफा है। लिहाजा इस बार माना जा रहा था कि रिजर्व बैंक दूसरे तरीके को आजमाएगा यानी रेपो रेट में बढ़ोतरी करेगा।


हालांकि यह विचार भी हावी था कि रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं की जाएगी, क्योंकि इससे विकास पर बुरा असर पड़ेगा। पर लोगों को हैरत तब हुई जब आरबीआई ने मंगलवार को एक दफा फिर से सीआरआर में 25 बेसिस पॉइंट यानी 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी और ब्याज दरों (रेपो व रिवर्स रेपो रेट) को जस का तस रहने दिया। शेयर बाजार को भी इससे हैरानी जरूर हुई, पर बाजार में उछाल दर्ज किया गया।


पर सवाल यह उठता है कि क्या आरबीआई ने मौजूदा हालात के मद्देनजर सही कदम उठाया है? इसका सीधा जवाब है – हां।यह अखबार भी इस बात की वकालत कर चुका था कि ब्याज दरों के मामले में यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए। इसके पीछे तर्क यह था कि यदि ब्याज दरें बढ़ाई गईं तो इससे महंगाई दर पर उतना काबू नहीं पाया जा सकेगा, जितना ज्यादा नुकसान विकास दर को होगा।


दरअसल, महंगाई दर की मौजूदा बढ़ोतरी के तार ग्लोबल लेवल पर जारी संकट से जुड़े हैं। ऐसे में कोई भी सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि वह महंगाई पर पूरी तरह काबू पा लेगी। यह सही है कि सीआरआर में बढ़ोतरी से लिक्विडिटी (तरलता) की कमी की समस्या पैदा होगी। पर यदि विकास दर आरबीआई के अनुमानों (8 से 8.5 फीसदी के बीच) रहती है, तो लिक्विडिटी कोई बहुत बड़ी बाधा साबित नहीं होगी।

First Published : April 29, 2008 | 11:54 PM IST