BS
अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने निर्मल लाइफस्टाइल के प्रवर्तकों को गिरफ्तार कर लिया। कंपनी के प्रवर्तकों पर आरोप था कि वे मुंबई के उपनगर मुलुंड में चार आवासीय परियोजनाओं में खरीदारों को फ्लैट देने में नाकाम रहे। उत्तर प्रदेश के नोएडा में आम्रपाली स्टॉल्ड प्रोजेक्ट्स इन्वेस्टमेंट्स रीकंस्ट्रक्शन इस्टैब्लिशमेंट (एस्पायर) 40,000 फ्लैट तेजी से तैयार करने में लगी हुई है। ये फ्लैट आम्रपाली ग्रुप ने खरीदारों को बेचे थे। एस्पायर कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत गठित एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसका गठन उच्चतम न्यायालय ने किया है।
यह एक अनोखा मामला है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और वाणिज्यिक बैंक दिवालिया हो चुकी एक रियल एस्टेट कंपनी की अधूरी आवासीय परियोजना को पूरा कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी नियमों में कुछ ढील देकर परियोजना को पूरा करने में हरसंभव सहयोग दे रहा है। बैंकिंग समुदाय ने बड़े गर्व से इस परियोजना को ‘हमारा एस्पायर’ का नाम दिया है।
एक दशक पहले तक आम्रपाली समूह (Amrapali Group) भारत में शीर्ष रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार थी। इस समूह की शुरुआत 2003 में हुई थी और 2015 में इसका कारोबार नई बुलंदियों पर पहुंच गया। कंपनी उस समय कम से कम 50 परियोजनाओं पर काम कर रही था।
Also Read: जवाबदेही का बढ़ता दायरा
इसके प्रवर्तक अनिल शर्मा देश में सस्ती आवासीय परियोजनाओं की एक विशेष पहचान बन गए। शर्मा ने FMCG क्षेत्र से लेकर आतिथ्य एवं फिल्म निर्माण कारोबार में दांव आजमाया। आम्रपाली समूह और शर्मा के लिए समस्याएं तब शुरू हुईं जब इसके ब्रांड ऐंबेसडर महेंद्र सिंह धोनी 2016 में उनसे नाता तोड़ लिया। नोएडा परियोजना पूरी नहीं होते देख कुछ मकान खरीदारों ने सोशल मीडिया पर यह मामला उठा दिया जिसके बाद धोनी ने स्वयं को आम्रपाली समूह से अलग कर लिया।
कुछ गड़बड़ी की आशंका के बाद आम्रपाली समूह को ऋण मुहैया करने वाले ऋणदाताओं में एक बैंक ऑफ बड़ौदा ने 2017 में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। अगले साल फॉरेंसिक ऑडिट हुआ जिसमें 3,000 करोड़ रुपये की रकम की हेराफेरी का पता चला। इसके बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भी हरकत में आ गया और शर्मा और कुछ अन्य लोग गिरफ्तार हो गए। जब न्यायाधिकरण ने बैंक ऑफ बड़ौदा की ऋण शोधन अक्षमता याचिका स्वीकार कर ली तो सैकड़ों मकान खरीदारों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
जुलाई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने कई निर्देश जारी किए और आम्रपाली समूह की सभी परियोजनाएं पूरी किए जाने का आदेश दिया। न्यायालय ने उस समय वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमाणी (अब भारत के महान्यायवादी) को रिसीवर नियुक्त कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम, 2016 के तहत आम्रपाली समूह का पंजीयन भी रद्द कर दिया।
न्यायालय ने दो महत्त्वपूर्ण निर्देश भी दिए। आवासीय परियोजनाओं के लिए नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों द्वारा आम्रपाली समूह की कंपनियों के पक्ष में जारी पट्टा विलेख (लीज डीड) रद्द कर दिए गए और सारे अधिकार रिसीवर को मिल गए।
Also Read: डॉलर का वैश्विक मुद्रा का दर्जा रहेगा कायम
एक दूसरे महत्त्वपूर्ण निर्देश के तहत रिसीवर को खरीदारों को फ्लैटों का मालिकाना हक दिए जाने और कब्जा सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक अधिकार दे दिए गए। अक्टूबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने अधूरी परियोजनाएं पूरी कराने के लिए रिसीवर को एक विशेष उद्देश्य इकाई गठित करने के लिए कहा और इस तरह ‘एस्पायर’ अस्तित्व में आई। परियोजना समय पर पूरी करने का उत्तरदायित्व नैशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड को दिया गया।
ऋणदाताओं के कंसोर्टियम में कुछ निजी बैंक भी थे जो बाद में पीछे हट गए। वे फ्लैट खरीदारों को खुदरा ऋण देने के लिए तैयार थे मगर परियोजना पूरी करने के लिए वे नया निगमित ऋण देने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि आम्रपाली समूह को आवंटित ऋण पहले ही गैर-निष्पादित आस्तियां (NPA) हो गई थीं।
बैंक ऑफ बड़ौदा की अगुआई में सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे कई बैंक डटे रहे और उन्होंने 1,500 करोड़ रुपये मंजूर किए। उन्होंने मार्च 2022 से रकम आवंटित करना शुरू कर दिया। ऐसा पहले कभी नहीं सुना या देखा गया था जब सर्वोच्च न्यायालय ने एक अधूरी रियल एस्टेट परियोजना पूरी करने के लिए स्वयं पहल की थी। इस पूरे मामले में RBI ने भी पूरा साथ दिया।
RBI ने परियोजना पूरी करने के लिए रकम देने वाले बैंकों को आय पहचान, परिसंपत्ति वर्गीकरण (आईआरएसी) और प्रावधान के नियमों से राहत दे दी। इसका मतलब यह है कि बैंकों के ऋण फंसने के बाद भी संबंधित खाते को NPA घोषित करना और प्रावधान करना जरूरी नहीं रह गया।
RBI ने बैंकों के इन ऋणों को प्राथमिक क्षेत्र को आवंटित रकम के हिस्से के तौर पर मान लिया। बैंकों के लिए कुल आवंटित रकम का 40 प्रतिशत हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र को ऋण के रूप में देना पड़ता है। प्राथमिक क्षेत्र की परिभाषा बदलती रहती है। बैंकों ने परियोजना के लिए केंद्र सरकार की गारंटी भी मांगी थी मगर यह नहीं दी गई। मगर बैंकों को एक और बात परेशान कर रही थी। उनके पास गिरवी के तौर पर फ्लैटों के दस्तावेज नहीं थे इसलिए वे रकम देने में हिचक रहे थे।
Also Read: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक नीति
एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय आगे आया। अप्रैल 2022 में नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों की जगह रिसीवर को वास्तविक पट्टेदार नियुक्त कर दिया। न्यायालय ने दोनों प्राधिकरणों को पट्टा विलेख (लीज डीड) में आवश्यक संशोधन करने के लिए कहा।
अब तक आम्रपाली की अधूरी परियोजनाओं में खरीदारों को हजारों फ्लैट दिए जा चुके हैं जो पिछले कई वर्षों से इंतजार कर रहे थे। वित्त वर्ष 2024 के अंत तक प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और इस तरह एक अनोखा सफल प्रयोग पूरा हो जाएगा। बैंकों को निश्चित तौर पर उनकी रकम मिल जाएगी।
कुछ फ्लैट के लिवाल अब भी नहीं हैं क्योंकि बिल्डर ने उन्हें अपने लिए बुक किया था। कर्ज अदायगी राशि के अलावा बैंक ऐसे फ्लैट बेचकर रकम ले सकते हैं। यह एक ऐसा अभियान था जिसमें उच्चतम न्यायालय, बैंकिंग नियामक और बैंकों ने साथ मिलकर फ्लैट खरीदारों को एक धूर्त प्रवर्तक से बचा लिया।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)