अमेरिकी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भारत पर लगातार की जा रही तल्ख टीका-टिप्पणियों के बीच एक बात स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच व्यापार पर जारी कशमकश दूर करने के लिए बातचीत अब भी चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारत से अमेरिका आयात होने वाली वस्तुओं पर 50 फीसदी शुल्क लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। अमेरिका के सहायक व्यापार वार्ताकार ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में वहां के वार्ताकारों का एक दल विवाद का समाधान खोजने के लिए फिलहाल भारत आया हुआ है।
वैसे तो केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि यह बैठक एक अन्य दौर की वार्ता शुरू होने का संकेत नहीं है मगर इतना तो साफ है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार पर उठे विवाद का समाधान निकालने की उम्मीदें भी धूमिल नहीं हुई हैं। भारतीय अधिकारी कह चुके हैं कि अमेरिका को पहले ही भारत की तरफ से कई प्रस्ताव दिए जा चुके हैं। इसे लेकर कोई दो राय नहीं कि देश के प्रमुख रणनीतिक एवं संवेदनशील क्षेत्रों के हित सुरक्षित रखना जरूरी हैं मगर तमाम मतभेद के बीच एक मध्य मार्ग निकालने के लिए नए तरीके आजमाना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
भविष्य के लिए कुछ राहें तो नजर आने भी लगी हैं। उदाहरण के लिए इस समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित हुई थी जिसमें अमेरिका के एक व्यापार अधिकारी के हवाले से बताया गया था कि उनका देश भारत को केवल महंगे दुग्ध उत्पादों जैसे कि चीज़ आदि का निर्यात करना चाहता है और दुग्ध एवं संबंधित उत्पादों के व्यापक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। दुग्ध क्षेत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से खास अहमियत रखता है और विभिन्न मुक्त व्यापार समझौतों में यह बाहरी प्रतिस्पर्द्धा से सुरक्षा सुनिश्चित करने के पक्ष में ठोस तर्क देता रहा है।
मगर ऐसा लगता है कि मूल्य के लिहाज से एक सीमा के ऊपर के लिए शुल्क तेजी से घटाने के प्रावधान के साथ दोनों पक्ष संतुष्ट हो सकते हैं। शराब के प्रमुख उत्पादक देश ऑस्ट्रेलिया के साथ पूर्व में ऐसे ही उपाय कारगर साबित हुए हैं। शराब पर शुल्क 150 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी कर दिया गया है और अगले कुछ दशकों में 5 डॉलर से अधिक मूल्य की बोतल पर यह कम होकर 50 फीसदी रह जाएगा। 15 डॉलर से अधिक मूल्य की बोतलों पर शुल्क तत्काल 75 फीसदी हो गए है मगर बाद में कम होकर 25 फीसदी रह जाएगा। इसी तरह के प्रावधान दुग्ध एवं अन्य कृषि उत्पादों के मामले में भी किए जा सकते हैं। ये उत्पाद दोनों देशों के वार्ताकारों के बीच असहमति का प्रमुख कारण हैं।
कृषि उत्पादों के मामले में एक बीच का रास्ता निकालने का फायदा यह होगा कि दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसी तरकीब लागू की जा सकती है। इससे अन्य मसलों पर बातचीत आसानी से आगे बढ़ेगी। यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ व्यापार वार्ता में भी कृषि उत्पादों से जुड़े विषय सिर उठाते रहे हैं। भारतीय कृषि मोटे तौर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी एवं कारोबार के लिहाज से अधिक मुनाफा देने वाले नहीं हैं इसलिए वे ईयू और अन्य देशों के उच्च श्रेणियों के उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
अच्छी बात यह है कि ऐसे एक तरीके की पहचान भी हो चुकी है मगर इस पर राजनीतिक सहमति बनानी होगी। सब कुछ ठीक रहा तो इसे दूसरे क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। राजनीतिक स्तर पर सहमति बनाने में कोई खास मुश्किल नहीं आनी चाहिए क्योंकि क्षेत्रवार प्रारूपों के माध्यम से यह दर्शाना संभव होगा कि मौजूदा घरेलू दुग्ध उत्पादों की बाजार हिस्सेदारी में कम से कम कमी आएगी।
हालांकि, किसी समझौते या निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए भारत और अमेरिका दोनों ही पक्षों के दृष्टिकोण में बदलाव लाना महत्त्वपूर्ण होगा। इस पूरी कवायद में दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को भी आगे आना होगा। हाल में सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की प्रतिबद्धता पर विचारों का आदान-प्रदान होने से तनाव कुछ हद तक कम हुआ है। दोनों नेता अब अपने-अपने देशों के हित में एक स्वीकार्य समाधान तलाशने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। दुग्ध उत्पादों के मामले से यह साफ है कि ऐसे समाधान निकाले जा सकते हैं।