इस समय जो खबरें आ रही हैं, उनसे संकेत मिलता है कि जीएमआर समूह की दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (डायल) को नकदी के भारी संकट से जूझना पड़ रहा है।
दरअसल दिल्ली हवाईअड्डे की आधुनिकीकरण परियोजना के तहत डायल 250 एकड़ जमीन को वाणिज्यिक परिसर के रूप में विकसित कर सकती है लेकिन उसे इसके लिए बहुत ज्यादा उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं।
डायल के लिए यह एक बड़ी समस्या है और उसके सामने अब परियोजना को नियत समय पर पूरा किए जाने का लक्ष्य कठिन नजर आ रहा है।
यह इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है कि इससे भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के राजस्व का हिस्सा भी कम होने की संभावना है। वैसे यह रियल एस्टेट की कीमतों पर निर्भर करेगा, लेकिन इसमें 20-25 प्रतिशत की गिरावट आने का अंदेशा है।
जीएमआर को इस आधार पर परियोजना सौंपी गई थी कि वह हवाईअड्डे के राजस्व का 46 प्रतिशत हिस्से का विमानपत्तन प्राधिकरण के साथ साझा करेगा। इसमें एयरपोर्ट के संचालन सहित रियल एस्टेट से होने वाली आमदनी भी शामिल थी।
पिछले साल डायल ने बोली लगाने वालों से 58 साल के पट्टे के लिए छह साल के औसत किराए के बराबर राशि को बतौर अग्रिम जमा करने के लिए कहा था। संयुक्त फार्मूले के मुताबिक डायल को अनुमान था कि प्रति एकड़ के हिसाब से 70 करोड़ रुपये जमा होंगे।
चूंकि यह उप पट्टा 58 साल के लिए था यह राशि जमीन के ज्यादातर सौदों में मिलने वाले सामान्य जमा किराये से अधिक थी। डायल ने यह तर्क दिया कि यह जमा पैसा राजस्व नहीं होगा,
इसलिए इसे साझा नहीं किया जा सकता। चूंकि यह जमा राशि किराये के बदले में ली जा रही है इसलिए उसका तर्क निश्चित रूप से गलत है।
इसके चलते विमानपत्तन प्राधिकरण को अच्छा खासा नुकसान होगा। अगर कोई आदमी 100 करोड़ रुपये पहले ही जमा कर देता है और ब्याज दरें 10 प्रतिशत होती हैं तो हर साल 10 करोड़ रुपये ब्याज के रूप में आते। इसलिए वार्षिक किराये से इतनी धनराशि काटनी पड़ती।
इस योजना से प्राधिकरण के राजस्व की हिस्सेदारी आधा रह जाती इसलिए उसने डायल से इस योजना को स्थगित रखने को कहा। कुछ महीने पहले डायल को तीन साल का औसत किराये लेने के साथ इस योजना पर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी गई।
डायल के मुताबिक, यह फैसला नागरिक विमानन मंत्रालय और प्राधिकरण-डायल बोर्ड, जिसमें प्राधिकरण और सरकार दोनों के ही प्रतिनिधि शामिल थे, से बातचीत करने के बाद डायल बोर्ड द्वारा लिया गया।
नागरिक विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल से इस मामले में पूछताछ की जानी चाहिए क्योंकि आखिर में उनके मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसले के लिए वही जिम्मेदार हैं।
पिछले साल जब डायल ने जमीन के लिए निविदा आमंत्रित की थी, तो उम्मीद थी कि उसे 58 साल के पट्टे के लिए प्रति वर्ष किराये के रूप में उसे 680 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके आधार पर 70 करोड़ रुपये प्रति एकड़ या 250 एकड़ के लिए 17,590 करोड़ रुपये का अनुमान था।
इस समय प्रॉपर्टी की कीमतों में बहुत गिरावट आई है, जिसके चलते अब बोली घटकर आधी रह गई है। इस पट्टे के आकार को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा कि डायल की कोशिश होगी कि पट्टा तब दिया जाए जब परिसंपत्ति बाजार की हालत बेहतर हो जाए।
अगर 50 प्रतिशत की कमी के मुताबिक देखा जाए तो डायल को किराये के रूप में 340 करोड़ रुपये ही मिलेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि विमानपत्तन प्राधिकरण के राजस्व की हिस्सेदारी डायल के राजस्व पर निर्भर करेगी।
अगर इस साल डायल को अनुमानित राजस्व के रूप में 900 करोड़ रुपये मिलते हैं और इसमें 15 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ोतरी होती है तो इससे हवाईअड्डे का कुल राजस्व पांच साल बाद 1,810 करोड़ रुपये होगा। अगर डायल अग्रिम के रूप में कुछ नहीं जमा कराता है तो अतिरिक्त किराया मिलेगा।
यह दर्शाता है कि प्राधिकरण की हिस्सेदारी डायल के राजस्व में 37 प्रतिशत गिर जाएगी, अगर वह अग्रिम के रूप में पैसा जमा कराता है। डीआईएएल ने जितने राजस्व का वादा किया था, उसकी तुलना में यह पांचवां हिस्सा ही है।
प्रॉपर्टी की कीमतें अधिक होने की वजह से प्राधिकरण के राजस्व में ज्यादा गिरावट आएगी, अगर डायल जमा योजना लागू करती है। इसलिए अगर रियल एस्टेट की हालत सुधरती है तो प्राधिकरण का घाटा भी बढ़ जाएगा।