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अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती

Last Updated- October 06, 2008 | 11:34 PM IST

आखिरकार अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने उस कानून पर हामी भर ही दी, जिसकी मदद से अब अमेरिकी सरकार 700 अरब डॉलर के बेल-ऑउट प्लान को लागू कर पाएगी।


कहने को तो प्रतिनिधि सभा ने फेरबदल के बाद ही इस कानून को मंजूरी दी, लेकिन असल कारण दूसरा है। दरअसल कुछ दिनों पहले सभा ने इसे नामंजूर कर दिया था। इसके बाद वैश्विक बाजारों में भारी उथल-पुथल मच गई थी। इससे साफ हो गया कि इस प्लान का कामयाबी या नाकामयाबी कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है।

बिना सरकारी सहायता के अमेरिकी और वैश्विक वित्तीय ढांचे का तबाह होना तय है। इस बेल-ऑउट प्लान के नैतिक खतरों और इसके राजकोषीय नतीजों के बारे में तो नोंक-झोंक तो चलती ही रहेगी। वैसे, अमेरिकी वित्त मंत्री हेनरी पॉलसन और उनके साथियों के सामने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो काम करके दिखाने की है।

उन्हें अभी सबसे पहले तो यह तय है कि शुरुआती 250 अरब डॉलर से किन-किन संपत्तियों को पहले खरीदा जाए। विश्लेषकों के बीच इस तरह की चर्चा भी है कि खतरे में पड़ी संपत्तियों की कीमत तो आज 700 अरब डॉलर को भी पार कर चुकी हैं।

इस प्लान की कामयाबी के लिए उन संपत्तियों की पहचान करना भी काफी अहम है, जिनकी कीमतों के गिरने की वजह से अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। यहां गलतियों के लिए काफी कम जगह है। इसके तहत ऐसी संपत्तियों को खरीदने पर जोर दिया जाना चाहिए, जो दूसरी संपत्तियों के भाव को भी चढ़ा दें। इससे पूरी अर्थव्यस्था का भला होगा।

लेकिन अगर ऐसी संपत्तियों को नहीं खरीदा गया तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे। साथ ही, सीमित संसाधन भी बर्बाद हो जाएंगे और इस प्लान की कामयाबी की उम्मीद पर भी पानी फिर जाएगा। रिपोर्टों की मानें तो इस प्लान को अमेरिकी संसद की मंजूरी मिलने और कानून में तब्दील होने के कुछ घंटों के भीतर ही पॉलसन ने इसपर काम करना शुरू कर दिया।

लेकिन इस कभी-कभार दिखने वाली प्रतिबध्दता और तेजी के बावजूद इन पैसों को बाजार में आते-आते कुछ हफ्ते तो लग ही जाएंगे। इस बारे में बाजार की बेचैनी अमेरिकी अर्थव्यवस्था से आने वाली खबरों से और भी बढ़ गई है। दूसरी तिमाही में आई तेजी के बाद कारों की कम बिक्री और बेरोजगारों की बढ़ती तादाद ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया।

अगर इसके बाद भी बुरी खबरों का आना बंद नहीं हुआ तो वित्त बाजारों पर दबाव बढ़ जाएगा। इस वजह से पॉलसन बाबू के लिए काम और भी मुश्किल हो जाएगा। इसकी वजह से बेल ऑउट प्लान की कामयाबी पर और भी ज्यादा संकट के बादल छा जाएंगे। इस हालत में यह जरूरी है कि इस अमेरिकी कदम को दूसरे मुल्कों और सेंट्रल बैंकों की तरफ से भी पूरा साथ और समर्थन मिले।

यूरोपीय वित्तीय ढांचे की एकजुटता पर संकट के बादल छा जाने की वजह से पेरिस बैठक यूरोपीय नेताओं के लिए एक ठीक-ठाक  पैकेज पर एकराय बनाना काफी मुश्किल हो चुका है। यह हालत बरकरार रही तो कई यूरोपीय बैंकों की असफलता का असर अटलांटिक के पार भी पड़ सकता है। इस वजह से इस बेल-ऑउट प्लान का बेड़ा गर्क भी हो सकता है।

First Published - October 6, 2008 | 11:34 PM IST

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