facebookmetapixel
देशभर में मतदाता सूची का व्यापक निरीक्षण, अवैध मतदाताओं पर नकेल; SIR जल्द शुरूभारत में AI क्रांति! Reliance-Meta ₹855 करोड़ के साथ बनाएंगे नई टेक कंपनीअमेरिका ने रोका Rosneft और Lukoil, लेकिन भारत को रूस का तेल मिलना जारी!IFSCA ने फंड प्रबंधकों को गिफ्ट सिटी से यूनिट जारी करने की अनुमति देने का रखा प्रस्तावUS टैरिफ के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत, IMF का पूर्वानुमान 6.6%बैंकिंग सिस्टम में नकदी की तंगी, आरबीआई ने भरी 30,750 करोड़ की कमी1 नवंबर से जीएसटी पंजीकरण होगा आसान, तीन दिन में मिलेगी मंजूरीICAI जल्द जारी करेगा नेटवर्किंग दिशानिर्देश, एमडीपी पहल में नेतृत्व का वादाJio Platforms का मूल्यांकन 148 अरब डॉलर तक, शेयर बाजार में होगी सूचीबद्धताIKEA India पुणे में फैलाएगी पंख, 38 लाख रुपये मासिक किराये पर स्टोर

SEBI के नए नियम के बाद, स्टॉक ब्रोकरेज बढ़ा सकते हैं अपनी फीस

इस बदलाव से शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने का खर्च बढ़ सकता है और ब्रोकरों को नए तरीके अपनाने पड़ सकते हैं।

Last Updated- July 04, 2024 | 5:13 PM IST
stock brokers

बाजार नियामक सेबी स्टॉक एक्सचेंज के काम करने के तरीके में बदलाव कर रहा है। पहले, एक्सचेंज ब्रोकरों को उनके ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर शुल्क में छूट देते थे। यानी जितना ज्यादा कोई निवेशक ब्रोकर के माध्यम से ट्रेड करता था, उतना ही कम शुल्क ब्रोकर को एक्सचेंज को देना पड़ता था। इसका मतलब था कि जो ब्रोकर अपने ग्राहकों के लिए ज्यादा ट्रेड करते थे, उन्हें छूट मिलती थी। अब, एक नए नियम के तहत, सभी को एक समान शुल्क देना होगा, चाहे ट्रेडिंग वॉल्यूम कितना भी हो।

1 जुलाई, 2024 को जारी एक परिपत्र में सेबी ने कहा है कि स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉजिटरी और क्लियरिंग कॉरपोरेशन जैसी बाजार संस्थाओं को स्टॉक ब्रोकरों पर एक समान शुल्क लगाना होगा। अब ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर छूट वाला पुराना तरीका नहीं चलेगा।

नया नियम, नया लैंडस्केप:

नए नियम के तहत, सभी छूट समाप्त हो गई हैं। यह छोटा सा बदलाव बाजार पर बड़ा असर डाल सकता है। डिस्काउंट ब्रोकर्स कम शुल्क लेने के लिए जाने जाते थे और वे अक्सर पुरानी वॉल्यूम-आधारित शुल्क प्रणाली का फायदा उठाकर ऐसा करते थे।

इसका क्या मतलब है?

वैल्यू रिसर्च ने एक नोट में कहा, “एक्सचेंज जैसी बाजार संस्थाएं अभी स्टॉक ब्रोकरों से उनके कारोबार के आधार पर अलग-अलग स्लैब में शुल्क लेती हैं। ब्रोकर जितना ज्यादा ट्रेडिंग वॉल्यूम करते हैं, उनका शुल्क उतना ही कम होता है। एक्सचेंज यह छूट डेरिवेटिव सहित सभी सेगमेंट में ट्रेडिंग बढ़ाने के लिए देते हैं। ब्रोकर भी निवेशकों से इसी तरह की वॉल्यूम-आधारित प्रणाली के तहत शुल्क लेते हैं। निवेशकों से लिए गए शुल्क और एक्सचेंज को दिए गए शुल्क के बीच का अंतर ब्रोकरों की अतिरिक्त आय या रिबेट होता है।”

लेकिन अब, बाजार नियामक नहीं चाहता कि ब्रोकर निवेशकों के खर्च पर यह अतिरिक्त पैसा कमाएं। इसके अलावा, यह कदम डेरिवेटिव बाजार में देखी जाने वाली अंधाधुंध भागदौड़ को रोकने और ओवरऑल मार्केट कास्ट स्ट्रक्चर में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उठाया गया है।

यह समस्या क्यों है?

ब्रोकर अक्सर पैसा कमाने के लिए इन छूटों पर निर्भर रहते थे, खासकर डेरिवेटिव (ऑप्शंस और फ्यूचर्स) बाजार में। छूट खत्म होने से, डिस्काउंट ब्रोकरों के सामने एक दुविधा है। वे या तो:

  • शुल्क बढ़ा सकते हैं: वे एक्सचेंज के बढ़े हुए शुल्क को पूरा करने के लिए अपना शुल्क बढ़ा सकते हैं। इससे वे पारंपरिक ब्रोकरों की तुलना में कम कंपटीटिव हो सकते हैं।
  • जीरो-पेमेंट प्लान बंद कर सकते हैं: कुछ डिस्काउंट ब्रोकर विशेष ट्रेडों के लिए बिना शुल्क वाले प्लान देते हैं। नए शुल्क स्ट्रक्चर के साथ इन प्लान का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

संभावित परिणाम:

  • कम मुनाफा: अगर ब्रोकर शुल्क बढ़ाते हैं, तो उनका मुनाफा कम हो सकता है।
  • ग्राहक खोना: ज्यादा शुल्क के कारण कुछ निवेशक कम शुल्क वाले दूसरे ब्रोकरों के पास जा सकते हैं।

पहले, स्टॉक एक्सचेंज ब्रोकरों से उनके कुल ट्रेड के मूल्य के हिसाब से शुल्क लेते थे। यह शुल्क हर 1 लाख रुपये के ट्रेड पर 3.25 रुपये से शुरू होता था, लेकिन ज्यादा ट्रेडिंग करने वाले ब्रोकरों के लिए यह सस्ता हो जाता था। इस तरह व्यस्त डिस्काउंट ब्रोकरों को छूट मिलती थी, जिससे वे अपने ग्राहकों को कम शुल्क दे पाते थे।

वैल्यू रिसर्च ने बताया कि इस बदलाव का असर पहले से ही दिख रहा है। ब्रोकरेज कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई है, खासकर जो डेरिवेटिव पर ज्यादा निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, एंजेल वन, जो F&O सेगमेंट में करीब 20% मार्केट शेयर रखता है और अपना 70% ब्रोकरेज डेरिवेटिव से कमाता है, उसके शेयर की कीमत सेबी के आदेश के एक दिन बाद 9% गिर गई।

जियोजित फाइनेंशियल और SMC ग्लोबल के शेयर भी उसी दिन 7% और 4% गिरे। निवेशकों के लिए लागत बढ़ने से F&O में ट्रेड की मात्रा भी कम हो सकती है, जिससे डेरिवेटिव से होने वाली कमाई पर असर पड़ेगा।

किस पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?

स्टॉक और डेरिवेटिव में ट्रेड करने वाले निवेशकों को शायद ज्यादा ब्रोकरेज फीस देनी पड़ सकती है।

संभावित फीस बढ़ोतरी:

छोटे निवेशकों के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि ब्रोकरेज फीस बढ़ सकती है, खासकर डेरिवेटिव ट्रेडिंग (ऑप्शंस और फ्यूचर्स) में।

डिस्काउंट ब्रोकरों पर असर:

कम फीस के लिए जाने जाने वाले डिस्काउंट ब्रोकरों पर इसका खास असर हो सकता है। अगर उन्हें अपनी फीस बढ़ानी पड़ी तो उनका फायदा कम हो सकता है।

कैपिटलमाइंड के संस्थापक और सीईओ दीपक शेनॉय ने बताया कि पहले एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉर्प और डिपॉजिटरी ब्रोकरों से ट्रेडिंग वॉल्यूम के हिसाब से कम फीस लेते थे। जैसे, 0.01% फीस, लेकिन कुछ वॉल्यूम पार करने पर 30% कम, और फिर और ज्यादा वॉल्यूम पर 20% और कम। लेकिन ब्रोकर ग्राहक से पूरी फीस लेते थे और बचा हुआ पैसा उनका मुनाफा होता था। सेबी का यह नया आदेश कम मार्जिन वाले ब्रोकरों को ज्यादा प्रभावित करेगा।

वैल्यू रिसर्च ने बताया कि ब्रोकरों की डेरिवेटिव कमाई का बड़ा हिस्सा इन रिबेट से आता था। अब इस पैसे के स्रोत पर रोक लगने से, ब्रोकरों को शायद सभी सेगमेंट में फीस बढ़ानी पड़ सकती है। जीरोधा के संस्थापक निखिल कामथ ने कहा कि उन्हें शायद कैश सेगमेंट में मुफ्त ब्रोकरेज बंद करना पड़ सकता है और F&O में फीस बढ़ानी पड़ सकती है। इसलिए, सभी बाजार सेगमेंट के निवेशकों को अब अपने रिटर्न की गणना करते समय इन बढ़ी हुई लागतों को ध्यान में रखना होगा।

भविष्य की रणनीतियां:

ब्रोकरों को नई एकसमान फीस व्यवस्था के अनुसार अपने व्यापार मॉडल में बदलाव करना होगा। वे अपने ग्राहकों के लिए फीस स्ट्रक्चर में बदलाव कर सकते हैं, जिससे सभी के लिए शुल्क बढ़ सकता है। सिर्फ लेनदेन शुल्क पर निर्भर रहने के बजाय, ब्रोकर अतिरिक्त सेवाएं जैसे निवेश सलाह, रिसर्च रिपोर्ट, या पोर्टफोलियो मैनेजमेंट टूल देने पर ध्यान दे सकते हैं ताकि ग्राहकों को आकर्षित कर सकें और उन्हें बनाए रख सकें।

एचडीएफसी सिक्योरिटीज ने बताया कि अभी एक्सचेंज कम होती फीस लेते हैं (जितना ज्यादा कारोबार, उतनी कम फीस), लेकिन ब्रोकर अपने ग्राहकों से सबसे ऊंची दर पर फीस लेते हैं। इससे ब्रोकरों, खासकर डिस्काउंट ब्रोकरों को अतिरिक्त मुनाफा होता है, जिसे ‘सहायक लेनदेन आय’ कहा जाता है। एंजेल वन के आंकड़ों से पता चलता है कि यह आय उनकी कुल आय का लगभग 8% और टैक्स से पहले के मुनाफे का 20% है। सेबी के नए नियम से यह आय प्रभावित हो सकती है।

ब्रोकरेज कंपनी मोतीलाल ओसवाल ने कहा कि ब्रोकर इस नुकसान की भरपाई के तरीके निकालेंगे। उदाहरण के लिए, एंजेल वन हर ऑर्डर पर 3 रुपये ज्यादा ले सकता है और अकाउंट खोलने के शुल्क लगा सकता है, जैसा कि दूसरे ब्रोकर करते हैं।

First Published - July 4, 2024 | 5:13 PM IST

संबंधित पोस्ट