Representative image
New Rules from April 1: आयकर विभाग को 1 अप्रैल 2026 से टैक्स चोरी के मामलों की जांच के लिए एक नई कानूनी ताकत मिलने जा रही है। नए प्रावधानों के तहत अब आयकर अधिकारी संदिग्ध लोगों के ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट्स, बैंक खातों, ऑनलाइन निवेश और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स तक डायरेक्ट एक्सेस पा सकेंगे। यह अधिकार उन्हें इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 132 के तहत मिलेगा, जो तलाशी और जब्ती की अनुमति देता है।
अब डिजिटल संपत्तियां भी आएंगी दायरे में
सरकार ने इन नियमों के जरिए डिजिटल माध्यमों से हो रही टैक्स चोरी पर सख्ती करने की तैयारी कर ली है। नए आयकर विधेयक के तहत टैक्स अधिकारियों को करदाताओं की डिजिटल गतिविधियों की जांच और डेटा जब्त करने की अनुमति दी गई है। यानी अब किसी भी व्यक्ति की गुप्त संपत्ति, अघोषित आय, सोना-चांदी या अन्य कीमती वस्तुएं डिजिटल माध्यम से ट्रैक की जा सकेंगी।
1 अप्रैल 2026 से क्या होगा नया?
यह भी पढ़ें: PAN Card Online: सिर्फ 48 घंटे में ऐसे बनवाएं पैन कार्ड; जानें पूरा प्रोसेस और जरूरी डॉक्यूमेंट्स
अभी क्या होता है?
अभी के नियमों के तहत अधिकारी छापेमारी के दौरान दस्तावेज, बैंक खाते, लैपटॉप या हार्ड ड्राइव जब्त कर सकते हैं, लेकिन डिजिटल डेटा तक सीधी पहुंच में कानूनी अड़चनें होती हैं। नया कानून इस कमी को दूर करेगा।
नया इनकम टैक्स बिल क्या कहता है?
नया इनकम टैक्स बिल, जो 1 अप्रैल 2026 से लागू होगा, के सेक्शन 247 के तहत यह तय किया गया है कि अधिकारी सिर्फ टैक्स चोरी के मामलों में ही डिजिटल डेटा की जांच कर सकेंगे। यह प्रावधान हर करदाता पर लागू नहीं होगा, सिर्फ उन्हीं मामलों में जहां अघोषित आय या संपत्ति की पुख्ता जानकारी हो।
सरकार ने क्या सफाई दी?
25 मार्च 2025 को राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न (संख्या 2784) के जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने साफ किया कि आयकर अधिकारियों को करदाताओं की निजी जानकारी जैसे ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट्स या बैंक खातों तक बिना प्रक्रिया के पहुंचने की छूट नहीं है। अधिकारी तभी डेटा तक पहुंच बना सकते हैं जब वे तय कानूनी प्रक्रिया का पालन करें।
यह भी पढ़ें: In Parliament: हर व्यक्ति पर औसतन 15,000 रुपये GST बैठता है- राजीव शुक्ला
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
टैक्सपेयर्स के बीच इस बात को लेकर चर्चा है कि 1 अप्रैल 2026 से इनकम टैक्स विभाग उनकी ईमेल और सोशल मीडिया की निगरानी कर सकेगा। इस पर टैक्स मामलों के विशेषज्ञ सुशील जैन और मनीफ्रंट के को-फाउंडर व सीईओ मोहित गांग का कहना है कि टैक्सपेयर को घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन इस तरह की निगरानी के लिए स्पष्ट नियम और सीमाएं तय की जानी चाहिए।
सुशील जैन के मुताबिक यह कोई नया कानून नहीं है, बल्कि पुराने नियमों का ही विस्तार है। टैक्स विभाग को पहले से यह अधिकार है कि अगर किसी टैक्सपेयर की आय को लेकर संदेह हो या वह सहयोग न करे, तो वर्चुअल स्पेस की जांच की जा सकती है। उनका कहना है कि डिजिटल दौर में जहां निवेशक फिज़िकल एसेट्स की जगह क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल एसेट्स में निवेश कर रहे हैं, वहां ऐसे प्रावधान समय की जरूरत हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि विभाग की हर कार्रवाई संविधान के दायरे में और कानूनी प्रक्रिया के तहत होगी।
मोहित गांग का मानना है कि टैक्स चोरी रोकने के लिए अधिकारियों को कानूनी उपाय अपनाने चाहिए और खर्चों व जीवनशैली की निगरानी गलत नहीं है, क्योंकि इससे टैक्स चोरी पकड़ी जा सकती है। हालांकि, ईमेल और सोशल मीडिया जैसे निजी प्लेटफॉर्म्स की निगरानी को लेकर वह सतर्कता बरतने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार, ऐसी निगरानी हर टैक्सपेयर पर न होकर केस-बाय-केस आधारित होनी चाहिए। साथ ही, इस तरह के किसी कदम को लागू करने से पहले व्यापक बहस और आम सहमति जरूरी है।
दोनों विशेषज्ञों का मानना है कि जो टैक्सपेयर पारदर्शिता बरतते हैं और विभाग के सवालों का जवाब देते हैं, उन्हें किसी तरह की चिंता नहीं करनी चाहिए। जांच की नौबत तभी आती है जब टैक्स अधिकारी को संदेह हो या जानकारी छिपाई जा रही हो।