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Mutual Fund Tips: साल के अंत में पोर्टफोलियो का रिव्यू क्यों जरूरी, एक्सपर्ट्स से आसान भाषा में समझें

साल के अंत में किया गया रिव्यू निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो की गड़बड़ियां ठीक करने, कमजोर फंड निकालने और टारगेट के मुताबिक बेहतर पोर्टफोलियो के साथ आगे बढ़ने में मदद करता है

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अमित कुमार   
Last Updated- December 13, 2025 | 4:30 PM IST

2026 नजदीक आते ही फाइनेंशियल प्लानर्स कह रहे हैं कि साल के अंत में पोर्टफोलियो की समीक्षा बहुत जरूरी है। इससे म्यूचुअल फंड में निवेश का टारगेट, रिस्क लेने की क्षमता और एसेट एलोकेशन एक साथ सही ढंग से जुड़े रहते हैं। मार्केट एक्सपर्ट्स ने बताया है कि आपको किन चीजों पर नजर रखनी चाहिए, रीबैलेंसिंग के प्रैक्टिकल स्टेप्स क्या हैं और रिटेल निवेशकों को किन गलतियों से बचना चाहिए।

कब करें रिव्यू या रीबैलेंसिंग?

ज्यादातर निवेशक तेज रैली या बड़ी गिरावट का इंतजार करते हैं तब जाकर अपने होल्डिंग्स देखते हैं, लेकिन ये तरीका सही नहीं है।

Share.Market (PhonePe Wealth) के हेड ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स नीलेश डी नाइक कहते हैं कि निवेशकों को आदर्श रूप से हर तिमाही पोर्टफोलियो रिव्यू करना चाहिए। उनके मुताबिक, अगर असल एसेट एलोकेशन निवेशक के फ्रेमवर्क से काफी दूर चला गया हो, तो उसे फिर से सही करना जरूरी है। वे कहते हैं कि लगातार अंडरपरफॉर्मेंस, स्ट्रेटेजी में बदलाव या इन्वेस्टमेंट टीम में बदलाव भी बाहर निकलने के सही कारण हैं।

VSRK कैपिटल के डायरेक्टर स्वप्निल अग्रवाल आय, फाइनेंशियल गोल्स, रिस्क एपेटाइट में बदलाव या बढ़ते एक्सपेंस रेशियो को तुरंत ध्यान देने वाले संकेत बताते हैं। उनका कहना है कि मार्केट मूवमेंट की वजह से अगर एसेट एलोकेशन काफी बदल जाए तो भी पोर्टफोलियो की जांच जरूरी हो जाती है।

360 ONE एसेट मैनेजमेंट के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर राघव अयंगर कहते हैं कि जब पोर्टफोलियो अब उन लंबे समय के लक्ष्यों को नहीं दर्शाता जिनके लिए इसे बनाया गया था, तब रिव्यू जरूरी हो जाता है। लगातार अंडरपरफॉर्मेंस या निवेशक के टाइम होराइजन से मेल न खाने वाले फंड्स रीबैलेंसिंग के मजबूत संकेत हैं।

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हकीकत में रीबैलेंसिंग कैसे काम करती है?

रीबैलेंसिंग कई तरीकों से की जा सकती है। नाइक दो मुख्य तरीके बताते हैं:

  • बड़ी असंतुलन को ठीक करने के लिए बेचना और खरीदना, लेकिन टैक्स प्रभाव को ध्यान से देखते हुए।
  • नई SIP या लंपसम निवेश के जरिए कम प्रतिनिधित्व वाली एसेट क्लास में धीरे-धीरे पैसा डालना।

अग्रवाल एक प्रैक्टिकल उदाहरण देते हैं। अगर तय किया गया 60:40 इक्विटी-डेट एलोकेशन रैली की वजह से 75:25 हो जाए, तो निवेशक सारी नई निवेश राशि डेट में डाल सकता है बजाय इक्विटी बेचने के। इससे धीरे-धीरे संतुलन वापस आ जाता है और अनावश्यक टैक्स भी नहीं लगता।

अयंगर कहते हैं कि एलोकेशन वापस लाना लंबे समय के कंपाउंडिंग को बाधित नहीं करना चाहिए। निवेशक नई मासिक राशि को रीडायरेक्ट कर सकते हैं या ओवरवेट पोजीशन को टैक्स-कुशल तरीके से कम कर सकते हैं।

क्या ट्रिम करें, बाहर निकलें या जोड़ें: यह कैसे तय करें?

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दो-तीन साल तक लगातार अंडरपरफॉर्मेंस, स्ट्रेटेजी में बदलाव, ज्यादा खर्च और पोर्टफोलियो में ओवरलैप मुख्य कारण हैं बाहर निकलने के। नाइक यह भी बताते हैं कि ~1.25 लाख तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस बुक करने या उपलब्ध नुकसान से गेंस ऑफसेट करने के मौके भी हैं। अयंगर सलाह देते हैं कि हर फंड अभी भी पूरे सेटअप में उपयोगी भूमिका निभा रहा है या नहीं, ये चेक करें और कहते हैं कि मल्टी-एसेट फंड्स अच्छा जोड़ हो सकते हैं।

2026 में किन आम गलतियों से बचें?

तीनों एक्सपर्ट्स चेताते हैं कि साल के टॉप परफॉर्मर्स के पीछे भागना सबसे बड़ी गलती अभी भी बनी हुई है। 

नाइक सोशल मीडिया के शोर पर रिएक्ट करने से बचने की चेतावनी देते हैं, जबकि अग्रवाल ज्यादा चर्निंग, टैक्स प्रभाव को नजरअंदाज करना और फंड ओवरलैप को अनदेखा करने की बात कहते हैं। अयंगर जोड़ते हैं कि निवेशक अक्सर कमजोर तिमाही के बाद बाहर निकल जाते हैं या पिछले साल के विजेताओं में कूद पड़ते हैं।

एसेट एलोकेशन, लंबे समय के लक्ष्यों और रिस्क एपेटाइट पर आधारित अनुशासित रिव्यू ही सबसे अच्छा तरीका है कि 2026 के लिए आपका म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो सही ट्रैक पर बना रहे।

First Published : December 13, 2025 | 3:41 PM IST