भारत में कोविड-19 के मामले 1,000 के पार पहुंच चुके हैं। ऐसे में जिन लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है, उन्हें पन्ने पलटकर यह जरूर देख लेना चाहिए कि बीमा की रकम उनके लिए कम तो नहीं पड़ जाएगी। यह भी देखना जरूरी है कि क्या आपकी बीमा पॉलिसी में कोविड जैसे खतरे से निपटने के लिए जरूरी इंतजाम हैं या नहीं।
कोविड-19 की पिछली लहरों में कई खुदरा स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी की कमियां सामने आईं। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के प्रमुख (हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन टीम) भास्कर नेरुरकर ने कहा, ‘अस्पताल में कमरे के किराये की सीमा और पीपीई किट जैसी वस्तुएं बीमा के दायरे में नहीं आना बड़ी खामियां थीं।’
अस्पताल में भर्ती होने की सख्त परिभाषा भी मरीजों के लिए बाधा बनी थी। पॉलिसीबाजार के हेड (हेल्थ इंश्योरेंस) सिद्धार्थ सिंघल ने कहा, ‘उस समय घर पर हुआ इलाज आम तौर पर बीमा के दायरे में नहीं आता था।’
कोविड वैश्विक महामारी ने बताया कि पर्याप्त रकम का बीमा कितना जरूरी है। नेरुरकर ने कहा, ‘शहरी इलाकों और महानगरों में रहने वाले लोगों को कम से कम 10-15 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा जरूर लेना चाहिए। परिवार में तीन से ज्यादा सदस्य हों तो 20-25 लाख का फ्लोटर कवर लेना भी ठीक रहेगा।’
बीमा पॉलिसी में डॉमिसिलियरी यानी घर पर इलाज की सुविधा जरूर होनी चाहिए। ऐसे में हल्के लक्षण वाले मरीजों का अगर अस्पताल में भर्ती होना संभव या जरूरी नहीं हो तो उन्हें घर पर ही उपचार दिया जा सकता है। नेरुरकर ने कहा, ‘ऐसे में बीमा कराने वाला व्यक्ति नर्सिंग शुल्क, जांच, दवाओं और घर पर उपयोग किए जाने वाले उपकरणों जैसे खर्चों के लिए दावा कर सकता है बशर्ते उनका इलाज किसी डॉक्टर की देखरेख में हुआ हो।’
टेली-कंसल्टेशन भी जरूर होना चाहिए। सिंघल ने कहा, ‘इससे मरीजों को अस्पताल या क्लिनिक गए बगैर ही डॉक्टरों से सलाह लेने की सुविधा मिल जाती है।’ बीमा रकम को रीस्टोर करने की सुविधा भी आवश्यक है। इससे बीमाधारक अथवा उसके परिवार के सदस्य पॉलिसी वर्ष के भीतर बीमा रकम खत्म हो जाने के बाद भी इलाज करा सकते हैं।
अस्पताल में भर्ती होने पर कमरे के किराये की सीमा नहीं होना भी बेहद जरूरी है। कोविड-19 के कई मामलों में मरीज को आईसीयू में भर्ती होने या अलग कमरों में रखने की जरूरत होती है। ऐसे कमरों का किराया स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के तहत कमरे के मानक किराये से अधिक होती है। ऐसे में किराया जितना फीसदी ज्यादा होता है, दावे की कुल रकम में से उतने फीसदी रकम भी काट ली जाती है।
इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस की कार्यकारी निदेशक (मार्केटिंग) निहारिका सिंह ने कहा, ‘ज्यादातर मामलों में ऊंची बीमा रकम वाली पॉलिसियों अथवा अतिरिक्त प्रीमियम विकल्प वाली पॉलिसियों में कमरे के किराये पर कोई बंदिश नहीं होती।’ पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क और सैनिटाइज़र जैसी सामग्री भी बीमा में शामिल होना जरूरी है। पिछली बार इनके शामिल नहीं होने के कारण इलाज काफी महंगा पड़ रहा था। टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (कंज्यूमर अंडरराइटिंग) दिनेश मोसमकर ने कहा, ‘जहां ये सामग्री बीमा के दायरे में हैं वहां भी शामिल सामग्री की सूची और सीमा अलग-अलग हो सकती है।’ स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में डॉक्टर से सलाह, जांच, दवा और फॉलो-अप के लिए ओपीडी को भी कवर किया जाना चाहिए। उसमें शामिल अस्पतालों का नेटवर्क भी सही होना चाहिए।
सुपर टॉप-अप पॉलिसी मूल बीमा पॉलिसी की पूरक हो सकती है। नेरुरकर ने कहा, ‘इलाज के लंबे समय तक खिंच जाने, आईसीयू खर्च काफी अधिक होने अथवा विभिन्न अस्पतालों में भर्ती होने जैसी स्थितियों में मूल पॉलिसी की बीमा रकम जल्द खत्म हो सकती है। ऐसे में आप सुपर टॉप-अप पॉलिसी का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर एक साल के भीतर इलाज पर पहले से तय सीमा से अधिक खर्च हो जाए तो इसका उपयोग किया जाता है।’
पुरानी बीमा पॉलिसियों में आम तौर पर काफी बंदिशें और शर्तें होती हैं। मोसमकर ने कहा, ‘कवरेज के दायरे बाहर रखे जाने वाले सामान्य मदों में ओपीडी खर्च, कुछ संस्थानों में इलाज, घर पर उपचार आदि शामिल हो सकते हैं।’
आपको प्रतीक्षा अवधि के बारे में भी पता होना चाहिए। सिंह ने कहा, ‘बीमा खरीदने और उसके खास फायदे मिलना शुरू होने के बीच कुछ फासला रहता है। इसी अवधि को प्रतीक्षा अवधि कहते हैं। सामान्य तौर पर यह अवधि पॉलिसी की शुरू होने की तारीख से 30 दिन की होती है। पहले से मौजूद बीमारियों के लिए भी प्रतीक्षा अवधि होती है जो एक पॉलिसी से दूसरी पॉलिसी में अलग-अलग हो सकती है।’ उन्होंने पॉलिसी जल्द खरीदने और निरंतर कवरेज बनाए रखने की सलाह दी ताकि प्रतीक्षा अवधि जल्द खत्म हो जाए।
मोसमकर ने आगाह किया कि कुछ स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां प्रयोगात्मक अथवा अप्रमाणित दवाओं या उपचारों को कवरेज के दायरे से बाहर कर सकती हैं। उन्होंने पॉलिसीधारकों से दस्तावेजों की बारीकी से जांच करने का आग्रह किया ताकि आगे कोई परेशानी न होने पाए।