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बाजारों पर नहीं दिखा अवरोध का पूरा असर

Last Updated- December 11, 2022 | 9:23 PM IST

तेल की बढ़ती कीमतें और महंगाई पर उसका असर, फेडलर रिजर्व व भारतीय रिजर्व बैंक समेत वैश्विक केंद्रीय बैंकों की तरफ से ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी जैसे अवरोधों को भारतीय इक्विटी बाजार मौजूदा स्तर पर पूरी तरह समाहित नहींं कर रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि ये चीजें बाजार में उथल-पुथल बनाए रखेगी और मौजूदा स्तर से एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 करीब 5 फीसदी लुढ़क सकता है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक व निदेशक यू आर भट्ट ने कहा, अमेरिका में ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी और इक्विटी में आसान मुद्रा के प्रवाह पर रोक, आरबीआई की तरफ से मौद्रिक नीति की समीक्षा, यूक्रेन को लेकर भूराजनैतिक घटनाक्रम और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें निश्चित तौर पर भारत के लिए बुरी खबरें हैं और यह बाजार में घबराहट पैदा कर रही है। रूस की सीमा पर हुए वास्तविक संघर्ष को बाजार ने समाहित नहीं किया है। बाजार को हालांकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक की तरफ से होने वाली ब्याज बढ़ोतरी के बारे मेंं पता है, लेकिन वास्तव में जब बढ़ोतरी होगी तो बाजार पर इसका असर दिख सकता है। 17,000 के स्तर पर निफ्टी को समर्थन हासिल है और यहां से गिरावट पर उसमें 3 से 5 फीसदी की और गिरावट आ सकती है।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम इससे सहमत हैं और उनका कहना है कि बाजारों ने जोखिम को पूरी तरह समाहित नहीं किया है, खास तौर से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से जुड़े जोखिम को।
उन्होंंने कहा, अगर तेल की कीमतें बढ़कर 105 से 110 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचती है तो सेंसेक्स और निफ्टी में 10 फीसदी की गिरावट मुमकिन है। हालिया उच्चस्तर से आई गिरावट पर हालांकि कुछ अवरोध का असर रहा है, लेकिन इन्हें पूरी तरह से समाहित नहींं किया गया है।
यूक्रेन को लेकर रूस और नाटो के बीच बढ़ते तनाव से ब्रेंट क्रूड की कीमतें सात साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई और एक महीने के भीतर उसमें 16 फीसदी की उछाल दर्ज की गई। विश्लेषकों ने कहा, बड़े पैमाने पर युद्ध से तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा सकती है। राबोबैंक इंटरनैशनल और बोफा सिक्योरिटीज के विश्लेषकों समेत ज्यादातर विश्लेषक जून 2022 में ब्रेंट की कीमत 125 डॉलर प्रति बैरल देख रहे हैं।
प्लैट्स एनालिटिक्स के मुख्य भूराजनैतिक सलाहकार पॉल सेल्डन ने कहा, ओपेक के 19 देशों ने दिसंबर में अपने उत्पादन लक्ष्योंं के मामले में 8.32 लाख बैरल रोजाना की कमी दर्ज की है। अगर यह प्रवृत्ति बनी रही तो तेल बाजार घाटे की ओर जाएगा और तेल की कीमतें और चढ़ सकती हैं और इसके कारण महंगाई भी। क्षमता को लेकर अवरोध मई तक और सीमित हो जाएगा जब दुनिया की बाकी 96 फीसदी क्षमता (18 लाख बैरल रोजाना) सऊदी अरब व यूएई के पास रह जाएगी।
बाजारों ने इन घटनाक्रमों पर नजर डाली है और बेंचमार्क सूचकांकों एसऐंड़पी बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 में एक महीने में करीब 3-3 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज और ओएनजीसी जैसी कंपनियों को शामिल करने वाला निफ्टी एनर्जी इंडेक्स तेल की बढ़ती कीमतों की पृष्ठभूमि मेंं इस दौरान करीब 6 फीसदी की बढ़त के साथ उम्दा प्रदर्शन कर चुका है।

First Published - February 7, 2022 | 10:53 PM IST

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