महंगाई से लडऩे की खातिर मौद्रिक प्रोत्साहन को तीव्र गति से घटाने और समय से पहले ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला भारत में दलाल पथ पर तेजडिय़ों को नियंत्रित कर सकता है।
हालांकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैलेंस शीट में बदलाव और भारतीय बेंचमार्क सूचकांकों मसलन बीएसई सेंसेक्स व निफ्टी-50 की चाल के बीच सकारात्मक सह-संबंध रहा है। साथ ही यह सह-संबंध खास तौर से महामारी के प्रसार के बाद से मजबूत रहा है।
विश्लेषकों के मुताबिक, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले का असर मोटे तौर पर शेयरों के मूल्यांकन में बदलाव के जरिए दिखेगा। जेएम इंस्टिट््यूशनल इक्विटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा ने कहा, प्रमुख शेयर मूल्यांकन अनुपातों मसलन पीई गुणक व पीबी अनुपात में गिरावट आएगी। फेड के हालिया कदम के बाद नकदी की स्थिति सख्त हो जाएगी, लिहाजा निवेशक जोखिम के प्रति सचेत हो सकते हैं।
इससे व्यापक बाजार में और गिरावट आ सकती है या फिर यह सीमित दायरे में रह सकता है, अगर कंपनियों की आय में बढ़ोतरी जारी रहे।
साल 2021 की शुरुआत से बीएसई सेंसेक्स 21 फीसदी चढ़ा है, जो अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैलेंस शीट में हुए 18 फीसदी विस्तार के करीब है।
मार्च 2020 से अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैलेंस शीट दोगुनी हो गई है और सेंसेक्स में भी उतनी ही बढ़त हुई है। इसी तरह भारतीय इक्विटी बाजार में हालिया कमजोरी भी संयोग से नवंबर की शुरुआत में फेड की तरफ से हुई घोषणा से टकरा गई कि वह दिसंबर से बॉन्ड खरीद कार्यक्रम में कटौती करेगा। इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैलेंस शीट दिसंबर के पहले हफ्ते में 17.2 अरब डॉलर सिकुड़ गई, जो जुलाई 2020 के बाद पहली बार देखने को मिला है।
परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम के तहत अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हर महीने 80 अरब डॉलर की अमेरिकी सरकार की प्रतिभूतियां और 40 अरब डॉलर की मॉर्गेज समर्थित प्रतिभूतियां खरीदी। इसने ब्याज दरों को सुस्त किया और वैश्विक वित्तीय बाजारों को अतिरिक्त नकदी मुहैया कराई। इसे मात्रात्मक सहजता के नाम से भी जाना जाता है।
विश्लेषकों ने कहा कि मात्रात्मक सहजता ने जोखिम वाली परिसंपत्तियों मसलन भारतीय इक्विटी की मांग बढ़ा दी। सिन्हा ने कहा, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कदम से मूल्यांकन में विस्तार हुआ और इसके परिणामस्वरूप पिछले कुछ सालों में हुई कंपनियों की आय में हुई अंतर्निहित बढ़ोतरी के मुकाबले ज्यादा तेज गति से इक्विटी की कीमतें बढ़ीं।
सेंसेक्स का पीई गुणक साल 2017 के करीब 17 गुने और महामारी से ठीक पहले के करीब 27 गुने से बढ़कर इस साल मार्च में रिकॉर्ड 35 गुने पर पहुंच गया। यह अभी 27.1 गुने पर कारोबार कर रहा है।
मूल्यांकन में बढ़ोतरी से कंपनियों की आय में इजाफे के मुकाबले शेयर की कीमतों में ज्यादा तेज गति से बढ़ोतरी हुई। उदाहरण के लिए पिछले 10 साल में सेंसेक्स 274 फीसदी बढ़ा है जबकि अंतर्निहित प्रति शेयर आय में 134 फीसदी का इजाफा हुआ है। सेंसेक्स हालांकि दिसंबर 2011 के 15.450 के मुकाबले इस गुरुवार को 57,837 पर बंद हुआ, लेकिन इंडेक्स इस अवधि में 913 रुपये से 2,134 रुपये पर पहुंचा।
अब यह प्रक्रिया पलटने की संभावना है, जो अनिश्चितता पैदा कर रहा है। नारनोलिया सिक्योरिटीज के मुख्य निवेश अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने कहा, बीते वक्त के उलट आय की रफ्तार तेज होगी, वहीं पीई में गिरावट बाजार की रफ्तार को नीचे लाएगा। बाजार का स्तर इन दोनों विपरीत ताकतों के संतुलन से तय होगा।
ब्रोकरेज को उम्मीद है कि अगले दो साल में कंपनियों की आय में 30 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कदम के कारण कंपनियों की आय में कोई खास बदलाव नहीं दिखता।
हालांकि प्रोत्साहन कार्यक्रम में नरमी से कंपनियों की आय को झटका लग सकता है, अगर इससे ब्याज दरों में ज्यादा बढ़ोतरी होती है। यह इक्विटी निवेशकों के लिए तस्वीर और भ्रामक बना देगा।
