भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) देश के पांचवे सबसे बड़े प्राइवेट बैंक, इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) के छह अधिकारियों के खिलाफ इनसाइडर ट्रेडिंग (insider trading) की जांच कर रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दो सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी। रिपोर्ट के मुताबिक, यह जांच इसलिए की जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इन अधिकारियों ने बैंक में अकाउंटिंग संबधी संबंधी गड़बड़ियों (accounting lapses) के सार्वजनिक होने से पहले, इसकी जानकारी होने के बावजूद, अपने स्टॉक ऑप्शंस बेच दिए।
सूत्रों ने बताया कि सेबी इन छह अधिकारियों द्वारा किए गए ट्रेड्स के समय की जांच कर रहा है ताकि यह तय किया जा सके कि क्या ये सौदे नियामकीय प्रावधानों और बैंक की आंतरिक आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, जांच अभी शुरुआती चरण में है और न तो संबंधित अधिकारियों को और न ही बैंक को अब तक कोई शो-कॉज नोटिस भेजा गया है। चूंकि यह जांच गोपनीय है, इसलिए सूत्रों ने रॉयटर्स को अपनी पहचान उजागर करने से इनकार कर दिया। इंडसइंड बैंक और सेबी (SEBI) ने इस संबंध में भेजे गए ईमेल सवालों का फिलहाल कोई जवाब नहीं दिया है।
इस महीने की शुरुआत में, ग्रांट थॉर्नटन (Grant Thornton) द्वारा की गई एक फॉरेंसिक ऑडिट में यह सामने आया कि बैंक के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने उस समय शेयर बेचे, जब वे अकाउंटिंग अनियमितताओं से अवगत थे, लेकिन ये जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेबी (SEBI) ने बैंक से यह ऑडिट रिपोर्ट साझा करने को कहा है।
मार्च में, बैंक ने स्वीकार किया था कि आंतरिक डेरिवेटिव ट्रेड्स की अकाउंटिंग में वर्षों से चली आ रही एक गलती के कारण उसकी ₹60.8 अरब डॉलर की बैलेंस शीट में 230 मिलियन डॉलर का अंतर आ गया। इस खुलासे के बाद, बैंक के सीईओ सुमंत कथपलिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने पिछले महीने इस्तीफा दे दिया।
सूत्रों में से एक ने बताया कि यदि कोई कर्मचारी स्टॉक ऑप्शंस को उस समय नकद में बदलता है, जब वह अनपब्लिश प्राइस सेंसिटिव जानकारी (Unpublished Price Sensitive Information) से अवगत हो, तो यह नियामक के नियमों का उल्लंघन हो सकता है।
भारत में इनसाइडर ट्रेडिंग को लेकर आपराधिक और दीवानी दोनों तरह की कार्रवाई हो सकती है। हालांकि अब तक इनसाइडर ट्रेडिंग के किसी मामले में आपराधिक सजा नहीं हुई है। सेबी (SEBI) का आदेश आमतौर पर जुर्माना और एक निश्चित अवधि के लिए बाजार में प्रतिबंध जैसे निर्देशों तक सीमित होता है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि बैंक की आचार संहिता के तहत ऐसा उल्लंघन बोनस और कर्मचारी स्टॉक ऑप्शंस की वसूली (claw-back) का भी आधार बन सकता है।
बैंक से यह स्पष्टीकरण भी मांगा गया है कि जब प्रबंधन को सितंबर 2024 या उससे पहले ही अकाउंटिंग गड़बड़ियों की जानकारी मिल गई थी, तो इनका खुलासा करने में देरी क्यों हुई।
(एजेंसी के इनपुट के साथ)