भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और उनके ब्रिटिश समकक्ष जोनाथन रेनॉल्ड्स FTA पर हस्ताक्षर करते हुए
भारत और ब्रिटेन के बीच बहुप्रतीक्षित विस्तृत आर्थिक और व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर के बाद भी भारतीय शेयर बाजारों पर खास असर नहीं पड़ा क्योंकि व्यापक बाजार में हुई बिकवाली ने सेक्टर विशेष के आशावाद पर पानी फेर दिया। टेक्सटाइल, फार्मा, आभूषण, ऑटोमोटिव और कृषि क्षेत्र की कंपनियों को इस समझौते के तहत टैरिफ में कमी का लाभ मिलने की उम्मीद है।
लेकिन इन सेक्टर के ज्यादातर शेयर शुक्रवार को गिरकर बंद हुए। यह गिरावट कमजोर आय की चिंता के कारण हुई। लिहाजा, निफ्टी स्मॉलकैप इंडेक्स में करीब 2 फीसदी की नरमी देखने को मिली। एक विश्लेषक ने कहा, इस समझौते से कई सेक्टरों में लंबी अवधि के लिहाज से वृद्धि दर्ज होने की संभावना है। हालांकि इन शेयरों में तत्काल बढ़ोतरी नहीं हुई क्योंकि मनोबल कमजोर रहा और निवेशक निराशाजनक आय पर ध्यान लगाए रहे।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पूर्व खुदरा शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, कुल मिलाकर बाजार में सुस्ती रही क्योंकि एफपीआई शुद्ध बिकवाल रहे। मिड और स्मॉलकैप शेयरों में पिछले कुछ दिनों से लगातार बिकवाली हो रही है। अमेरिकी टैरिफ, ब्रिटिश टैरिफ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। हमें देखना होगा कि हमारे प्रतिस्पर्धी देशो मसलन वियतनाम व चीन के साथ किस तरह की संधि होती है। उन पर लगाया जाने वाला टैरिफ हमारे ऊपर लगाए गए टैरिफ से ज्यादा अहम होगा।
जसानी ने कहा कि कंपनियों की आय बाजार की चाल के लिए तात्कालिक संकेतक होगी। नतीजों का पहला दौर बहुत सकारात्मक नहीं रहा है और हमें यह देखना होगा कि बाकी सूचीबद्ध कंपनियां कैसा प्रदर्शन करती है।
निफ्टी हेल्थकेयर इंडेक्स 0.7 फीसदी चढ़ा, जिसमें मुख्य रूप से सिप्ला में हुई 3.2 फीसदी की बढ़त का योगदान रहा। निफ्टी के सेक्टक सूचकांकों में हेल्थकेयर और फार्मा शेयर ही सकारात्मक बंद हुए। देसी शराब कंपनियों के शेयर (खास तौर से सोम डिस्टिलरी ऐंड ब्रुअरीज) पर दबाव रहा। डर है कि इस करार से प्रतिस्पर्धा गहरा सकती है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों का यहां के बाजार में पहुंचना आसान हो जाएगा।
अल्पावधि के लिहाज से बाजार में कमजोरी के बावजूद विश्लेषक उन कंपनियों को लेकर आशावादी बने हुए हैं जो निर्यातोन्मुखी क्षेत्रों में बेहतर स्थिति में हैं।