भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने किसी कंपनी में नियुक्त स्वतंत्र निदेशकों के लिए ई-सोप्स लेने का रास्ता साफ कर दिया है। इस बारे में आज उसने एक सर्कुलर जारी किया।
इसमें कहा गया है कि अगर कोई वित्तीय संस्थान अपने प्रतिनिधि को किसी कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्त करता है तो वह प्रतिनिधि उस कंपनी द्वारा दिए गए ईसोप्स यानी शेयर पाने का हकदार है। पर इसके लिए मनोनीत निदेशक और वित्तीय संस्थान के बीच समझौता होना जरूरी है।
साथ ही इस तरह के निदेशक को अपनी संस्था और मूल कंपनी को इस समझौते की प्रति देनी पड़ेगी। ई-सोप्स देने के लिए किए गए इस संशोधन के पहले सेबी (कर्मचारी शेयर विकल्प योजना और कर्मचारी शेयर खरीद योजना) गाइडलाइन्स, 1999 के तहत किसी कंपनी के केवल स्थायी (फुल टाइम) निदेशकों, कर्मचारियों और अधिकारियों को ही ई-सोप्स पाने का अधिकार था। इस श्रेणी में उन प्रमोटरों और निदेशकों को छूट थी जिनके पास कंपनी के 10 फीसदी शेयर या इससे अधिक इक्विटी होती थी।
सेबी के सामने ऐसे कई मामले आए जहां कई संस्थाओं ने इस नियम में मौजूद खामी का फायदा उठाकर अपने प्रतिनिधियों को उस कंपनी से ईसोप्स नहीं लेने दिए जिसके निदेशक मंडल में वे शामिल थे। इसी को ध्यान में रख सेबी ने यह संशोधन यिा है। पिछले साल जीवन बीमा निगम और जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन और उनकी ओर से लार्सन ऐंड टुब्रो के निदेशक मंडल में नियुक्त निदेशकों बी पी देशमुख और क्रांति सिन्हा को लेकर इसी मसले पर दो महीनों तक गतिरोध रहा था।
यह विवाद उस समय शुरू हुआ था जब इन निदेशकों ने निर्माण क्षेत्र की इस कंपनी की ओर से जारी शेयरों को वापस करने से इनकार कर दिया था। यह अलग बात है कि जीवन बीमा निगम और जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन की ओर से यह निर्देश दिया गया था कि उन्हें कंपनी से ईसोप्स स्वीकार नहीं करना चाहिए।
सिन्हा और देशमुख के पास एलऐंडटी के क्रमश: 20,000 और 30,000 शेयर थे। उस समय इनका बाजार भाव क्रमश: 3.5 करोड़ और 5 करोड़ रुपये था। इन दोनों संस्थानों ने अपनी ओर से मनोनीत निदेशकों को इन शेयरों में कारोबार करने से रोकने के लिए बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था।
परिणाम यह हुआ कि दोनों निदेशकों को एलऐंडटी के बोर्ड के सदस्य के रूप में अपना पद भी छोड़ना पड़ा था। आखिरकार इस मसले को अदालत के बाहर सुलटाया गया था। दोनों ही निदेशक अपने शेयर लौटाने को राजी हो गए थे। इस घटना के बाद ऐसे वित्तीय संस्थान जिनके पास विभिन्न कंपनियों के शेयर थे उन्होंने उन कंपनियों को पत्र लिख कर कहा था कि वे उनकी ओर से नियुक्त निदेशकों को ईसोप्स जारी न करें।