सर्वोच्च न्यायालय की 6 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने बाजार नियामक सेबी के साथ जुड़े जटिल मामलों की जांच के लिए केंद्र द्वारा मल्टी-एजेंसी कमेटी यानी कई एजेंसियों वाली समिति बनाने का सुझाव दिया है। विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि इस तरह की नई कमेटी ऐसे मामले में उपयोगी होगी जिनमें कौशल, और विभिन्न नियामकीय और प्रवर्तन एजेंसियों की दक्षता जरूरी है।
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जटिल प्रवर्तन मामलों में (जिनमें कौशल और विभिन्न नियामकीय तथा प्रवर्तत एजेंसियों की दक्षता जरूरी है) एक ऐसा ढांचा बनाना जरूरी होगा, जिससे कि मल्टी-मॉडल कमेटी (जांच समिति) खास मामले में जरूरी जांच करने में सक्षम हो सके।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच समिति भारत सरकार द्वारा वित्तीय स्थायित्व एवं विकास परिषद के संरक्षण में बनाई जा सकती है। संबद्ध मामले को ‘व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण जांच’ करार देकर ऐसी जांच समिति के पास भेजा जाएगा।
हालांकि समिति ने स्पष्ट किया है कि सरकार उन्हीं मामलों में ऐसे ढांचे का सहारा लेने में सक्षम होगी, जो गंभीर अंतरक्षेत्रीय प्रभाव से जुड़े हों और उसे अनुशासित कौशल पर जोर देने की जरूरत होगी।
समिति का कहना है कि 2021-22 में सेबी द्वारा शुरू की गई कार्यवाहियों की संख्या बढ़कर 7,195 पर पहुंच गई, जबकि 2020-21 में ऐसे मामले 562 और 2019-20 में 249 थे। समिति ने सुझाव दिया है कि सेबी का नियामकीय लक्ष्य समय पर पूरा हो सकता है और कुछ बड़े और जटिल मामलों में त्वरित कदम उठाने की जरूरत होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नियामक को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए, यह नीति बनानी होगी कि गंभीर या ज्यादा महत्व के मामलों का निपटान कैसे किया जा सके। कार्यवाहियों की संख्या में तेजी को देखते हुए यह अध्ययन करने की जरूरत महसूस हुई है कि किस तरह से निपटान प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जाए।’
समिति ने कहा है कि चूंकि बाजार नियामक ने बिचौलियों को लाइसेंस देने से लेकर क्रियान्वयन के लिए अधिकार प्रदान किए हैं, इसलिए मौजूदा हालात में सेबी को और ज्यादा अधिकार दिए जाने की जरूरत नहीं है। हालांकि समिति ने कहा है कि नियामक के लिए न्यायिक अनुशासन की जरूरत थी, क्योंकि कई बार अधिकारी समान मामले पर अलग निर्णय लेते हैं।
सेबी को जांच शुरू करने, जांच पूरी करने, कार्यवाही शुरू करने, निपटान आदि के लिए तय समय-सीमा भी अपनानी चाहिए। इसे कानून में शामिल किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समय-सीमा के कुछ बिंदु दिशात्मक होने चाहिए और अन्य को अनिवार्य बनाया जासकता है, लेकिन कानून में समय-सीमा का पूरी तरह से अभाव एक ऐसी समस्या है जिसे दूर करने की जरूरत है।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ‘सेबी के लिए ऐसी कार्य प्रणालियों के बारे में अध्ययन करना और सेबी के प्रवर्तन को नियंत्रित करने वाले संबद्ध कानूनों में ऐसा ढांचा अपनाना जरूरी होगा। सेबी ऐक्ट के लिए ऐसे स्व-अनुशासन प्रावधानों को संसद द्वारा संशोधित किए जाने की जरूरत नहीं है।’