महंगाई में तेजी, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल हालात के बीच 2024-25 की सितंबर तिमाही में धीमी आय वृद्धि ने भारतीय बाजारों का आकर्षण कम कर दिया है। एवेंडस कैपिटल पब्लिक मार्केट्स ऑल्टरनेट स्ट्रैटजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्यू हॉलैंड ने पुनीत वाधवा को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा कि उभरते बाजारों (ईएम) के मुकाबले अमेरिका और विकसित बाजारों के हक में निवेश की आवक (विशेष रूप से पैसिव) होगी। मुख्य अंश…
चूंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) आमतौर पर दिसंबर में कारोबार बंद देते हैं। ऐसे में हम घरेलू निवेशकों को आगे आते हुए और बाजार को हाल के निचले स्तर से ऊपर लाने में मदद करते हुए देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि 20 जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यभार संभालने के आसपास उतारचढ़ाव की आशंका है। ऐसे में उछाल अल्पकालिक हो सकता है।
हमारा पक्का विश्वास है कि निवेश प्रवाह (विशेष रूप से पैसिव) 2025 में स्पष्ट तस्वीर साफ होने तक उभरते बाजारों के मुकाबले अमेरिका और विकसित बाजारों में जाएगा। भारत के लिए ट्रम्प की जीत का असर तटस्थ से सकारात्मक होगा जो मुख्य रूप से चीन से संबंधित है।
चीन+1 रणनीति निस्संदेह एफडीआई के लिहाज से भारत के अनुकूल होगी। हालांकि, एफपीआई के दृष्टिकोण से बाज़ारों का महंगा मूल्यांकन और आय पर गंभीर दबाव के कारण हमें यह विश्वास है कि विदेशी निकासी शायद जल्द कम नहीं होने वाली।
भारत के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प का दोबारा चुनाव जीतना व्यापक रूप से तटस्थ या सकारात्मक माना जा रहा है, खासकर चीन+1 के लिहाज से। जोखिम चीन के आगे के प्रोत्साहन में हो सकता है जो भारत पर भारी पड़ सकता है और विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकता है। आने वाले कुछ महीने मुश्किलों भरे हैं और इस प्रकार हम बाजारों के प्रति सतर्क दृष्टिकोण बरकरार रखे हुए हैं। इसलिए एक रणनीति के रूप में नकदी तब तक एक विकल्प है जब तक कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप पदभार नहीं संभाल लेते और नीतियों को लेकर स्पष्टता नहीं आ जाती।
आय डाउनग्रेड में व्यापक गिरावट आई है। आगे और गिरावट की संभावना है। कुल मिलाकर सभी के राजस्व में मामूली वृद्धि दिख रही है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि मुनाफा मार्जिन में गिरावट आ रही है। अर्थव्यवस्था में नरमी को देखते हुए यह रुझान संभवतः जारी रह सकता है।
जैसे-जैसे हम दिसंबर के अंत तक पहुंचेंगे, कमाई के पूर्वानुमानों को गिरावट के एक और दौर का सामना करना पड़ सकता है। जहां हमें उम्मीद है कि दिसंबर में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। लेकिन आरबीआई गवर्नर के हालिया बयानों ने इस समय दरों को कम करने में जोखिम का संकेत दिया है। जब तक सरकारी खर्च या निजी पूंजीगत व्यय में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी नहीं होती है, तब तक बाजार में परेशानी रह सकती है।
उभरते बाजारों और बाकी दुनिया के लिए अहम बात यह है कि नए प्रशासन के सत्ता संभालने के बाद लगाए जाने वाले आयात शुल्क का स्तर क्या होता है। जैसे हालात हैं, चीन के लिए प्रस्तावित टैरिफ 60 फीसदी है और अन्य क्षेत्रों के लिए वे 10-20 फीसदी के बीच।
इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी, वैश्विक विकास धीमा होगा और अल्पावधि में डॉलर मजबूत होगा। क्या देश जवाबी टैरिफ लगाएंगे, इस पर नजर रखने की आवश्यकता होगी। लेकिन हमारा मानना यह है कि प्रभावित देश अपनी मुद्राओं को गिरने दे सकते हैं और व्यापार युद्ध तेज हो सकता है।
अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, जिससे उपभोक्ता खर्च पर चोट पहुंचाना जारी रहेगा। खास तौर से वाहन क्षेत्र चुनौतियों का सामना कर सकता है।
अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प की वापसी के साथ-साथ सीनेट और कांग्रेस में बहुमत से एक लोगं में जोखिम की भावना बढ़ी है, जिसका बिंदु अमेरिकी इक्विटी, अमेरिकी डॉलर और क्रिप्टोकरेंसी हैं। इसके जारी रहने के आसार हैं और हमारे विचार में ट्रम्प प्रशासन की संभावित नीतियां उभरते बाजारों के लिए अच्छी नहीं हैं और परिणामस्वरूप इक्विटी प्रवाह पर असर दिखेगा।
अमेरिका में फेड की नवंबर में होने वाली मौद्रिक नीति की बैठक में ब्याज दरें 25 आधार अंक घटाई गईं और समिति ने दिसंबर में भी दरों में कटौती की संभावना खुली रखी है। हालांकि अगर अर्थव्यवस्था और रोजगार के आंकड़े मजबूत बने रहे तो दर कटौती पर विराम की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।