भारत में केंदीय बैंक और बाजार नियामक सेबी वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) में बैंक निवेश के लिए हाल में सख्त किए गए नियमों में ढील देने पर विचार कर रहे हैं। इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले तीन अधिकारियों ने बताया कि कि इन नियमों के अनपेक्षित परिणामों की आशंका से इनमें नरमी पर विचार किया जा रहा है।
पिछले महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा था कि बैंक और गैर-बैंकिंग ऋणदाता ‘एवरग्रीनिंग’ फंसे कर्ज के मामलों से बचने के लिए बैंकों के मौजूदा या नए कर्जदारों की होल्डिंग के साथ एआईएफ में निवेश नहीं कर सकते। साथ ही केंद्रीय बैंक ने ऋणदाताओं से एक महीने के अंदर मौजूदा निवेश बेचने को कहा।
हालांकि उद्योग का कहना है कि नए मानक वृद्धि को प्रभावित करेंगे। एआईएफ के लिए संगठन इंडियन वेंचर ऐंड अल्टरनेट कैपिटल एसोसिएशन (आईवीसीए) के अनुसार इन नियमों से करीब 8-10 अरब डॉलर मूल्य का निवेश प्रभाव पड़ेगा।
कोटक इन्वेस्टमेंट एडवायजर्स के प्रबंध निदेशक श्रीनी श्रीनिवासन ने कहा, ‘आरबीआई सर्कुलर का अनिश्चित प्रभाव यह है कि बैंक और गैर-बैंक वित्त ऋणदाता इस डर से एआईएफ में निवेश से बचेंगे कि वे नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं।’ सूत्रों ने नाम नहीं बताए जाने के अनुरोध के साथ कहा कि नियामक कुछ वैध चिंताओं के लिए उपयुक्त छूट पर विचार कर रहे हैं।
रॉयटर्स को ऋणदाताओं और फंडों द्वारा मांगी गई दो ऐसी छूट के बारे में पता चला है। सूत्रों ने कहा कि पहली, विशेष रूप से संकटग्रस्त संपत्तियों में निवेश करने के लिए स्थापित एआईएफ के लिए है। उदाहरण के लिए भारतीय स्टेट बैंक द्वारा संचालित दो बड़े फंडों से नए रास्ते खुले हैं। इनमें से एक फंसी और रुकी आवासीय परियोजनाओं में और दूसरा छोटे उद्यमों में निवेश करता है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘इस पर बातचीत चल रही है कि क्या दबाव से ग्रसित कंपनियों में निवेश से जुड़े फंडों की खास श्रेणियों को छूट दी जानी चाहिए या नहीं।’इस संबंध में एसबीआई, आरबीआई और बाजार नियामक सेबी को भेजे गए ईमेल संदेशों का जवाब नहीं मिला है।
अधिकारियों का कहना है कि बैंकों ने यह भी कहा है कि उन्हें ऐसे निवेश से बाहर निकलने के लिए अधिक समय दिया जाना चाहिए या उन्हें आवश्यक प्रावधानों को अलग-अलग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
आईवीसीए की नियामकीय मामलों की समिति के सह-अध्यक्ष सिद्धार्थ पई ने कहा, ‘निवेश से बाहर निकलने के लिए 30 दिन की समय-सीमा ठीक नहीं है, क्योंकि नियामकीय सख्ती की वजह से हेयरकट सीमा शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य के 80 प्रतिशत तक बढ़ गई है।’
वित्तीय भाषा में ‘हेयरकट’ परिसंपत्ति के उचित मूल्य और ऋणदाता द्वारा बिक्री के जरिये हासिल की जाने वाली राशि के बीच अंतर को कहा जाता है।