आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के वरिष्ठ कार्याधिकारी एवं प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) अरुण श्रीनिवासन ने ऐश्ली कुटिन्हो के साथ बातचीत में कहा कि जिंस कीमतों में तेजी और घरेलू वृद्घि में सुधार के साथ, मुद्रास्फीति पर गंभीरता से नजर रखे जाने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि 10 वर्षीय जी-सेक बेंचमार्क वर्ष 2021 के अंत तक 6.40-6.45 प्रतिशत के करीब पहुंच सकता है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
आरबीआई की ताजा नीतिगत समीक्षा पर आपकी क्या राय है?
हालांकि आरबीआई ने दरों में बदलाव नहीं किया है, लेकिन यह नीति बेहद महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसमें दर को सामान्य बनाए जाने के कदम उठाए गए। वोलंटरी रिटेंशन रूट (वीआरआर) का आकार 2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाने जाने से पता चलता है कि आरबीआई ने अतिरिक्त तरलता को धीरे धीरे वापस लेना शुरू कर दिया है। यह नीतिगत समीक्षा निश्चित तौर पर पहले के मुकाबले कम सख्त थी। वृद्घि में सुधार और टीकाकरण में तेजी की वजह से हालात इस पर निर्भर करेंगे कि आरबीआई कब वीआरआर में इजाफा करेगा।
ब्याज दरों की राह कैसी रहेगी?
हमें बॉन्ड प्रतिफल में धीरे धीरे इजाफा होने की उम्मीद है। जहां प्रतिफल इस नीतिगत समीक्षा के बाद बढ़ा है, वहीं 10-15 आधार अंक की और गिरावट आ सकती है। आरबीआई इस तथ्य से दूर नहीं हट सकता कि केंद्र और राज्यों से इस साल आपूर्ति अच्छी है, और इसलिए अब आपूर्ति सीमित है। हमें कैलेंडर वर्ष के अंत तक 10 वर्षीय जी-सेक बेंचमार्क 6.40-6.45 प्रतिशत स्तरों के नजदीक पहुंचने की संभावना है।
मुद्रास्फीति के बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जहां आरबीआई ने उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) के ताजा आंकड़े को खारिज कर दिया है, वहीं हमारी राय में, यह समय पर आधारित है कि मुद्रास्फीति मांग-केंद्रित कब होगी। जिंस कीमतों में तेजी और घरेलू वृद्घि मजबूत होने के साथ मुद्रास्फीति पर गंभीरता से नजर रखे जाने की जरूरत है। आधार प्रभाव अगले 6 महीनों के दौरान अनुकूल होगा, लेकिन आपको मासिक आधार पर तेजी, खासकर मुख्य मुद्रास्फीति पर नजर रखने की जरूरत होगी।
वित्त वर्ष 2022 के लिए उधारी कार्यक्रम पर आप क्या कहना चाहेंगे?
आरबीआई को इस साल चुनौतीपूर्ण कार्य से जूझना पड़ा है। कई ऐसे कारक और अनिश्चितताएं हैं जो बजट अनुमानों में तेजी ला सकती हैं। महामारी की वजह से सरकार को न सिर्फ इस साल बल्कि अगले कुछ वर्षों तक सरकारी खर्च बरकरार रखने की जरूरत होगी। इससे आरबीआई को आर्थिक स्थायित्व बनाए रखने और सरकारी उधारी को आसान बनाने की राह संतुलित बनाने की चुनौती होगी।
डेट और प्रतिफल पर आपका क्या नजरिया है?
मौजूदाप्रतिफल की रफ्तार बेहद तेज है। जहां अल्पावधि में दरें तरलता पर केंद्रित होंगी, वहीं दीर्घावधि में इन पर दबाव बना रहेगा। हमें इस वित्त वर्ष के अंत क ब्याज दरें ऊपर बने रहने की संभावना है। संक्षेप में, हमें सपाट परिदृश्य की संभावना है।
बॉन्ड सूचकांक में भारत को शामिल करने की राह में कौन सी संभावित बाधाएं हैं?
वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत को शामिल करने के लिए बाजार में नए निवेशकों को जोडऩे में लंबा वक्त लगेगा। यह जरूरी है, क्योंकि लंबे समय से, हमारा बॉन्ड बाजार आपूर्ति खपाने के लिए बैंकों, भविष्य निधि और पेंशन फंडों तथा बीमा कंपनियों पर निर्भर रहा है। हालांकि कुछ परिचालन कारक हैं जो भारत को इसमें शामिल होने की राह में बाधक हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय विवेशकों द्वारा इन फंडों में निवेश की मात्रा पर सीमा आदि। विदेशी निवेशकों के संदर्भ में कर समस्याओं को दूर किया जाना भी बाकी है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा बॉन्ड खरीदारी में जल्द नरमी लाने की उम्मीद से 10 वर्षीय प्रतिफल 6 महीने में अपने ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
हमारे बाजार वैश्विक घटनाक्रमों से ज्यादा जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, आरबीआई वैश्विक केंद्रीय बैंकों से रुझानों पर भी ध्यान देता है, चाहे यह दर संबंधित हो या कोई गैर-पारंपरिक कदम।