हालांकि वामपंथी कंपनियां अब सरकार से बाहर हैं लेकिन सरकार पेंशन बिल पर उनके विचारों की चिंता लगता है सरकार को भी है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक कानून मंत्रालय की संतुति के लिए भेजे गए बिल में फंड मैनेजरों को विदेश में निवेश करने पर पाबंदी लगाई गई है। इसके अलावा इस बिल में यह भी प्रावधान भी है कि अगर कोई व्यक्ति चाहे तो अपनी पूरी पूंजी का निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट में कर सकता है।
इन फंडो में विदेशी निवेश की सीमा को बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा से जोड़ा गया है जो फिलहाल 26 फीसदी है। सरकार इसे बढ़ा कर 49 फीसदी करना चाहती है हालांकि इस काम में समय लग सकता है क्योंकि मंत्रियों के एक समूह को अभी इन सिफारिशों को अंतिम रुप देना है। लिहाजा मौजूदा फोकस पेंशन और बैंकिंग क्षेत्र के सुधारों के प्रति है। इस बिल में संसदीय स्थाई समिति की तीन सिफारिशों को स्थान दिया गया है जिसे केंद्रीय कैबिनेट से भी अनुमति मिल गई है।
एक अधिकारी ने कहा कि हम बिल के साथ तैयार हैं। अब सिर्फ बिल में कुछ छोटे सुधार होनें हैं। अगर राजनीतिज्ञों की ओर से सहमति मिल जाती है तो यह बिल मॉनसून सत्र में संसद में होगा। सरकार ने वाम दलों के विरोध के बावजूद साल 2005 में पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी बिल पेश किया था लेकिन वह समिति की सिफारिशें नहीं प्राप्त कर सकी। इस बिल के बाद पेंशन के प्रबंधन में फंड मैनेजरों का प्रवेश संभव हो जाएगा।
इसके बाद एक कस्टमर सर्विस गाइडलाइन होगी और उसके बाद ग्राहकों को उसमें से चुनाव करना पड़ेगा। इन प्रावधानों की अनुपस्थिति में पीएफआरडीए ने तीन फंड मैनेजरों से गठजोड़ किया है। इनमें यूटीआई असेट मैनेजमेंट , एलआईसी म्युचुअल फंड और एसबीआई म्युचुअल फंड हैं। इनके द्वारा करीब 1,500 करोड़ की पूंजी का प्रबंधन किया जाएगा। जानकारी के अनुसार ग्राहक को पूंरी पूंजी के डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश करने की छूट देने की सलाह पीएफडीआरए के प्रमुख डी स्वरुप ने दी और समिति इस पर सहमत हो गई।
यद्यपि इस प्रकार के विकल्प अमेरिका जैसे देशों में पहले से ही उपलब्ध हैं। इसमें विनियामक निवेशक को पीएफडीआरए के द्वारा अनुसंशित विकल्पों की एक सूची प्रदान देने की अनुमति फंड मैनेजरों को देगा लेकिन अगर निवेशक मौजूदा नहीं है तो डिफॉल्ट ऑप्शन की बात आएगी। विनियामक डिफॉल्ट ऑप्शन होनें पर एक लाइफ साइकल प्लान पर भी सहमत हो सकते हैं ताकि पहले वर्षों में निवेशक ज्यादा से ज्यादा इक्विटी में निवेश कर सके। वे एक संतुलित इनवेस्टमेंट पैटर्न की ओर भी रुख कर सकते हैं जैसे वह 50 फीसदी इक्विटी और 50 फीसदी डेट में निवेश कर सकते हैं। लाइफ सायकल केखत्म होंने पर निवेशक को 60 फीसदी पूंजी कैस में मिल जाएगी ।