क्लियरिंग व निपटान शुल्क के तौर पर बढ़ते खर्च ने बीएसई व एनएसई के बीच तकरार बढ़ा दी है। एनएसई ने शुल्क घटाने के बीएसई के अनुरोध को ठुकरा दिया है। एनएसई ने कहा कि शुल्क के पुनर्गठन की उसकी कोई योजना नहीं है और वह इंटरऑपरेबिलिटी फ्रेमवर्क के तहत तय कीमत के साथ अपना कामकाज जारी रखेगा।
साल 2019 में शुरू हुआ इंटरऑपरेबिलिटी फ्रेमवर्क किसी भी एक्सचेंज पर हुए ट्रेड के निपटान या क्लियरिंग की इजाजत एनएसई क्लियरिंग (एनसीएल) या इंडियन क्लियरिंग (आईसीसीएल) पर करने की इजाजत देता है, जिसका स्वामित्व क्रमश: एनएसई व बीएसई के पास है। पहले दोनों एक्सचेंज अपने-अपने प्लेटफॉर्म पर हुए ट्रेड के निपटान की खातिर अपने क्लियरिंग कॉरपोरेशन का इस्तेमाल करते थे।
चूंकि ज्यादातर ऑप्शन वॉल्यूम एनसीएल पर सेटल होते हैं, ऐसे में विश्लेषकों का कहना है कि एनएसई की तरफ से एनसीएल को दिया जाने वाला शुल्क उसके एकीकृत वित्तीय विवरण में दर्ज राजस्व में वापस आ जाता है। हालांकि बीएसई को एनसीएल व आईसीसीएल को सेटलमेंट व क्लियरिंग शुल्क का भुगतान करना होता है।
एकल आधार पर बीएसई ने क्लियरिंग व सेटलमेंट चार्जेज के तौर पर दिसंबर तिमाही में 53.8 करोड़ रुपये की लागत उठाई जबकि एक तिमाही पहले यह लागत 40.2 करोड़ रुपये थी। नतीजे की घोषणा के बाद बीएसई ने कहा कि क्लियरिंग व सेटलमेंट चार्जेज ज्यादा होना उसके शुद्ध लाभ पर असर डालने वाले कारकों में से एक है जो दिसंबर तिमाही में 108.2 करोड़ रुपये था।
बीएसई के एमडी व सीईओ सुंदररामन राममूर्ति ने कहा कि हम अन्य क्लियरिंग कॉरपोरेशन से पहले ही अनुरोध कर चुके हैं। हमने उन्हें लिखा है कि यह लागत काफी ज्यादा है और उन्हें इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि क्लियरिंग कॉरपोरेशन संग इंटरऑपरेबिलिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए लंबा समय हो गया है। अब इसकी समीक्षा का समय है।
एनएसई के एमडी व सीईओ आशिषकुमार चौहान ने कहा कि क्लियरिंग व सेटलमेंट चार्जेज पहले ही तय हुए थे जब इंटरऑपरेबिलिटी के तहत दोनों एक्सचेंजों ने दोनों क्लियरिंग हाउस की सेवाओं के इस्तेमाल का फैसला लिया था। और यह जारी है। अभी इन अनुबंधों पर दोबारा बातचीत की कोई योजना नहीं है।