म्युचुअल फंड

Mutual Funds: रेगुलर बनाम डायरेक्ट प्लान, दोनों में से कौन आपके लिए ज्यादा बेहतर?

दोनों में एक ही तरह की संपत्तियों में निवेश किया जाता है और दोनों का निवेश उद्देश्य भी एक जैसा होता है।

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अंशु   
Last Updated- February 11, 2025 | 7:44 AM IST

Regular vs Direct Mutual Funds: भारत में म्युचुअल फंड की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, और इसका सीधा प्रमाण म्युचुअल फंड इंडस्ट्री का लगातार बढ़ता AUM है। मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी (MOAMC) की ‘व्हेयर द मनी फ्लो’ रिपोर्ट बताती है कि पिछले 10 वर्षों में भारत की एसेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री ने 6 गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की है। दिसंबर 2014 में जहां इसका AUM 10.51 लाख करोड़ रुपये था, वह दिसंबर 2024 तक बढ़कर 66.93 लाख करोड़ रुपये हो गया। निवेशकों के लिए म्युचुअल फंड में दो मुख्य विकल्प होते हैं-रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान। दोनों में एक ही तरह की संपत्तियों में निवेश किया जाता है और दोनों का निवेश उद्देश्य भी एक जैसा होता है। लेकिन इनकी लागत और प्रबंधन में बड़ा अंतर होता है। ऐसे में सवाल उठता है कि निवेशकों के लिए कौन-सा प्लान ज्यादा फायदेमंद है।

रेगुलर और डायरेक्ट प्लान क्या है?

म्युचुअल फंड में निवेश करने के लिए निवेशक दो विकल्प चुन सकते हैं-रेगुलर प्लान या डायरेक्ट प्लान। डायरेक्ट प्लान में निवेशक म्युचुअल फंड की यूनिट्स सीधे एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) से खरीदते हैं, जिसमें कोई बिचौलिया नहीं होता। वहीं, रेगुलर प्लान में निवेशक डिस्ट्रीब्यूटर या ब्रोकर्स के जरिए यूनिट्स खरीदते हैं, जो इसके बदले कमीशन लेते हैं। दोनों में एक ही तरह की संपत्तियों में निवेश किया जाता है और दोनों का निवेश उद्देश्य भी एक जैसा होता है। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर निवेश के माध्यम और उससे जुड़ी लागत में होता है।

रेगुलर और डायरेक्ट प्लान में मुख्य अंतर

रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के बीच सबसे बड़ा अंतर उनका एक्सपेंस रेश्यो (expense ratio) है। एक्सपेंस रेश्यो वह फीस है जो एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) फंड का प्रबंधन करने की लागत को कवर करने के लिए लेती है, जिसमें प्रशासनिक खर्च (administrative costs), प्रबंधन शुल्क (management fees) और अन्य परिचालन खर्च (operational expenses) शामिल होते हैं।

चूंकि डायरेक्ट प्लान में कोई बिचौलिया नहीं होता, इसलिए AMC को कमीशन नहीं देना पड़ता। इस वजह से डायरेक्ट प्लान में खर्च कम होता है और आपकी ज्यादा राशि रिटर्न कमाने में लगती है।

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कम एक्सपेंस रेश्यो का मतलब ज्यादा रिटर्न

डायरेक्ट प्लान का कम एक्सपेंस रेश्यो आमतौर पर निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न में बदलता है, खासतौर पर लॉन्ग टर्म में। समय के साथ, एक्सपेंस रेश्यो में छोटे-से-छोटे अंतर भी कंपाउंडिंग के कारण निवेश की वैल्यू पर बड़ा असर डाल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर दो प्लान- एक रेगुलर और एक डायरेक्ट– दोनों में 12% का रिटर्न मिलता है, लेकिन रेगुलर प्लान का एक्सपेंस रेश्यो 1% और डायरेक्ट प्लान का 0.5% है, तो लॉन्ग टर्म में रिटर्न में बड़ा अंतर हो सकता है। आप नीचे कैलकुलेशन देख सकते है।

रेगुलर प्लान 1% एक्सपेंस रेश्यो के साथ

एकमुश्त निवेश- 1,00,000 रुपये
सालना रिटर्न- 12%
समय- 5 साल
फंड की टोटल वैल्यू- 1,76,234 रुपये
1% एक्सपेंस रेश्यो को घटाने के बाद फंड का वैल्यू- 1,74,472

डायरेक्ट प्लान 0.5% एक्सपेंस रेश्यो के साथ

एकमुश्त निवेश- 1,00,000 रुपये
सालना रिटर्न- 12%
समय- 5 साल
फंड की टोटल वैल्यू- 1,76,234 रुपये
0.5% एक्सपेंस रेश्यो को घटाने के बाद फंड का वैल्यू-1,75,353

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रेगुलर प्लान के फायदे

भले ही डायरेक्ट प्लान में कम खर्च होता है, लेकिन रेगुलर प्लान नए निवेशकों के लिए कई फायदे देता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें वित्तीय सलाहकारों या डिस्ट्रीब्यूटर्स का मार्गदर्शन मिलता है। ये पेशेवर निवेशकों को उनके वित्तीय लक्ष्यों के आधार पर सही सलाह देते हैं, जिससे म्युचुअल फंड में निवेश करना आसान हो जाता है।

आपके लिए कौन सा प्लान सही है?

रेगुलर और डायरेक्ट म्युचुअल फंड के बीच फैसला मुख्य रूप से निवेशक के अनुभव, लक्ष्यों और पसंद पर निर्भर करता है। डायरेक्ट प्लान उन अनुभवी निवेशकों के लिए बेहतर हैं, जो अपने दम पर फैसले लेने में सहज महसूस करते हैं और लंबे समय तक कम लागत में ज्यादा रिटर्न पाना चाहते हैं। कम एक्सपेंस रेश्यो के कारण ये निवेशक हाई रिटर्न का लाभ उठा सकते हैं।

वहीं, रेगुलर प्लान उन लोगों के लिए उपयुक्त हैं, जिन्हें पेशेवर मार्गदर्शन की जरूरत होती है, जो निवेश की दुनिया में नए हैं, या जो खुद से निवेश का चयन और प्रबंधन करने में समय नहीं लगाना चाहते।

First Published : February 11, 2025 | 7:44 AM IST