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Equity Fund: देश में बचत और निवेश का तरीका लगातार बदल रहा है। परंपरागत निवेश विकल्पों (बैंक FD, RD… वगैरह) के मुकाबले शेयर बाजार और म्युचुअल फंड्स खासकर इक्विटी स्कीम्स का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। इक्विटी फंड्स में निवेश का चार्ट देखें तो, नवंबर 2025 में लगातार 57वें महीने पॉजिटिव इनफ्लो रहा। यानी, इक्विटी एक पसंदीसा विकल्प बना हुआ है। इक्विटी फंड्स की ये ग्रोथ स्टोरी नए निवेशकों को भी आकर्षित कर रही है। ऐसे में एक अहम सवाल यह है कि अगर कोई नया निवेशक इक्विटी फंड्स में निवेश करना चाहता है, तो वे एक बेहतर स्कीम कैसे चुनें? इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने रिटर्न चार्ट, फंड मैनेजर अनुभव, रेशियोज समेत कई ऐसे फैक्टर बताएं हैं, जो पोर्टफोलियो के लिए अच्छे इक्विटी फंड चुनने में मददगार हो सकते हैं।
देश में बदलते निवेश के ट्रेंड्स को कुछ हालिया रिपोर्ट से समझते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का एक अध्ययन ‘इक्विटी म्युचुअल फंड्स: ट्रांसफॉर्मिंग इंडियाज सेविंग्स लैंडस्केप’ बताता है कि लंबे समय तक फिक्स्ड डिपॉजिट की लगातार कम दरों के चलते लोग उन एसेट क्लास की तलाश करते हैं, जहां ज्यादा रिटर्न मिलता है। लिहाजा, इससे इक्विटी म्युचुअल फंड्स में निवेश बढ़ता है। अध्ययन के मुताबिक, बैंक जमाओं के मुकाबले शेयर बाजारों और म्युचुअल फंड्स में घरेलू बचत का निवेश पिछले साल के मुकाबले दोगुना हुआ। बैंक जमा में निवेशित हर 100 रुपये की बचत पर हाउसहोल्ड ने वित्त वर्ष 2024-25 में म्युचुअल फंड्स और शेयरों में 45.2 रुपये का निवेश किया।
इसी तरह, ‘हाउ इंडिया इन्वेस्ट्स’ शीर्षक से प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि भारतीय परिवारों के लिए म्युचुअल फंड और डायरेक्ट इक्विटी हाल के वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली एसेट कैटेगरी बनी है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में म्युचुअल फंड की पहुंच अगले दशक में 10 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी तक हो सकती है। म्युचुअल फंड इंडस्ट्री के अगले फेज के ग्रोथ को हाउसहोल्ड में बढ़ती पहुंच, मजबूत डिजिटल इकोसिस्टम, आसान रेगुलेशन और निवेशकों के बढ़ते भरोसे से बूस्ट मिलेगा।
इन रिपोर्ट से साफ संकेत मिलते हैं कि देश में बचत और निवेश का इकोसिस्टम बदल रहा है और अब निवेशक म्युचुअल फंड और डायरेक्ट इक्विटी का तेजी से रुख कर रहे हैं।
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मनीफ्रंट के सीईओ मोहित गांग कहते हैं, अच्छे इक्विटी फंड्स चुनने से पहले कुछ चुनिंदा पैरामीटर्स पर जरूर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने चार अहम फैक्टर्स बताए हैं।
रिटर्न में निरंतरता: ऐसी स्कीम्स को देखना चाहिए जिसने 6 महीने, 1 साल, 3 साल और 5 साल के टाइमफ्रेम में लगातार बेंचमार्क से ज्यादा रिटर्न दिया है।
फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड: सही फंड चुनने के लिए एक स्थिर और अनुभवी फंड मैनेजर का होना जरूरी है, जिसे अपने इन्वेस्टमेंट अप्रोच की समझ हो।
रेशियोज: अल्फा, बीटा, SD और इन्फॉर्मेशन रेशियो जैसे रेशियोज, यह सुनिश्चित करें कि ये रेंज में हों।
रोलिंग रिटर्न: यह 3 साल, 5 साल और 10 साल जैसे खास अवधि के लिए म्युचुअल फंड के औसत सालाना रिटर्न को मापता है। यह फंड की परफॉर्मेंस की ज्यादा असली तस्वीर दिखाता है। साथ ही कंसिस्टेंसी का भी सही आकलन बताता है।
बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम कहते हैं, इक्विटी फंड्स चुनने से पहले अपने निवेश का लक्ष्य और रिस्क उठाने की क्षमता का जरूर आकलन कर लें। जो भी फंड आप चुनना चाहते हैं, उसका 5 से 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड जरूर देख लें कि उसके रिटर्न में निरंतरता कितनी है।
निगम का कहना है, इसके साथ ही साथ फंड को मैनेज करने वाले फंड मैनेजर का अनुभव और परफॉर्मेंस जरूर चेक कर लें। इसके अलावा, सबसे जरूरी बात कि फंड की निवेश स्टाइल और पोर्टफोलियो कम्पोजिशन पर भी जरूर विचार कर लें।
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एडलवाइस म्युचुअल फंड ने अपनी एक रिपोर्ट में इक्विटी फंड कैसे चुनें, इस पर कुछ सुझाव दिए हैं। म्युचुअल फंड हाउस ने बेहतर इक्विटी फंड चुनने के लिए 5 फैक्टर बताए हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए
फंड चुनने से पहले सबसे पहली चीज जो देखनी चाहिए, वह है फंड का रिस्क। निवेश करने से पहले तीन चीजें देखनी चाहिए। पहली है इक्विटी एलोकेशन; इक्विटी एलोकेशन जितना ज्यादा होगा, फंड उतना ही रिस्की होगा। दूसरा है मार्केट कैप एलोकेशन; जिन फंड्स में स्मॉल कैप एलोकेशन ज्यादा होता है, वे मिडकैप और आखिर में लार्ज कैप की तुलना में ज्यादा रिस्की होते हैं। तीसरा पैरामीटर जो निवेशकों को देखना चाहिए, वह है फंड का स्टैंडर्ड डेविएशन। स्टैंडर्ड डेविएशन जितना ज्यादा होगा, फंड उतना ही रिस्की होगा।
पोर्टफोलियो टर्नओवर रेशियो बताता है कि उस अवधि में कितने स्टॉक बदले गए हैं। रेशियो जितना ज्यादा होगा, स्टॉक में उतना ही ज्यादा बदलाव होगा। बेहतर एनालिसिस के लिए सिर्फ इक्विटी हिस्से का टर्नओवर रेशियो देखना चाहिए। कम टर्नओवर का मतलब है कि फंड मैनेजर को अपने फैसलों पर ज्यादा भरोसा है।
शार्प रेशियो का इस्तेमाल रिस्क की तुलना में निवेश के रिटर्न को समझने के लिए किया जाता है। यह रेशियो फंड की कीमत में उतार-चढ़ाव से ज्यादा कमाए गए एवरेज रिटर्न से कैलकुलेट किया जाता है। इस रेशियो का इस्तेमाल यह समझने के लिए किया जाता है कि फंड द्वारा जेनरेट किया गया ज्यादा रिटर्न अतिरिक्त रिस्क का नतीजा है या नहीं।
टॉप 10 होल्डिंग के साथ-साथ स्टॉक्स की संख्या पोर्टफोलियो की गंभीरता को दिखाती है। अगर स्टॉक्स की संख्या बहुत कम है, तो ज्यादा डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो की तुलना में पोर्टफोलियो को ज्यादा रिस्की माना जाता है। यह ध्यान दें कि ज्यादा डाइवर्सिफिकेशन से परफॉर्मेंस में भी कमी आ सकती है।
एक्टिव बेट्स का मतलब है एलोकेशन का वह प्रतिशत जो बेंचमार्क से अलग है। ज्यादा एक्टिव बेट का मतलब है फंड मैनेजर का ज्यादा भरोसा, जो बेंचमार्क की तुलना में बेहतर रिटर्न जेनरेट करने में मदद करता है।
इक्विटी म्युचुअल फंड्स में नवंबर 2025 के दौरान निवेश बढ़कर 29,911 करोड़ रुपये हो गया। अक्टूबर में इन फंड्स में 24,690 करोड़ रुपये का इनफ्लो हुआ था। हालांकि, सालाना आधार पर देखें, तो इक्विटी फंड्स में निवेश 17 फीसदी घटा है। नवंबर 2024 में 35,943 करोड़ रुपये का निवेश दर्ज किया गया था।
इक्विटी म्युचुअल फंड्स में फ्लेक्सी कैप और लार्ज एंड मिड कैप कैटेगरी में निवेशकों का रुझान बना हुआ है। एम्फी के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर में फ्लेक्सी कैप कैटेगरी में सबसे ज्यादा 8,135 करोड़ रुपये का इनफ्लो हुआ। अक्टूबर में यह निवेश 8,928 करोड़ रुपये था। लार्ज एंड मिड कैप फंड्स में निवेशकों ने 4,503 करोड़ रुपये (अक्टूबर में 3,177 करोड़) का निवेश किया।
इसके अलावा, मिडकैप फंड्स में 4,486 करोड़, स्मालकैप फंड्स में 4,406 करोड़, मल्टीकैप में 2,462.84 करोड़, लार्ज कैप में 1,639.80 करोड़ फोकस्ड फंड में 2,039 करोड़, सेक्टोरल फंड्स में 1,865 करोड़, और वैल्यू फंड्स में 1,219 करोड़ का इनफ्लो दर्ज किया गया। वहीं दूसरी ओर, ELSS से 570 करोड़ और डिविडेंड यील्ड फंड्स से 277.7 करोड़ रुपये का आउटफ्लो हुआ।
(डिस्क्लेमर: म्युचुअल फंड में निवेश जोखिमों के अधीन है। निवेश संबंधी कोई भी फैसला करने से पहले स्वयं पड़ताल कर लें या अपने एडवाइजर से जरूर परामर्श कर लें।)