कर को लेकर झटके के बावजूद ब्रोकरेज फर्में परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) की संभावनाओं को लेकर आशावादी बनी हुई हैं। पिछले तीन महीने में एएमसी के शेयरों में तेज गिरावट ज्यादा नकारात्मक चीजों के समाहित करने से हुई और अब मूल्यांकन आकर्षक हो गए हैं। यह कहना है विश्लेषकों का।
ताजा रिपोर्ट में कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज ने एचडीएफसी एएमसी को अपग्रेड कर निवेश घटाएं से जोड़ें कर दिया है और बाकी सूचीबद्ध एएमसी निप्पॉन, यूटीआई और आदित्य बिड़ला सन लाइफ में खरीद की रेटिंग दोहराई है। जेएम फाइनैंशियल की भी ज्यादातर एएमसी को लेकर खरीद की रेटिंग है।
ब्रोकरेज ने कहा, म्युचुअल फंड उद्योग वित्त वर्ष 24 में डेट योजनाओं की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज कर सकता है जबकि पहले इसके एयूएम में 12 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान जताया गया था। इसे हालांकि उम्मीद है कि निवेशक अपनी रकम अन्य फिक्स्ड इनकम निवेश विकल्पों में ले जाएंगे क्योंकि डेट एमएफ के साथ लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर का फायदा अब समाप्त हो गया है।
एक अन्य नोट में प्रभुदास लीलाधर ने कहा है, अगर डेट में होने वाला निवेश 20 फीसदी घटे तब भी हमें लगता है कि एएमसी के मुनाफे पर इसका न्यूनतम असर पड़ेगा। पिछले दो कारोबारी सत्रों में एएमसी के शेयर 3.5 फीसदी से लेकर 12 फीसदी तक टूटे हैं और तीन महीने में 20 से 30 फीसदी गिरे हैं। इससे उनके मूल्यांकन में खासा सुधार हुआ है। विश्लेषकों ने कहा कि एएमसी के शेयर अब अपनी वित्त वर्ष 25 की अनुमानित आय के 15 से 22 गुने पीई पर कारोबार कर रहे हैं।
हाल के महीनों में एएमसी के शेयरों में गिरावट की वजह नियामकीय सख्ती के डर को बताया गया है। संभावना है कि बाजार नियामक सेबी एएमसी के खर्च अनुपात को व्यावहारिक बना सकता है, जिससे निवेशकों के लिए लागत कम हो जाएगी। ऐसे कदम से एएमसी के मार्जिन में कमी आएगी। वित्त विधेयक में डेट फंडों के लिए घोषित कर से लगे झटके ने निवेशकों का सेंटिमेंट बिगाड़ दिया है।
ब्रोकरेज फर्मों को कर बदलाव से एएमसी के राजस्व पर सीमित असर पड़ता दिख रहा है। उनका अनुमान है कि डेट फंडों को घटे निवेश का एक हिस्सा हाइब्रिड फंडों मसलन बैलेंस्ड एडवांटेज और इक्विटी सेविंग्स स्कीम्स में आ सकता है, जो इक्विटी फंडों के मुकाबले सुरक्षित होते हैं लेकिन इस पर इक्विटी योजनाओं की तरह की कर लगता है, जिससे निवेशकों को एलटीसीजी का फायदा मिलेगा।
जेएम फाइनैंशियल ने एक नोट में कहा, विभिन्न एएमसी से बातचीत के आधार पर कह सकते हैं कि इस नियमन से फंड हाउस को फायदा हो सकता है क्योंकि डेट योजनाओं को मिलने वाली रकम हाइब्रिड फंडों की ओर जा सकती है, जहां कुल खर्च अनुपात ज्यादा देना होता है।
इसके अतिरिक्त, कर बदलाव से सिर्फ चुनिंदा डेट योजनाओं मसलन लिक्विड, ओवरनाइट व मनी मार्केट फंडों पर पड़ेगा, जिसका इस्तेमाल अल्पावधि के निवेश के लिए होता है, ऐसे में उनके निवेशकों को वास्तव में एलटीसीजी का शायद ही लाभ मिला हो।
फरवरी में उद्योग की कुल डेट प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) 13.4 लाख करोड़ रुपये का 62 फीसदी यानी 8.6 लाख करोड़ रुपये नकदी या अल्पावधि वाली डेट योजनाओं में था।
कुल खर्च अनुपात को व्यावहारिक बनाए जाने के मामले में कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज ने विश्लेषण किया है और तीन परिदृश्य सामने रखा है कि कैसे वित्त वर्ष 24 में इसका असर एएमसी की आय पर पड़ सकता है। इसमें पाया गया है कि एएमसी की आय अधिकतम 79 फीसदी और न्यूनतम 6 फीसदी घट सकती है।
पहला परिदृश्य : गंभीर
ब्रोकरेज का मानना है कि सेबी फंड हाउस को प्रबंधन शुल्क, ट्रेडिंग शुल्क पर जीएसटी और कुल खर्च अनुपात कम करने को कह सकता है।
दूसरा परिदृश्य : मामूली
इसमें ब्रोकरेज कुल खर्च में कमी पर विचार नहीं कर रहा है।
तीसरा परिदृश्य : उदार
इसमें सिर्फ ट्रेडिंग लागत को कुल खर्च अनुपात के दायरे में लाने का अनुमान लगाया गया है।
नियामक ने एएमसी की तरफ से वसूले जाने वाले खर्च का विस्तार से अध्ययन किया है। रिपोर्ट बताती है कि सेबी फंड हाउस को या तो शुल्क कम करने के लिए कह सकता है ताकि शेयरों प्रबंधन शुल्क व लेनदेन शुल्क पर जीएसटी को शामिल किया जा सके। यह कुल खर्च अनुपात के तहत शेयरों की खरीद व बिक्री पर होगा।