किसी समय विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) मॉरीशस के रास्ते भारत में खूब निवेश करते थे और वह उनका पसंदीदा ठिकाना था। लेकिन 30 जून को एफपीआई की संपत्तियों की कस्टडी (एयूसी) के लिहाज से यह पांचवें स्थान पर फिसल गया है।
नैशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी (एनएसडीएल) के आंकड़ों के मुताबिक अब 4.41 लाख करोड़ रुपये एयूसी के साथ आयरलैंड चौथे स्थान पर आ गया है। जून 2024 के अंत में मॉरीशस में एफपीआई की एयूसी 4.39 लाख करोड़ रुपये थी।
अगर विशुद्ध इक्विटी होल्डिंग की बात करें तो इन दोनों देशों के बीच अंतर और बढ़ जाता है। 2024 की पहली छमाही में मॉरीशस के एफपीआई की एयूसी 11 फीसदी बढ़ी मगर आयरलैंड में एयूसी में 26 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई।
कानून विशेषज्ञों और कस्टोडियनों का कहना है कि मॉरीशस पसंदीदा देश बना हुआ है मगर वहां नए फंडों की मंजूरी लेने में ज्यादा समय लगने लगा है जिसकी वजह से नए फंड के पंजीकरण में देर हो रही है।
इलियॉस फाइनैंशियल सर्विसेज के संस्थापक और पूंजी बाजार कार्यबल, एफएससी मॉरीशस के सदस्य आनंद सिंह ने कहा, ‘भारत में निवेश करने वाले मॉरीशस के फंडों की जांच-पड़ताल बढ़ गई है जिससे नए फंड शुरू करने में देरी हो रही है और मॉरीशस के नियामक से भी मंजूरी मिलने में समय लग रहा है। इसकी वजह से निवेशक दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं।’
सिंह ने कहा, ‘लक्समबर्ग, आयरलैंड और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में कर संधि के फायदे मिलने के कारण भी निवेशक इन देशों के रास्ते भारत में निवेश करना पसंद कर रहे हैं। उदाहरण के लिए आयरलैंड या लक्समबर्ग में नकद इक्विटी पर अब भी कोई कर नहीं लगता।’
एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार आयरलैंड में 780 से ज्यादा एफपीआई पंजीकृत हैं और मॉरीशस में उनकी संख्या 595 ही है।
मॉरीशस और भारत ने इस साल मार्च में दोहरा कराधान निषेध समझौते (डीटीएए) को संशोधित करने के करार पर हस्ताक्षर किए थे। मॉरीशस ने ओईसीडी के प्रस्ताव के अनुरूप बेस इरोजन ऐंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) मानदंडों में संशोधन किया है। बीईपीएस उन तरीकों के बारे में बताता है, जिनका इस्तेमाल संस्थाएं या कंपनियां कर देने से बचने के लिए करती हैं ताकि उन पर कर का बोझ कम हो जाए।
मॉरीशस ने करदाताओं द्वारा संधि के दुरुपयोग को रोकने के लिए ‘प्रिंसिपल पर्पज टेस्ट’ (पीपीटी) की शुरुआत की है, जिसमें मॉरीशस को यदि लाभ कमाने के इरादे से चुना गया है तो इस संधि का फायदा देने से मना कर दिया जाता है।
एफपीआई को सेवा प्रदान करने वाले एक संपत्ति सेवा प्रदाता ने कहा, ‘उद्योग द्वारा कर संधि में संशोधन का विरोध किए जाने के कारण इसे अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। हमें लगता है कि वहां नवंबर में आम चुनाव होने के बाद ही इस पर तस्वीर साफ होगी।’
अधिसूचना जारी नहीं होने की वजह से निजी इक्विटी फंडों और सार्वजनिक मार्केट फंडों के बीच भी असमंजस बना हुआ है कि कर संधि में संशोधन के बाद वे लाभ के पात्र होंगे या नहीं।