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भारतीय बाजार ओवरप्राइस्ड, दिग्गज इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट मार्क फेबर ने कहा– 1 साल में ज्यादा रिटर्न की उम्मीद न रखें

फैबर ने साफ कहा कि अमेरिका की नीतियां बाज़ार को लगातार अस्थिर बना रही हैं, और भारत जैसी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वैल्यू कम होती जा रही है।

Last Updated- May 21, 2025 | 11:28 AM IST
Marc Faber
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट और 'The Gloom, Boom & Doom Report' के एडिटर मार्क फैबर

Indian Stock Market: दुनियाभर के बाज़ारों में जबरदस्त उथल-पुथल के बीच, ग्लोबल इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट और ‘The Gloom, Boom & Doom Report’ के एडिटर मार्क फैबर का मानना है कि अब सिर्फ इंडेक्स में निवेश करने से फायदा नहीं होगा। 2025 में अगर रिटर्न चाहिए, तो निवेशकों को सोच-समझकर सही स्टॉक्स चुनने होंगे।

पुनीत वाधवा से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत में फैबर ने साफ कहा कि अमेरिका की नीतियां बाज़ार को लगातार अस्थिर बना रही हैं, और भारत जैसी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वैल्यू कम होती जा रही है। ऐसे माहौल में कैसे करें निवेश, किन बाज़ारों पर रखें नज़र, और क्या गोल्ड-बिटकॉइन जैसे विकल्प अब भी फायदे का सौदा हैं – इन सभी सवालों पर फैबर ने बेबाक राय दी। पेश हैं इस बातचीत के अंश…

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने बाज़ार को कितना प्रभावित किया है? क्या ग्लोबल मार्केट्स में और झटके आएंगे?

इस साल डॉलर कई विदेशी मुद्राओं के मुकाबले कमजोर हुआ है, खासकर येन और स्विस फ्रैंक के मुकाबले। यहां तक कि यह कीमती धातुओं के मुकाबले भी कमजोर हुआ है। टैरिफ यानी सीमा शुल्क डॉलर के लिए फायदेमंद नहीं होते। यह कहना मुश्किल है कि डॉलर की गिरावट का सीधा कारण टैरिफ ही हैं या कुछ और, लेकिन इतना तय है कि टैरिफ से डॉलर को नुकसान होता है।

जहां तक झटकों की बात है, तो हां – हमें आगे और भी आश्चर्य देखने को मिल सकते हैं। ट्रंप फैसले बिना पूरी तैयारी के लेते हैं, और बाद में अपने सलाहकारों या अमीर डोनर्स की बात सुनकर उन्हें बदल देते हैं। इससे बाज़ार में बहुत अस्थिरता आती है। उदाहरण के लिए, टेस्ला के शेयर दिसंबर से अप्रैल की शुरुआत तक 63% गिर गए थे, लेकिन फिर उसमें करीब 40% की तेज़ रैली आ गई। इस तरह की उठा-पटक लगातार बनी रहेगी।

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क्या आपको लगता है कि आगे भी बाज़ार में ऐसी अस्थिरता बनी रहेगी?

बिलकुल, ग्लोबल मार्केट्स में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। ट्रंप की नीतियां लगातार बदलती रहती हैं, और उनके फैसले बहुत सारी बाहरी सलाहों से प्रभावित होते हैं। इससे निवेशकों में भ्रम और अनिश्चितता बढ़ती है, और यही बाज़ार की अस्थिरता का मुख्य कारण है।

अमेरिकी फेडरल रिज़र्व अगले 6 से 12 महीनों में क्या कदम उठा सकता है?

ये इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और महंगाई (Inflation) का क्या हाल रहेगा। लेकिन मेरी राय में फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में कटौती करेगा। हालांकि, इससे यह तय नहीं होता कि लंबी अवधि के ब्याज दर भी घटेंगे। ज़रूरी नहीं कि बॉन्ड बाज़ार फेड की इस कटौती को अच्छा मानें।

2025 में कौन ज़्यादा अच्छा करेगा – विकसित बाज़ार या उभरते बाज़ार?

मेरे हिसाब से 2025 में उभरते बाज़ार अमेरिका से बेहतर प्रदर्शन करेंगे। यूरोप भी अमेरिका से बेहतर कर सकता है। इसका एक बड़ा कारण डॉलर का लगातार कमजोर होना है। डॉलर में गिरावट का सीधा फायदा दूसरी अर्थव्यवस्थाओं को मिलता है।

भारत को आप इस संदर्भ में कैसे देखते हैं?

भारतीय बाज़ार मुझे बहुत महंगा लगता है। हां, कुछ गिने-चुने स्टॉक्स हो सकते हैं जो सस्ते हैं, लेकिन कुल मिलाकर मुझे दूसरे उभरते बाज़ारों में बेहतर वैल्यू मिल रही है। हाल ही में ब्राज़ील, कोलंबिया जैसे लैटिन अमेरिकी बाज़ार और हांगकांग जैसे दक्षिण एशियाई बाज़ार अमेरिका से बेहतर प्रदर्शन कर चुके हैं। इस समय मुझे इंडोनेशिया, थाईलैंड और मलेशिया जैसे बाज़ार भारत से ज़्यादा आकर्षक लगते हैं।

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तो क्या भारतीय निवेशकों को रैली के दौरान निकल जाना चाहिए?

ये आपके निवेश के उद्देश्य और समय-सीमा पर निर्भर करता है। लेकिन मैं नहीं मानता कि अगले 12 महीनों में भारतीय स्टॉक्स बहुत ज़्यादा रिटर्न देंगे। इसलिए सतर्क रहना और मौका देखकर बाहर निकलना एक व्यावहारिक सोच हो सकती है।

इस समय एक समझदार निवेश रणनीति क्या हो सकती है?

हमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि हम एक बहुत बड़े एसेट बबल (संपत्ति की कीमतों में बनावटी तेजी) के बीच हैं। पिछले 30–40 सालों में लगभग हर चीज़ महंगी हो गई है – चाहे वो रियल एस्टेट हो, कला, संग्रहणीय चीज़ें, सोना, चांदी, स्टॉक्स या बॉन्ड। अब ऐसा नहीं होगा कि हर जगह से पैसा बन जाए।

हां, कुछ सेक्टर में अब भी वैल्यू बची हुई है। अमेरिका के स्टॉक्स महंगे हैं, लेकिन गोल्ड से जुड़ी कंपनियां, हेल्थकेयर और फार्मा स्टॉक्स अभी भी सस्ते वैल्यूएशन पर मिल रहे हैं। एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ बैंक भी अच्छी वैल्यू दे रहे हैं, भले ही हाल में उनमें रैली आई हो। इसीलिए मैं कहता हूं कि अब इंडेक्स में पैसे लगाने से बेहतर है सही स्टॉक्स को चुनना। इंडेक्स का प्रदर्शन औसत हो सकता है, लेकिन जो लोग समझदारी से स्टॉक्स चुनेंगे, उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सकता है।

नई कोविड स्ट्रेन की चर्चा है, क्या यह बाज़ार में गिरावट ला सकती है?

मुझे नहीं लगता कि कोविड की नई स्ट्रेन से बाज़ार बहुत परेशान है। असली सवाल यह है कि सरकारें कैसे प्रतिक्रिया देंगी। अगर सरकारें फिर से लॉकडाउन या भारी पाबंदियां लगाती हैं, तो ज़रूर इसका असर बाज़ार पर पड़ेगा। लेकिन सिर्फ वायरस की मौजूदगी से नहीं, बल्कि सरकारी नीति से फर्क पड़ता है।

चीन के बारे में आपकी क्या राय है?

पश्चिमी मीडिया चीन के बारे में बहुत नकारात्मक खबरें दिखाता है, लेकिन असल स्थिति इतनी खराब नहीं है। हां, चीन की ग्रोथ रफ्तार अब 8-12% नहीं रह गई है क्योंकि आबादी घट रही है, लेकिन फिर भी चीन तकनीक, ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में तरक्की कर रहा है।

मुझे लगता है कि चीन और हांगकांग के स्टॉक मार्केट अब गिरावट के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं और अब वहां से धीरे-धीरे सुधार आ सकता है।

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क्या विदेशी निवेश फिर से चीन में लौटेगा?

कुछ निवेश वापस आएंगे, लेकिन विदेशी संस्थाएं अभी सतर्क हैं। डर है कि ट्रंप दोबारा कोई ऐसा नियम ला सकते हैं जिससे विदेशी निवेशक चीनी एसेट्स नहीं खरीद सकें। अगर ऐसा हुआ तो यह बहुत बड़ा झटका होगा। इसके बावजूद, मेरी राय में चीन और हांगकांग के स्टॉक्स में अब भी अच्छी वैल्यू है।

सोने और बिटकॉइन की बात करें तो, क्या इनमें आगे भी तेज़ी रहेगी?

मैं पिछले 40 सालों से निवेशकों को सोना रखने की सलाह देता रहा हूं और अब भी मानता हूं कि हर जिम्मेदार निवेशक को कुछ हिस्सा कीमती धातुओं में ज़रूर रखना चाहिए। इस वक्त सोना महंगा है, लेकिन चांदी और खासकर प्लैटिनम सोने के मुकाबले बहुत सस्ते हैं। अगर मैं आज खरीदारी करता, तो मैं प्लैटिनम खरीदता।

First Published - May 21, 2025 | 11:28 AM IST

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