आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) में इस साल नए शेयरों की बिक्री ही ज्यादा रही है मगर वाहन दिग्गज ह्युंडै आईपीओ का भारीभरकम आईपीओ पूरा गणित बदलने जा रहा है। वर्ष 2024 में अभी तक जारी कुल निर्गम (इश्यू) में प्राथमिक शेयर या नए शेयरों की हिस्सेदारी 52 फीसदी रही है, जो 2012 के बाद से सबसे अधिक है। ह्युंडै इंडिया अपने आईपीओ के तहत 27,870 करोड़ रुपये के पहले से मौजूद शेयर बेच रही है।
इस आईपीओ के बाद बाजार की तस्वीर बदलना तय है। इसके बाद 2024 में अभी तक आए निर्गमों में नए शेयरों की बिक्री की हिस्सेदारी घटकर केवल 36.5 फीसदी रह जाएगी। मगर विश्लेषकों का कहना है कि इसके बाद भी 33,772 करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी जुटाया जाना बताता है कि वृद्धि को रफ्तार देने वाली पूंजी की तेज मांग बनी हुई है।
एसबीआई कैपिटल मार्केट्स के कार्यकारी वाइस प्रेसिडेंट और समूह प्रमुख (इक्विटी कैपिटल मार्केट्स) दीपक कौशिक ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए पूंजीगत खर्च में से ज्यादातर सरकार ने किया है। इसमें निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी नहीं दिखी है। पिछले 10 वर्षों में निजी क्षेत्र ने पूंजीगत खर्च में कम योगदान किया है लेकिन अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ने के साथ ही कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ी है। इस साल विनिर्माण अथवा बुनियादी ढांचा जैसे कई क्षेत्र की कई कंपनियां पूंजी बाजार में दस्तक देती दिख सकती हैं।’
आईपीओ के जरिये कोई कंपनी पूरी तरह नई पूंजी जुटा सकती है या पहले से मौजूद शेयर बेच सकती है या दोनों कर सकती है। 1989 से 2012 के बीच दो साल छोड़ दें तो कुल निर्गम में नए शेयरों की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक ही रही। 2013 से आईपीओ बाजार में द्वितीयक यानी पहले से मौजूद शेयरों की बिक्री ज्यादा हुई और निजी इक्विटी निवेश बढ़ा।
बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले एक दशक में रकम जुटाने का तरीका काफी बदला है। शुरुआती पूंजी के लिए आईपीओ की जगह निजी इक्विटी (पीई) और वेंचर कैपिटल फंड ले चुके हैं। यही कारण है कि कंपनियां अपना आईपीओ काफी समय गुजरने के बाद ला रही हैं। कौशिक ने कहा, ‘निजी इक्विटी निवेशक आम तौर पर 5 से 7 साल के लिए निवेश करते हैं और उसके बाद रिटर्न के साथ निवेश निकाल लेते हैं।’
आईपीओ ही नहीं, पीई निवेशक भी कंपनी के सूचीबद्ध होने के बाद ताबड़तोड़ बिकवाली करने लगे हैं क्योंकि अच्छी खासी तरलता मिलती है। विशेषज्ञों ने कहा कि अगर शेयर बाजार के जरिये निवेश निकालने की गुंजाइश नहीं होती तो आईपीओ में ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) की हिस्सेदारी ज्यादा हो सकती थी।
कौशिक ने कहा, ‘पीई निवेशक आईपीओ के जरिये अपने सारे शेयर नहीं बेचते हैं। आईपीओ में वे कुछ शेयर बेचते हैं और सूचीबद्ध होने के बाद जब शेयर का भाव चढ़ता है तथा लॉक-इन अवधि खत्म होती है तो वे बाकी हिस्सेदारी बेच डालते हैं। इसके लिए आम तौर पर वे ब्लॉक डील का रास्ता चुनते हैं।’
बाजार विशेषज्ञों को लगता है कि निर्गम में नए शेयरों की अधिक हिस्सेदारी अच्छा संकेत है मगर पुराने या द्वितीयक शेयरों की बिक्री वाले आईपीओ की सफलता को भी परिपक्व बाजार का संकेत माना जाना चाहिए।
इससे पीई निवेशकों को अपना निवेश निकालने और वहां से मिली पूंजी नई कंपनियों में लगाने का मौका मिलता है। साथ ही प्रवर्तकों को अपनी थोड़ी सी हिस्सेदारी बेचने में मदद मिलती है और कंपनी को सूचीबद्ध कराने की ललक भी उनके भीतर पैदा होती है, जैसा ह्युंडै इंडिया के मामले में दिख रहा है। आईपीओ का मूल्यांकन द्वितीयक बाजार या शेयर बाजार के मूल्यांकन से जुड़ा होता है।