बड़ी संख्या में खुदरा निवेशक फिलहाल मिड-कैप और स्मॉल-कैप सेगमेंट में निवेश सीधे स्टॉक मार्केट के बजाय म्युचुअल फंड के जरिये कर रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ों के मुताबिक मार्च (2,430 करोड़ रुपये) और अप्रैल (2,182 करोड़ रुपये) 2023 में सभी इक्विटी श्रेणियों के बीच स्मॉल-कैप फंडों में अधिकतम निवेश हुआ है।
सकारात्मक अनुभव से प्रेरित आशावाद
निवेशक अपने सकारात्मक अनुभव के कारण स्मॉल-कैप श्रेणी में अधिक रुचि ले रहे हैं। डीएसपी म्यूचुअल फंड के फंड मैनेजर रेशम जैन कहते हैं, “पिछले एक दशक में स्मॉल-कैप फंडों ने लार्ज-कैप फंडों से लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है.” जैन यह भी बताते हैं कि इस कैटेगरी के ज्यादातर एक्टिव फंड ने अपने बेंचमार्क को मात दी है।
दिसंबर 2022 से बाजार में जारी करेक्शन के कारण कई स्मॉल-कैप शेयरों में तेजी से गिरावट आई है। निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर (इक्विटी) समीर रच कहते हैं, “निवेशकों को लगता है कि गिरावट ने उन्हें दीर्घावधि में निवेश का अच्छा मौका दिया है।”
बड़े दायरे में निवेश का मौका
बाजार पूंजीकरण में 151 से नीचे के सभी स्टॉक स्मॉल-कैप हैं, इसलिए फंड मैनेजरों के पास चुनाव के लिए एक बड़ा दायरा है।
स्मॉल-कैप खंड के दायरे में बहुत सारे सेक्टर और उनसे संबंधित उप-सेक्टर आते हैं, जहां तेजी से उद्योगों का विकास हो रहा है। इन क्षेत्रों तक लार्ज-कैप और मिड-कैप श्रेणियों की अभी भी पहुंच नहीं हैं। जैन कहते हैं, “इनमें से कई स्मॉल-कैप कंपनियों ने खुद को घरेलू और वैश्विक स्तर पर अपने संबंधित क्षेत्रों में अग्रणी के तौर पर स्थापित किया है। जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, वे मानक हासिल कर सकते हैं और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं।”
देश का रसायन क्षेत्र, जहां कई स्मॉल-कैप कंपनियां पिछले एक दशक में सफलतापूर्वक मिड-कैप या लार्ज-कैप लेवल तक पहुंची हैं, इसका बेहतर उदाहरण है ।
अब जबकि हम उच्च मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज दर के बुरे दौर को पीछे छोड़ चुके हैं, अर्थव्यवस्था आगे गति पकड़ सकती है। “यदि यह परिकल्पना सही साबित होती है तो व्यक्तिगत शेयरों को लेने के लिए बहुत सारे अवसर होंगे। स्मॉल-कैप कैटेगरी के वैल्यूएशन न तो बहुत सस्ते होते हैं और न ही बहुत महंगे। अगर कमाई वापस आती है तो कोई भी पीई की दोबारा रेटिंग नहीं होने पर भी कमाई के बराबर रिटर्न की उम्मीद कर सकता है।”
इस सेगमेंट में है बड़ी संभावना
स्मॉल-कैप सेगमेंट पर कम शोध किया गया है, जिस कारण फंड मैनेजर आम तौर पर गलत शेयर का चुनाव कर लेते हैं। इन कंपनियों का छोटा आकार भी उन्हें विकास के लिए एक लंबा रास्ता देता है। जैन कहते हैं, “इक्विटी पर उच्च रिटर्न (आरओई) पर कारोबार में सीमित नकदी प्रवाह को फिर से निवेश करने की उनकी क्षमता उन्हें बड़ी कंपनियों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम बनाती है।”
उच्च अस्थिरता से रहें सावधान
छोटी अवधि में स्मॉल-कैप स्टॉक बहुत अस्थिर हो सकते हैं। फिसडम के शोध प्रमुख नीरव करकेरा कहते हैं, “चूंकि इन कंपनियों का बैलेंस शीट मजबूत नहीं है, इसलिए जब भी व्यापक आर्थिक माहौल प्रतिकूल होता है तो वे सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।” इन व्यवसायों की केंद्रित प्रकृति भी उन्हें अतिसंवेदनशील बनाती है।
शीर्ष-1,000 के ऊपर की कंपनियों को लेकर विश्लेषकों की राय भी आम तौर पर उपलब्ध नहीं होती है। ‘फायर्स’ (FYERS) के शोध प्रमुख गोपाल कवालीरेड्डी कहते हैं, “कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों, उसके वित्तीय आंकड़ों की विश्वसनीयता आदि की अपर्याप्त जानकारी के कारण स्टॉक चयन में गलतियां संभव हैं।”
सीमित एक्सपोजर लें
निवेशकों को इस अस्थिर श्रेणी में ओवरएक्सपोजर से बचना चाहिए। यह आदर्श रूप से इक्विटी पोर्टफोलियो के 10-15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। करकेरा कहते हैं, “इन फंडों में निवेश एसआईपी या एसटीपी (सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान) के जरिये किया जाना चाहिए क्योंकि इनमें ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है।” निवेशकों को इस सेगमेंट में तभी निवेश की शुरुआत करनी चाहिए जब उनके पास पांच से सात साल का होराइजन (निवेश की अवधि) हो।
फंड मैनेजर की भूमिका अहम
स्मॉल-कैप फंड का प्रदर्शन फंड मैनेजर और उनके विश्लेषकों की टीम के स्टॉक चुनने के कौशल पर अत्यधिक निर्भर है। करकेरा कहते हैं, ‘फंड मैनेजर को स्मॉल-कैप डोमेन में विशेषज्ञता होनी चाहिए और एक मजबूत इन-हाउस रिसर्च टीम का साथ भी चाहिए।’
कवालीरेड्डी का कहना है कि इस कैटेगरी के कई फंड में दो फंड मैनेजर होते हैं, ऐसे में दोनों के ट्रैक रिकॉर्ड को जरूर चेक करना चाहिए।
बाजार में तेजी के दौर में प्रदर्शन के अलावा, निवेशकों को फंड मैनेजर की नकारात्मक जोखिम को नियंत्रित करने की क्षमता की भी जांच करनी चाहिए।
कवालीरेड्डी बहुत छोटे और बहुत बड़े दोनों आकार के फंडों में निवेश करने के खिलाफ सावधान करते हैं और मध्यम श्रेणी के फंडों को वरीयता देने का सुझाव देते हैं। उनके अनुसार, निवेशकों को बहुत अधिक व्यय अनुपात वाले फंडों के साथ उन फंडों से भी बचना चाहिए जिनके पोर्टफोलियो में बहुत बड़ी संख्या में स्टॉक हैं