भारत में खरबों रुपयों के ऑटो कम्पोनेंट उद्योग की वजह से घरेलू कम्पोनेंट वितरकों को राहत की चैन मिली है। बड़ी-बड़ी कंपनियां बढ़े हुए मार्जिन और दीर्घकालिक अनुबंध के रूप में घरेलू वितरकों को खुश कर रही हैं।
ऑटो कम्पोनेंट के वैश्विक बाजार के बड़ नाम, डैमलर, जनरल मोटर्स, फोर्ड, वोक्सवेगन, रेनॉल्ट, निसान, होंडा ज्यादा से ज्यादा कम्पोनेंट भारतीय वितरकों से खरीद रहे हैं, जिसकी बदौलत कम्पोनेंट कंपनियों का मार्जिल बढ़कर 8 से 10 प्रतिशत हो गया है।
अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत में ऑटो कम्पोनेंट उद्योग 24 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पा सकता है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा 12 हजार करोड़ रुपये था। ऑटो क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियों ने भारत में अपने क्रय कार्यालय (इंडियन परचेस ऑफिस, आईपीओ) खोल लिए हैं, जो भारतीय निर्माताओं से सस्ते दामों में कम्पोनेंट खरीद कर विदेशी संयंत्रों की विशाल मांग को पूरा करते हैं।
इसके चलते भारतीय कंपनियां 5 से 10 प्रतिशत के बीच में चार्ज करने का मौका मिल रहा है। कई विदेशी कार निर्माता इंजन और अन्य हिस्सों में इन कम्पोनेंट को लगाने से पहले ही उनमें अभियांत्रिकीय परिवर्तन कर लेते हैं।
ऑटोलाइन इंडस्ट्रीज के संयुक्त प्रबंध निदेशक, एम. राधाकृष्णन का कहना है, ‘हम मूल उपकरण निर्माता कंपनियों जैसे कि जीएम, फोर्ड, निसान और होंडा को माल बेचते हैं। मार्जिन केवल कीमतों के बढ़ने से ही नहीं, बल्कि माल की मात्रा में आई वृध्दि के चलते भी बढ़े हैं। हमारे उत्पादों की लागत में आई गिरावट के चलते ये कंपनियां लगभग 20 प्रतिशत का मुनाफ कमा रही हैं। हमे उम्मीद है कि हमारी कंपनी 2010 तक अपनी कुल बिक्री को तीन गुणा बढ़ा कर 900 करोड़ रुपये तक ले जाएगी।’
ऑटो कम्पोनेंट निर्माता संघ (एसीएमए) के अनुसार, भारत की ओर से विदेशों में होने वाला कम्पोनेंट उद्योग 2014 तक कई गुणा बढ़ कर 80 हजार करोड़ रुपये हो जाएगा। आमतौर पर जिन कम्पोनेंट को भारतीय कंपनियों से खरीदा जाता है, उनमें एक्सेल असेंबली, प्रोपेलर शाफ्ट, क्रैंक शाफ्ट, सिलिंडर हेड, बीयररिंग और सिलिंडर ब्लॉक्स शामिल हैं। इस तरह के कारोबार से विदेशी कंपनियों को लागत में 25-30 प्रतिशत का मुनाफा मिलता है।
पिछले वर्ष डेमलर इंडिया ने 8800 करोड़ रुपये का भारत से कम्पोनेंट कारोबार किया था, जो कि उम्मीद है कि इस साल 20 प्रतिशत या फिर 1760 करोड़ रुपये बढ़ जाएगा। कंपनी के प्रबंध निदेश, विलफ्रायड एलबर का कहना है कि हम हर साल अपने मिलान में 20 प्रतिशत की वृध्दि करते रहेंगे। अभी हमारे पास 50 के करीब वितरक हैं, लेकिन 200-300 के लगभग अन्य कंपनियों से बातचीत जारी है, जो भविष्य में संभाव्य वितरक बन सकते हैं।
कई कम्पोनेंट निर्माताओं का मानना है हालांकि इसमें संरचनात्मक कार्य लागत में वृध्दि कर देते हैं, लेकिन इस वृध्दि की क्षतिपूर्ति मूल उपकरण निर्माता कंपनियां बेहतर भुगतान से कर देती हैं।
यश बिड़ला समूह के प्रमुख कार्यकारी (ऑटो और इंजीनियरिंग बिजनेस), प्रवीन गुप्ता का कहना है, ‘श्रेणी एक की कंपनियों को सीधे वितरण से बड़ा मार्जिन और स्थिर मांग और मात्रा का फायदा मिलता है। हम अपने लक्ष्य को श्रेणी दो के ग्राहकों जैसे कि क्युमिन्स आदि से आगे बढ़ाने की सोच रहे हैं।’
वहीं इस उद्योग जगत में रुपये की बढ़ती कीमत से काफी निराशा फैली हुई है। फ्रॉसट एंड सुलिवान के दक्षिण एशिया और मध्य-पूर्व के प्रबंधनिदेशक आनंद रंगाचाड़ी का कहना है, ‘विदेशी कंपनियों को कम्पोनेंट मुहैया करवाने में घरेलू वितरकों की तुलना में 8 से 10 प्रतिशत अधिक मार्जिन मिलता है। लेकिन रुपये की मजबूती के चलते लंबे समय में हो सकता है कि कंपनियों को कुछ नुकसान पहुंचे।’
विशेषज्ञों का मानना है कि टाटा मोटर्स के नैनो प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह से जबरदसती समझौता किया गया है, उससे वितरकों के मार्जिन में कमी आई होगी, जिसे विदेशी कंपनियों के साथ होने वाले कारोबार से पूरा किया जाएगा। इन गतिविधियों की वजह से देश का कुल निर्यात भी बढ़ जाएगा, जो अन्य रूपों से मंदगति से आगे बढ़ते हुए पिछले वर्ष की विकास दर 30 प्रतिशत की तुलना में 15 प्रतिशत विकास करेगा।
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अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत में ऑटो कम्पोनेंट उद्योग 2400 करोड़ रुपये के आंकड़े को पा सकता है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा 1200 करोड़ रुपये था।
