facebookmetapixel
सुप्रीम कोर्ट ने कहा: बिहार में मतदाता सूची SIR में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में करें शामिलउत्तर प्रदेश में पहली बार ट्रांसमिशन चार्ज प्रति मेगावॉट/माह तय, ओपन एक्सेस उपभोक्ता को 26 पैसे/यूनिट देंगेबिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंटरव्यू में बोले CM विष्णु देव साय: नई औद्योगिक नीति बदल रही छत्तीसगढ़ की तस्वीर22 सितंबर से नई GST दर लागू होने के बाद कम प्रीमियम में जीवन और स्वास्थ्य बीमा खरीदना होगा आसानNepal Protests: सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ नेपाल में भारी बवाल, 14 की मौत; गृह मंत्री ने छोड़ा पदBond Yield: बैंकों ने RBI से सरकारी बॉन्ड नीलामी मार्च तक बढ़ाने की मांग कीGST दरों में कटौती लागू करने पर मंथन, इंटर-मिनिस्ट्रियल मीटिंग में ITC और इनवर्टेड ड्यूटी पर चर्चाGST दरों में बदलाव से ऐमजॉन को ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल में बंपर बिक्री की उम्मीदNDA सांसदों से PM मोदी का आह्वान: सांसद स्वदेशी मेले आयोजित करें, ‘मेड इन इंडिया’ को जन आंदोलन बनाएंBRICS शिखर सम्मेलन में बोले जयशंकर: व्यापार बाधाएं हटें, आर्थिक प्रणाली हो निष्पक्ष; पारदर्शी नीति जरूरी

पूर्व प्रमोटर दिवालिया कंपनी में नहीं रख सकते हिस्सेदारी: सुप्रीम कोर्ट

Last Updated- December 11, 2022 | 2:20 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि दिवालियापन संहिता (आईबीसी, या IBC) के तहत किसी अन्य इकाई द्वारा अधिग्रहित किए जाने के बाद पूर्व प्रमोटर एक दिवालिया कंपनी में हिस्सेदारी जारी नहीं रख सकते हैं।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने शुक्रवार को भूषण स्टील के पूर्व प्रमोटर नीरज सिंघल और अन्य की अपील खारिज कर दी। अदालत ने मामले में नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) और नेशनल कंपनी लॉ ऐपेलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) के आदेशों से सहमति जताई और एक अलग आदेश पारित करना उचित नहीं समझा।

आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया के दौरान टाटा स्टील द्वारा 72.65 फीसदी शेयर हासिल करने के बाद प्रवर्तकों के पास कंपनी में 2.35 फीसदी की हिस्सेदारी थी।
अदालत ने कहा, ‘अपीलकर्ता पूर्ववर्ती प्रमोटर हैं और इसलिए उन्हें कंपनी में (शेयरधारकों के रूप में) नहीं रखा जा सकता है। NCLAT भी यही कहता है।’
2017 में भूषण स्टील पर लगभग 56,000 करोड़ रुपये का कर्ज था। जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इसे दिवालिया होने वाले 12 बड़े ऋण चूककर्ताओं में से एक के रूप में पहचाना था।

NCLT ने मई 2018 में भूषण स्टील के लिए टाटा स्टील की बोली को मंजूरी दी। हालांकि भूषण स्टील और कंपनी के ऋणदाता L&T के प्रमोटरों ने NCLAT के समक्ष टाटा की बोली को चुनौती दी।

टाटा स्टील की समाधान योजना 35,200 करोड़ रुपये में भूषण स्टील का अधिग्रहण करने,  अगले 12 महीनों में लेनदारों को 1,200 करोड़ रुपये का भुगतान करने और फिर बैंकों के बकाया कर्ज को इक्विटी में बदलने की थी।

भूषण स्टील के प्रमोटरों ने आरोप लगाया कि टाटा स्टील को बोली से अयोग्य घोषित कर दिया गया क्योंकि उसकी सहायक कंपनी को ब्रिटेन में मुकदमे का सामना करना पड़ा। NCLAT ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि सहायक कंपनी टाटा स्टील लिमिटेड से ‘जुड़ा हुआ व्यक्ति’ है। NCLAT ने आगे कहा, ‘यह IBC की धारा 29ए के तहत अयोग्यता साबित नहीं करता है। हम यह भी मानते हैं कि ‘टाटा स्टील लिमिटेड’ समाधान योजना दाखिल करने के लिए पात्र है।’

L&T ने अलग से तर्क दिया कि टाटा स्टील की पेशकश ऋणदाताओं के लिए उचित नहीं थी। NCLAT ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया और कहा कि टाटा की समाधान योजना सभी ऋणदाताओं के लिए निष्पक्ष और समान थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सभी अपीलकर्ताओं द्वारा प्रस्तुतियां स्वीकार कर ली जाती हैं तो समाधान योजना बिल्कुल भी काम करने योग्य नहीं होगी।

First Published - October 3, 2022 | 2:52 PM IST

संबंधित पोस्ट