कोविड से पहले के समय में वैश्विक स्रोतों से अरबों डॉलर जुटाने वाली भारतीय कंपनियों को अब कोष उगाही में समस्या का सामना करना पड़ रहा है और वैश्विक स्रोतों से कॉरपोरेट कोष उगाही कैलेंडर वर्ष 2020 में अब तक पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 35 प्रतिशत कम है।
विश्लेषकों का कहना है कि कोरोनावायरस महामारी की वजह से ऊंची ब्याज दरों को बढ़ावा मिला। इसके अलावा फ्यूचर रिटेल द्वारा चूक से भी निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है। एक बैंकर ने कहा, ‘व्यापक तौर पर बाजार के रुझानों पर विचर करें तो हम देख सकते हैं कि सॉफ्टबैंक को भी निवेशकों से कोष उगाही में समस्याओं का सामना करना पड़ा था। जिस दर पर सॉफ्टबैंक को ऋण की पेशकश की गई थी वह 8-9 प्रतिशत के साथ काफी ऊंची थी। इससे पता चलता है कि निवेशक भविष्य को लेकर आशंकित हैं।’ भारतीय कंपनियों के लिए दरें बढ़कर 10 प्रतिशत तक की ऊंचाई पर पहुंच गई हैं जिससे विदेशी स्रोतों से कोष जुटाना उचित नहीं रह गया है।
इसके अलावा, कुछ ही भारतीय कंपनियों की बड़ी परियोजनाएं हैं या वे निकट भविष्य में निवेश की योजना बना रही हैं, जिससे स्थानीय कंपनियों द्वारा कोष उगाही में भारी कमी आई है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय कंपनियों ने इस साल 12 अगस्त तक 9.1 अरब डॉलर जुटाए, जबकि एक साल पहले यह आंकड़ा 14 अरब डॉलर था। 2018 में वैश्विक बाजारों से कोष उगाही 15.6 अरब डॉलर थी।
बजाज फाइनैंस के समूह वित्त निदेशक प्रबाल बनर्जी ने कहा, ‘भारतीय कंपनियों में चूक के मामलों, वैश्विक बाजार में ठहराव की स्थिति और उभरते बाजारों को कोविड की अवधि के दौरान ज्यादा ज्यादा ऋण जोखिम वाला समझे जाने की वजह से अब तक, वैश्विक संसाधन बाजार में भारतीय कंपनियों के लिए धारणा ज्यादा सकारात्मक नहीं है।’
बैंकरों का कहना है कि विदेशी निवेशक हालांकि रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी और एयर इंडिया जैसी बड़ी कंपनियों पर दांव लगा रहे हैं, जिनमें या तो ऋण चुकाने की क्षमता है या उन्हें सरकारी गारंटी का समर्थन हासिल है। एयर इंडिया मार्च में ऐसे हालात में 81.7 करोड़ डॉलर जुटाने में सफल रही थी, जब पूरी दुनिया लॉकडाउन से जूझ रही थी। जहां रिलायंस अपने पुराने ऋण चुकाने के लिए कोष जुटा रही थी, वहीं वह कई प्रमुख निवेशकों से अरब डॉलर जुटाने में भी कामयाब रही। रिलायंस ने अपने दूरसंचार और डिजिटल उद्यम रिलायंस जियो में हिस्सेदारी बेची।
बैंकरों का कहना है कि 2020 के शेष समय में मंदी का रुझान बना रहेगा, क्योंकि निवेशक भारतीय कंपनियों की डेट योजनाओं में निवेश से परहेज करेंगे। एक अन्य बैंकर ने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 लॉकडाउन के चक्र से धीरे धीरे बाहर निकल रही है और मांग में सुधार के संकेत दिख रहे हैं। कुछ महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था सुधरकर कोविड पूर्व जैसे स्तरों पर पहुंच जाएगी। तब कंपनियां नई क्षमताओं में निवेश शुरू करेंगी जिससे कोष की जरूरत बढ़ेगी।’
