facebookmetapixel
e-bike भारत में क्यों नहीं पकड़ पा रही रफ्तार? नीति आयोग ने बताई R&D और कीमत की असली वजहYear Ender 2025: ट्रंप के जवाबी शुल्क से हिला भारत, 2026 में विविध व्यापार रणनीति पर जोर छोटे राज्य बन गए GST कलेक्शन के नायक: ओडिशा और तेलंगाना ने पारंपरिक आर्थिक केंद्रों को दी चुनौतीYear Ender 2025: इस साल बड़ी तादाद में स्वतंत्र निदेशकों ने दिया इस्तीफा, जानें वजहेंGMP अनुपालन की चुनौती, एक चौथाई MSME दवा विनिर्माता ही मानकों पर खरा उतर पाएंगीतेजी के बाद नए साल में अमेरिका फोक्स्ड फंड्स का कम रह सकता है जलवासाल 2026 में क्या बरकरार रहेगी चांदी की चमक! एक्सपर्ट्स ने बताई आगे की इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी 2025 में चमका सोना, लेकिन 2026 में निवेशक सावधान: रिटर्न के पीछे भागने से बचें और संतुलन बनाए रखेंYear Ender 2025: भयावह हादसों ने दिए गहरे जख्म, प्लेन क्रैश, आग, बाढ़ और भगदड़ ने खोली व्यवस्थाओं की कमजोरियांटाटा पावर का बड़ा लक्ष्य: 15% ऑपरेशन प्रॉफिट और मुंद्रा प्लांट जल्द फिर से शुरू होने की उम्मीद

कार्यवाही और जांच के लिए सख्त मियाद तय करना ‘न तो सही’ है और ‘न ही संभव’: SEBI

सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में अपने कामकाज को बदलने की जरूरत खारिज की

Last Updated- July 10, 2023 | 10:33 PM IST
Sebi extends futures trading ban on seven agri-commodities till Jan 2025

उच्चतम न्यायालय में नया हलफनामा दायर करते हुए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (SEBI) ने कहा कि उसकी कार्यवाही और जांच के लिए सख्त मियाद तय करना ‘न तो सही’ है और ‘न ही संभव’ है। अदाणी-हिंडनबर्ग (Adani-Hindenburg) मामले में गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के जवाब में सेबी ने शीर्ष अदालत में यह हलफनामा दायर किया है।

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ण न्यायाधीश एएम सप्रे की अध्यक्षता वाली 6 सदस्यीय समिति को जांच की निगरानी के अलावा सेबी के लिए संरचनात्मक सुधार का सुझाव देने का भी काम सौंपा गया था। समिति ने 173 पृष्ठ की अपनी अंतरिम रिपोर्ट में सेबी के मौजूदा विधायी और नियामकीय ढांचे को सुदृढ़ बनाने के लिए कई सिफारिशें की हैं।

कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी ने 46 पृष्ठ के अपने हलफनामे में अपने काम करने के तरीके में पूरी तरह से बदलाव लाने की जरूरत को खारिज करने का प्रयास किया है।

समयसीमा कई चीजों पर निर्भर: सेबी 

समिति ने सेबी के लिए जांच, कार्यवाही और निपटान शुरू करने और उसे पूरा करने के लिए अनिवार्य समयसीमा तय करने का सुझाव दिया है। इस सुझाव को लागू करने में व्यवहारिक चुनौतियों का जिक्र करते हुए बाजार नियामक ने कहा कि समयसीमा कई चीजों पर निर्भर करती है, जिसमें उल्लंघन की जटिलता, जांच की व्यापकता और पर्याप्त साक्ष्य जुटाना शामिल है।

नियामक ने सेबी अधिनियम और अन्य विनियमों में संशोधन तथा मानदंडों का भी हवाला दिया है, जिनमें कहा गया है कि नियामक बिना किसी समयसीमा के अभियोजन शुरू कर सकता है।

किसी भी मामले के निपटान की तय नहीं की जा सकती कोई मियाद 

सेबी ने शेयर विकल्प में हेरफेर, जीडीआर घोटाले तथा आईपीओ में अनियमितता जैसे जटिल मामलों का हवाला देते हुए जोर दिया कि किसी भी मामले के निपटान की कोई मियाद तय नहीं की जा सकती।

नियामक ने कहा, ‘जिन गंभीर मामलों का बाजार या निवेशकों पर व्यापक असर पड़ सकता है, उनकी जानकारी बाद की तारीख में मिलने पर नियामक अनदेखी नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति में प्रर्वतन कार्रवाई शुरू करने से पहले जांच के लिए समुचित साक्ष्य जुटाना नियामक का दायित्व है।’

बाजार नियामक ने विशेषज्ञ समिति की इस बात को भी खारिज किया कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) नियमों में अपारदर्शी ढांचे के प्रावधान खत्म करने की वजह से सेबी को आर्थिक हितधारकों की पहचान करने में कुछ कठिनाई आती है।

नियामक ने कहा कि एफपीआई विनियमों में 2018 और 2019 में किए गए बदलाव के जरिये लाभार्थी स्वामी की जानकारी देने की जरूरत सख्त बनाई गई है।

सेबी ने आगे कहा कि इन बदलावों के बाद प्रत्येक एफपीआई को अपने सभी लाभार्थियों का पहले खुलासा करना अनिवार्य हो गया है और लाभार्थी मालिक के तौर पर तटस्थ व्यक्ति की गैर-मौजूदगी में वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारी को लाभार्थी माना जाएगा, जबकि पहले खुलासा नियमों में कुछ रियायत दी गई थी।

न्यायिक अधिकारियों और कार्यकारी इकाई के बीच शक्तियों का अंतर करने का भी सुझाव

इसमें कहा गया है कि ‘अपारदर्शी संरचनाओं’का संदर्भ हटा दिया गया था क्यांकि इसमें अतिरेक और अस्पष्टता थी। हलफनामे में आगे कहा गया है कि 10 फीसदी सीमा का कड़ा प्रावधान 2018 में उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से आने वाले एफपीआई के लाभार्थी मालिकों की पहचान के लिए अनिवार्य किया गया था।

विशेषज्ञ समिति ने नियामक के अर्द्ध न्यायिक अधिकारियों और कार्यकारी इकाई के बीच शक्तियों का अंतर करने का भी सुझाव दिया है। सप्रे समिति ने जांच और संतुलन बनाए रखने के लिए अर्द्ध न्यायिक इकाई का दायरा तय करने की भी सिफारिश की है। इस बारे में नियामक ने हलफनामे में कहा है कि पक्षपात और हितों के टकराव से बचने के लिए अधिकारों के बीच अंतर सुनिश्चित करने के उपाय पहले से ही किए गए हैं।

First Published - July 10, 2023 | 10:33 PM IST

संबंधित पोस्ट