सरकार की ग्रीन बॉन्डों की अब तक की पहली बिक्री को निवेशकों की मजबूत मांग का समर्थन मिला है। साथ ही मौजूदा तुलनात्मक परिपक्वता वाले नियमित सॉवरिन बॉन्ड की तुलना में कम प्रतिफल पर प्रतिभूतियां जारी की गईं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को सरकार की ओर से ग्रीन बॉन्डों की पहली बिक्री की। इसमें 8,000 करोड़ रुपये की 2 प्रतिभूतियां शामिल हैं, जिसमें एक 5 साल का बॉन्ड और एक 10 साल का बॉन्ड है। जैसा कि नीलामी के पहले ट्रेडरों ने अनुमान लगाया था, इस बिक्री में सरकारी बैंकों की ओर से मांग तेज रही है। डीलरों ने कहा कि डेट की बिक्री में बीमा कंपनियों ने भी मजबूत हिस्सेदारी दिखाई है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप में ट्रेडिंग के प्रमुख नवीन सिंह ने कहा, ‘पीएसयू बैंकों और बीमा कंपनियों की ओर से बेहतर मांग रही है। इसके अलावा एफपीआई ने भी कम से कम 700 करोड़ रुपये के ग्रीन बॉन्ड लिए हैं।’नीलामी के परिणाम से पता चलता है कि 5 साल के पेपर के लिए कटऑफ प्रतिफल 7.19 प्रतिशत था, जबकि 10 साल के ग्रीन बॉन्ड के लिए 7.29 प्रतिशत तय किया गया था। मंगलवार को रेगुलर 10 साल का बेंचमार्ग सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 7.35 प्रतिशत पर बंद हुआ, जबकि सबसे ज्यादा तरलता वाला 5 साल के बॉन्ड का प्रतिफल 7.15 प्रतिशत रहा।
नियमित 10 साल का बेंचमार्क पेपर बुधवार को इसी प्रतिफल पर ठहरा, जबकि नियमित 5 साल का बॉन्ड 1 आधार अंक ऊपर बंद हुआ। रिजर्व बैंक के नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम ऑर्डर मैचिंग ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के सौदों की रिपोर्ट से पता चलता है कि 10 साल के ग्रीन बॉन्ड में 680 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ, जबकि 5 साल के ग्रीन बॉन्ड में 225 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। ट्रेडरों ने कहा कि रिपोर्टेड डील सेग्मेंट अक्सर बॉन्डों में एफपीआई गतिविधि का संकेतक होता है।
विदेशी हिस्सेदारी को बढ़ावा देने की कवायद में रिजर्व बैंक ने कहा है कि ग्रीन बॉन्डों को ऐसी प्रतिभूतियों के रूप में चिह्नित किया जाएगा, जिसमें विदेशी निवेशकों की पूरी पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। पिछले सप्ताह बीमा नियामक इरडा ने कहा था कि बीमा कंपनियों के ग्रीन बॉन्ड में निवेश को बुनियादी ढांचे में निवेश माना जाएगा। हिस्सेदीरी बढ़ाने की कवायद में यह घोषणा की गई थी।
सरकार ने अपनी मौजूदा नियमित प्रतिभूतियों की तुलना में 5 साल और 10 साल के ग्रीन बॉन्ड की बिक्री कम प्रतिफलों पर की है। बाजार की भाषा में कहें तो इस प्रीमियम को ग्रीन बॉन्ड के मामले में ग्रीनियम कहा जाता है।
कटऑफ प्रतिफल या बॉन्ड पर कूपन सरकार द्वारा उन निवेशकों को भुगतान की जाने वाली ब्याज दर है, जिन्होंने अपना कर्ज खरीदा था। वैश्विक रूप से ग्रीन बॉन्ड एक प्रीमियम पर जारी इंस्ट्रूमेंट होते हैं, जो डिजाइन के मुताबिक पर्यावरण के मित्रवत परियोजनाओं को सस्ती पूंजी मुहैया कराने के लिए होते हैं।
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डीबीएस बैंक में वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका रॉय ने लिखा है, ‘रुचि वाले दो पहलू होंगे। पहला, क्या ये बॉन्ड लागत को लेकर बेहतर हैं, यानी परंपरागत बॉन्डों की तुलना में सस्ते हैं और दूसरे, मांग पूल में जहां घरेलू निवेशकों का दबदबा हो सकता है, रुपये में निर्धारित ग्रीन बॉन्डों पर वैश्विक फंड हाउसों की नजर हो सकती है।’
रिजर्व बैंक के साथ हाल की चर्चा में हिस्सा लेने वाले बॉन्ड बाजार के कुछ हिस्सेदारों ने सरकार द्वारा जारी ग्रीन मसाला बॉन्ड का विचार पेश किया था, जिससे ज्यादा विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा सके।