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डॉ रेड्डीज-इतना काफी नहीं

Last Updated- December 07, 2022 | 1:04 PM IST

प्रमुख दवा कंपनी डॉ रेड्डीज की टॉपलाइन ग्रोथ में इस वित्त्तीय वर्ष की जून तिमाही में 25 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई लेकिन यह प्रशासन और बिक्री को बढ़ाने के लिए लगने वाले खर्च के लिए पर्याप्त नहीं रहा।


कंपनी की सेलिंग और एडमिनिस्ट्रेशन कॉस्ट में 5.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में भी 5.4 फीसदी की गिरावट आई और यह 9.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया। हालांकि कंपनी का राजस्व वित्त्तीय वर्ष 2008 की जून तिमाही में 31 फीसदी बढ़ा लेकिन कंपनी का लाभ पहले की अपेक्षा कम रहा। 5,006 करोड क़ी डॉ रेड्डीज को लाभ में दबाव झेलना पड़ा।

कंपनी की बिक्री इस तिमाही में 1,503 करोड़ रुपए रही जिसकी वजह कंपनी के एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंड्रीगेंड की घरेलू बाजार की बिक्री में 35 फीसदी की बढ़ोतरी रही। कंपनी के फामुर्लेशन के निर्यात में भी 19 फीसदी बढ़ोतरी हुई। कंपनी का रुस और सीआईएस देशों में ब्रिस्क कारोबार अच्छा रहा। हालांकि कंपनी घरेलू ब्रिस्क कारोबार में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और उनकी घरेलू बाजार में बिक्री सिर्फ नौ फीसदी रही जो उद्योग के औसत से भी कम है।

बेहतर सप्लाई की वजह से कंपनी की यूरोपीय सहयोगी कंपनी बेटाफार्म के दवाओं की बिक्री अच्छी रही लेकिन यूरो के आधार पर कंपनी का राजस्व सपाट स्तर पर रहा।  बेटाफार्म का कंपनी के कुल राजस्व में 16 फीसदी हिस्सेदारी है और इसकी दवाओं की कम कीमतों का प्रभाव कंपनी के आगे के प्रदर्शन पर भी पड़ सकता है।  भारत में कंपनी ज्यादा किफायत से काम कर सकती है और उसका परिचालन खर्च जर्मनी से कम आएगा। डाइवरसीफाइड जेनेरिक पोर्टफोलियो की वजह से कंपनी के पास एक संतुलित राजस्व मॉडल है।

कंपनी के प्रबंधन को विश्वास है कि कंपनी अपने राजस्व में बढ़त को 25 फीसदी के स्तर पर बरकरार रखेगी। हालांकि प्रतियोगी कंपनियों की तुलना में कंपनी के स्टॉक का कारोबार कुछ डिस्काउंट पर हो सकता है। बेटाफार्म के सपाट प्रदर्शन और घरेलू बाजार में कम बिक्री का प्रभाव कंपनी के प्रदर्शन पर पड सकता है। जिससे कंपनी के नए उत्पादों की लांचिंग में भी देरी हो रही है। मौजूदा बाजार मूल्य 632 रु पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 17.5 गुना केस्तर पर हो रहा है। कंपनी की आय के मौजूदा स्तर से 29 से 30 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है।

सेल-आगे कठिन समय

देश की सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी सेल ने अपनी टॉपलाइन बढ़त बरकरार रखी है। कंपनी ने इस वित्तीय वर्ष में 37 फीसदी की सालाना बढ़त दर्ज की। हालांकि कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन 4.5 फीसदी कम होकर 25 फीसदी के स्तर पर रहा। इसकी वजह कर्मचारियों पर किया जाने वाला ज्यादा खर्च और फेरो एलॉय रहा।

कंपनी का शुध्द लाभ भी 20 फीसदी बढ़कर 1,835 करोड़ रुपए पर रहा। सेल अब कोल के लिए किए जाने वाले कांट्रेक्ट को पिछले साल से 200 फीसदी ज्यादा कीमत पर कर रही है तो इसका कंपनी के लाभ पर प्रभाव पड़ना लाजिमी है। कंपनी अपनी जरुरत का करीब 70 फीसदी कोल आयात करती है।

कंपनी को अब कोल के दुगुना मूल्य चुकाना पडेग़ा जिससे कंपनी को अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाने पर भी मजबूर होना पड़ सकता है। जून की तिमाही में सेल ने पिछले साल की तुलना में बेहतर रियलाइजेशन देखा और यह पिछले साल की तुलना में 29 फीसदी की गति से बढ़ा। कंपनी ने जून की तिमाही में वैल्यू एडेड प्रोडक्ट की ज्यादा मात्रा भी बेची।

स्टील की कीमतों में अंतिम बार बढ़ोतरी मार्च में की गई थी। और सरकार को हस्तक्षेप की वजह से कंपनी को स्टील की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती कीमतों का लाभ नहीं मिल रहा है। भारत में स्टील की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में 4,500 रुपए प्रति टन तक कम है। मौजूदा बाजार मूल्य 146 रुपए पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 7.4 गुना के स्तर पर हो रहा है।

First Published - July 24, 2008 | 11:28 PM IST

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