पिछले 30 दिनों में डॉलर की तुलना में रुपये का 6 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ है।
इसने ऑटो कंपोनेंट क्षेत्र पर डॉलर के प्रभुत्व वाले उत्तरी अमेरिका, एशिया और अफ्रीकी देशों को निर्यात कर अपना ऑपरेटिंग प्रॉफिट सुधारने की उम्मीदों को और बढ़ा दिया है।
देश के 75 हजार करोड़ रुपये के ऑटो कंपोनेंट बाजार के लिए एक और अच्छी खबर। पिछले साल से अब तक यूरो भी रुपये के मुकाबले 14 प्रतिशत मजबूत होकर 65 रुपये के प्रति यूरो के स्तर पर पहुंच चुका है।
औद्योगिक आंकड़ों के अनुसार देशी ऑटो कंपोनेंट बाजार को मिलने वाले राजस्व में निर्यात20 की हिस्सेदारी प्रतिशत है। इसमें एक तिहाई यूरो झोन से और शेष सारा हिस्सा डॉलर के प्रभुत्व वाले देश देशों से आता है। एसीएमए के डॉयरेक्टर विष्णु माथुर ने बताया कि ऑटो कंपोनेंट क्षेत्र को मिलने वाला मार्जिन रुपये के अवमूल्यन का समानुपात होता है।
दो माह पहले जब रुपया डॉलर के मुकाबले 39 पर कारोबार कर रहा था, उस समय कई कंपनियों का मार्जिन कम हुआ या फिर वे घाटे में रहीं। अब जब रुपया 42 रुपये प्रति डॉलर पर कारोबार कर रहा है, इन कंपनियों के मार्जिन में 6-7 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। हालांकि इस क्षेत्र का मार्जिन फिनिश्ड गुड्स बनाने के लिए किए जाने वाले सामान के वोल्युम पर भी निर्भर करता है।
माथुर ने बताया कि दो साल पहले जिन कलपुर्जे निर्माताओं ने 43 रुपये के स्तर पर कांट्रेक्ट लिए थे। वे आज उसका लाभ उठा रहे हैं। पर जिसने 39 रुपये के स्तर यह बुकिंग थी उनके मार्जिन में 13 प्रतिशत की कमी आई। संधार ग्रुप्स के वर्तमान में 20 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। इनमें से 2 यूरोपीय देशों में है। ग्रुप कुल निर्मित सामान का 24 प्रतिशत यूरोपीय बाजार में निर्यात करती है, जबकि शेष सामान घरेलू बाजार में बेचा जाता है।
यूरोपीय क्षेत्र में उसके द्वारा निर्मित सामान पर उसे विदेशी मुद्रा में 28 प्रतिशत कमाई होती है, जिसका यूरो: डॉलर अनुपात 83:17 होता है। तैयार माल के लिए कंपनी को 4 प्रशित कच्चा माल आयात करना होता है। इसे ध्यान में रखते हुए जब रुपया 39 के स्तर पर था तब उसका मार्जिन 2.5 प्रतिशत से लेकर 9 प्रतिशत तक गिरा और अब जब रुपया 42 के स्तर पर है।
इसमें 12 प्रतिशत का सुधार हुआ। अशोक मिंडा ग्रुप के मिंडा मैनेजमेंट के अध्यक्ष एनके तनेजा ने बताया कि अभी भी वे 46 रुपये प्रति डॉलर के स्तर से काफी दूर हैं। रुपये का इस स्तर पर बने रहना या फिर इससे नीचे जाना बढ़ती कमोडिटिज की कीमतों पर निर्भर करता है। ऑटो कंपोनेंट से जुड़ी यूनिट अपने पिछले 2-3 सालों के अधिकांश कांट्रैक्ट्स को 40-41 रुपये के स्तर पुनर्निधारित कर रही हैं। कुछ कंपनियां इससे अधिक उतार-चढ़ाव का इंतजार कर रही हैं।