दुनिया के बड़े देशों में सरकारों और केंद्रीय बैंकों की नीतियां अभी भी शेयर बाजारों को सहारा दे रही हैं। बजाज अल्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादा खर्च और ब्याज दरों में नरमी के चलते वैश्विक शेयर बाजार ऊंचे स्तर पर बने रह सकते हैं। हालांकि, बढ़ते वैश्विक कर्ज को लेकर चिंता बनी हुई है, जो आगे चलकर आर्थिक स्थिरता पर सवाल खड़े कर सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि AI से जुड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं, इसलिए निवेशकों में यह डर बना हुआ है कि कहीं ये शेयर ज्यादा महंगे तो नहीं हो गए हैं। इसके बावजूद, अमेरिका में नए फेड प्रमुख के नरम रुख और कंपनियों की मजबूत बैलेंस शीट से 2026 के लिए शेयर बाजार को लेकर भरोसा बना हुआ है। अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था आगे भी बढ़ती रहेगी।
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हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि दुनिया में अब राजनीति, अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ने लगी है। रिपोर्ट के मुताबिक, यही हाल शेयर बाजार का भी है। रूस यूक्रेन युद्ध, AI बबल और जापान के बॉन्ड यील्ड जैसे मुद्दे निवेशकों की भावनाओं को प्रभावित कर रहे हैं। इसके बावजूद, निवेशक यह मानकर चल रहे हैं कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संकट में बाजार को गिरने नहीं देंगी।
रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका और अन्य बड़े देश 2026 में भी खर्च बढ़ाते रह सकते हैं, भले ही इसके लिए ज्यादा कर्ज लेना पड़े। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, 2026 में वैश्विक GDP में करीब 6 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है, जबकि अकेला अमेरिका 3 से 4 ट्रिलियन डॉलर का नया कर्ज जोड़ सकता है। भारत इस मामले में अलग है, जहां कर्ज पर बेहतर नियंत्रण रखा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के केंद्रीय बैंकों ने पहले ही ब्याज दरें घटा दी हैं, जबकि महंगाई अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं है। जापान में भी महंगाई दबाव बना रह सकता है। कुल मिलाकर, 2026 में भी मौद्रिक नीति बाजार के पक्ष में रह सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में नए फेड चेयर के रूप में केविन हैसेट का नाम सबसे आगे चल रहा है, जो कम ब्याज दरों के समर्थक माने जाते हैं। बाजार को उम्मीद है कि 2026 में फेड दो बार ब्याज दरें घटा सकता है, जबकि आधिकारिक अनुमान एक कटौती का है।
बजाज अल्ट्स के मुताबिक, भारत ने बाकी देशों के मुकाबले वित्तीय अनुशासन बेहतर तरीके से संभाला है। भारत के सरकारी बॉन्ड यील्ड कोविड से पहले के स्तर के आसपास बने हुए हैं और इनमें ज्यादा उतार चढ़ाव नहीं दिखा है। आने वाले समय में सरकार का कर्ज सीमित रहने की उम्मीद है, जिससे ब्याज दरों पर दबाव नहीं पड़ेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में भारतीय शेयर बाजार का प्रदर्शन कमजोर रहा, लेकिन 2026 में हालात बदल सकते हैं। रूस यूक्रेन युद्ध का समाधान, अमेरिका और यूरोप के साथ व्यापार समझौते और डॉलर की कमजोरी से भारतीय बाजार को फायदा मिल सकता है। साथ ही, RBI के नरम रुख और सुधारों से कंपनियों की कमाई बढ़ सकती है।
2025 में भारत को AI बूम का ज्यादा फायदा नहीं मिला, जबकि चीन, ताइवान और कोरिया जैसे देशों के बाजार तेजी से चढ़े। इसके अलावा, अमेरिका के साथ व्यापार तनाव और सरकारी खर्च की धीमी रफ्तार से भी भारतीय बाजार दबाव में रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में रुपया कमजोर जरूर हुआ, लेकिन भारत की महंगाई कई देशों से कम है। भारत का चालू खाता घाटा भी पहले के मुकाबले काफी सुधरा है। IT और सर्विस सेक्टर के मजबूत निर्यात से भारत की स्थिति संभली हुई है, जिससे आगे चलकर अर्थव्यवस्था को सहारा मिल सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अर्थव्यवस्था अभी पूरी क्षमता से नहीं चल रही है, लेकिन आने वाले दो से तीन साल में इसमें तेजी आ सकती है। अगर नॉमिनल GDP ग्रोथ करीब 12 फीसदी रहती है, तो भारत अपनी पुरानी रफ्तार से भी आगे निकल सकता है।